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चाकुलिया के इलाके में रॉयल बंगाल टाईगर

हाथियों के झूंड से परेशानी के बाद अब दूसरा आतंक

  • पर्यटकों से कहा शाम के पहले लौट जाएं

  • कई जंगली जानवरों के शव भी मिले हैं

  • इस बाघिन की पहचान रेडियो कॉलर से

राष्ट्रीय खबर

 

चाकुलियाः यहां के जंगल में एक पूर्ण वयस्क बाघिन घूम रही है। ग्रामीणों को इसकी उड़ती भनक मिली है जबकि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के वन अधिकारियों ने इसकी पुष्टि कर दी है।

इस विषय की चर्चा तब अधिक हो गयी जब बंगाल की वन मंत्री वीरवाहा हांसदा ने औपचारिक तौर पर इसकी पुष्टि करने के साथ साथ शीतकाल में वहां जाने वाले पर्यटकों को भी इस बारे में आगाह कर दिया

बीरबाहा ने कहा है कि बंगाल के वनकर्मी मंगलवार से सक्रिय हैं। वे रात में निगरानी करते हैं। बाघ के मूवमेंट पर भी नजर रखी जा रही है। इसके अलावा सीमावर्ती इलाकों में लोगों को जंगल की ओर जाने से मना किया गया है।

बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही इस इलाका में हाथियों का एक बहुत बड़ा झूंड चला आया था, जिसकी वजह से कई गांवों के लोग काफी दिनों तक परेशान रहे थे। इससे पहले सात साल पहले एक रॉयल बंगाल टाइगर लालगढ़ के जंगल में घुस आया था।

बाद में, ओडिशा के सिमलीपाल जंगल के बाघ को शिकारियों के एक समूह ने मार डाला। वो डर इस बार झारखंड की सीमा झाड़ग्राम में वापस आ गया। झारखंड के जंगल में ओडिशा की एक बाघिन फिर से दिखाई दी है। बाघिन के मूवमेंट पर भी नजर रखी जा रही है। साथ ही सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को जंगल की ओर जाने से मना किया गया है।

वन विभाग के मुताबिक, तीन साल की बाघिन जीनत सिमलीपाल के बाघ परियोजना रिजर्व से आई थी।

संभवत: जीनत सिमलीपाल से गुरबंदा होते हुए सुवर्णरेखा नदी के रास्ते झारखंड पहुंची। कुछ दिनों तक उसे जमशेदपुर वन प्रमंडल के चाकुलिया रेंज के जंगल में भी घूमते देखा गया था। इलाके में कुछ मवेशियों के अवशेष देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इनकी मौत बाघ के हमले में हुई है।

झारखंड के चाकुलिया और घाटशिला के जंगलों से हाथी अक्सर झारग्राम के जाम्बोनी और बेलपहाड़ी में प्रवेश करते हैं। इस बार बाघ घुसने का भी डर है।

झारग्राम डीएफओ उमर इमाम ने कहा, हाथी कभी-कभी झारखंड और बंगाल के बीच यात्रा करते हैं। परिणामस्वरूप हमारा झारखंड वन विभाग के साथ अच्छा संवाद है। जामबोनी, गिधनी और बेलपहाड़ी रेंज की झारखंड सीमा पर हमारी कड़ी निगरानी है।

घबराने की कोई बात नहीं है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार, तीन वर्षीय जीनत को 15 नवंबर को महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व से ओडिशा के मयूरभंज जिले के सिमलीपाल टाइगर रिजर्व में लाया गया था।

कुछ दिनों तक बाड़े में निगरानी रखने के बाद उसे रेडियो कॉलर पहनाकर 24 नवंबर को सिमलीपाल टाइगर प्रोजेक्ट के जंगल में छोड़ दिया गया। सिमलीपाल बाघ परियोजना के सूत्रों के अनुसार, जीनत की हरकतों पर जीपीएस ट्रैकर के जरिए नजर रखी जा रही है क्योंकि उसके गले में रेडियो कॉलर लगा हुआ है।

हालांकि पशु विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों का इस तरह विदेशी जंगलों में घूमना कोई असामान्य बात नहीं है। उनके मुताबिक, किसी नई जगह पर छोड़े जाने पर बाघ या बाघिन आमतौर पर अपना इलाका खुद ही चिह्नित कर लेते हैं।

ऐसे क्षेत्र जहां पर्याप्त शिकार और पीने का पानी उपलब्ध है। इसके लिए उन्होंने काफी लंबा सफर तय किया है। इसके बाद उन्होंने करीब 30-40 किलोमीटर तक अपना क्षेत्र बनाया।

इसके पहले हजारीबाग के जंगल में भी एक बाघ के आने की सूचना आम जनता के जरिए मिली थी। कई दिनों तक वन विभाग ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। बाद में वन विभाग के गश्ती दल ने ही इस बाघ का वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया था।

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