अमित शाह के एक बयान से झारखंड भाजपा के अंदर तनाव
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सदस्यता अभियान पर पड़ा है असर
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आदिवासी वोटर पहले से ही कट चुके हैं
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नेताओँ की सफाई भी काम नहीं आ रही है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के एक बयान ने झारखंड भाजपा को भी अंदर से दो फाड़ कर दिया है। जो सवाल अंदर ही अंदर गूंजता था, वह अब धीरे धीरे सामने आ रहा है। इसकी भनक भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेताओं को अच्छी तरह है। इसी वजह से तमाम लोग अपने अपने तरीके से इस खाई को पाटने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।
इस स्थिति ने भाजपा के सदस्यता अभियान पर भी असर डाल दिया है क्योंकि पिछड़े और दलित वर्ग को भाजपा कार्यकर्ता अपने नेताओं से अमित शाह के बयान पर स्पष्टीकरण मांगने लगे हैं। निचले स्तर के कार्यकर्ताओं का सवाल पूछना तब हो रहा है जब अन्य विरोधी दल अमित शाह के उसी बयान के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं।
दलित संगठनों के महासंघ ने आगामी 28 दिसंबर से देशव्यापी आंदोलन का भी एलान कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में यह कहा था कि आजकल अंबेडकर का नाम दोहराना फैशन हो गया है। इतनी बार अगर लोग भगवान का नाम जपते तो वे स्वर्ग चले जाते। इसी बयान ने दलित समुदाय को अंदर से व्यथित कर दिया है
और कांग्रेस के उस आरोप का जोर बढ़ा है कि दरअसल भाजपा आदिवासी और दलितों के साथ साथ पिछड़ों का अंदर से विरोध करती है। भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता इसके दूरगामी प्रभाव को लेकर इसलिए भी चिंतित हैं क्योंकि आदिवासी वोटर पहले ही भाजपा से कन्नी काट चुका है।
शहरी इलाकों में भाजपा के वोट बैंक का बड़ा हिस्सा पिछड़ों और दलितों का रहा है। इस वजह से बहुत बड़े वर्ग के पार्टी से नाराज होने के खतरे को प्रदेश स्तर के नेता अच्छी तरह भांप रहे हैं। भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा जगह जगह पर प्रेस कांफ्रेंस कर सफाई दी जा रही है जबकि नाराज वर्ग अमित शाह द्वारा ऐसे बयान पर माफी तक नहीं मांगने को लेकर नाराज है।
भाजपा का भी सदस्यता अभियान भी जारी है और जमीनी स्तर पर इस अभियान से जुड़े लोग भी इसे दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं कि इस एक बयान ने संगठन को जनता के नये सवालों के सामने निहत्था खड़ा कर दिया है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अमित शाह के मूल बयान को अधिसंख्य लोगों ने देखा है और उनमें इस बात को लेकर कोई संशय भी नहीं है कि यह असली नहीं फर्जी वीडियो है।
पार्टी के नेता इस मुद्दे पर अमित शाह के बयान को सही ठहराने का खतरा नहीं मोल ले सकते और उस बयान को जायज ठहराकर दलित वर्ग की और अधिक नाराजगी भी झेलना नहीं चाहते।