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अरबपतियों के विवाद में उलझी है संसद

हर मिनट के ढाई लाख का आर्थिक बोझ देश की जनता पर

  • अन्य दूसरे दल भी स्थिति से नाराज

  • सदन तो सही ढंग से चलेः डिंपल यादव

  • बड़े दलों ने हाईजैक कर लियाः कल्याण बनर्जी

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः दो अरबपतियों गौतम अडाणी और जॉर्ज सोरोस को लेकर चल रही लड़ाई के कारण संसद का शीतकालीन सत्र पूरी तरह से बर्बाद हो गया। सप्ताहांत समेत सिर्फ नौ दिन बचे हैं, लेकिन सांसदों ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि करदाताओं का पैसा बिना किसी ऐसे मुद्दे पर चर्चा किए बर्बाद हो जाए जो सीधे उनके जीवन को प्रभावित करता हो।

हम भारतीयों को याद दिला दूं कि शहरों में रहने वाले लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं और बढ़ती कीमतें चिंता का विषय हैं। असली पीड़ित करदाता हैं, जिनके पैसे से संसद चलती है, साथ ही वे लाखों गरीब भी हैं जिन्हें नीतिगत मदद की जरूरत है।

वास्तविकता की जांच करें तो इस मामले में संसद चलाने या न चलाने पर प्रति मिनट करदाताओं के 2.5 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं। उम्मीद की जाती है कि जनता के प्रतिनिधि ऐसे मुद्दे उठाएंगे जो लोगों के लिए सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। कुछ विपक्षी दलों ने भी अपनी निराशा व्यक्त की है और संसद के सुचारू संचालन को रोकने के लिए भाजपा और कांग्रेस को दोषी ठहराया है।

कांग्रेस जहां अडाणी रिश्वतखोरी के आरोपों पर अमेरिका में चल रहे मामले पर चर्चा की मांग कर रही है, वहीं भाजपा कांग्रेस के शीर्ष नेताओं पर अरबपति जॉर्ज सोरोस के संगठन से संबंध होने का आरोप लगा रही है, जिसे कथित तौर पर शासन परिवर्तन के लिए धन मुहैया कराने के लिए अराजकता का एजेंट करार दिया गया है।

समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों ने पहले ही कांग्रेस के अडाणी विरोधी प्रदर्शनों से खुद को अलग कर लिया है। समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने बुधवार को कहा, हम न तो सोरोस मुद्दे के साथ हैं और न ही अडाणी मुद्दे के साथ। हमारा मानना ​​है कि सदन चलना चाहिए। हमें उम्मीद है कि दोनों पक्षों के लोग सदन के कामकाज के प्रति समर्पण दिखाएंगे।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने सदन को हाईजैक करने के लिए दोनों राष्ट्रीय दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि सदन में व्यवधान के कारण क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो रहा है। तृणमूल कांग्रेस के बनर्जी ने कहा, वे तय करते हैं कि सदन कब तक चलेगा। यह सही नहीं है, भाजपा और कांग्रेस को बोलने के अधिक अवसर मिलते हैं। हमें बोलने का अवसर नहीं मिलता। अन्य राजनीतिक दल पीड़ित हैं।

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