मैं तुझको कितना चाहता हूं, यह तो जंतर मंतर से पेरिस ओलंपिक तक साफ हो गया। नये संसद भवन के उदघाटन के दिन जब पुलिस सड़क पर घसीट रही थी, सारा दरबार चुप्पी साधे बैठा था। अब स्वर्ण पदक से वंचित क्या हुई, फिर से उसे जिम्मेदार ठहराने वाले मैदान में आ गये। लेकिन अब संज्ञा बदलने का टैम आ गया है। इन्हें अब अंधभक्त नहीं बुद्धिभ्रष्ट कहा जाना चाहिए।
देश के किसी बड़े सेनाध्यक्ष (शायद जनरल मानेकशा) ने कहा था कॉमन सेंस इज ए वेरी अनकॉमन थिंग, यानी सामान्य ज्ञान भी सभी में नहीं होता है। इसलिए अब बुद्धिभ्रष्ट कहना वाजिब है। अरे भाई मैं विनेश फोगाट की बात कर रहा हूं। सेमीफाइनल तक सब ठीक था और अचानक वजन बढ़ने की वजह से प्रतिस्पर्धा से ही बाहर हो गयी। सारे विशेषज्ञ ऐसे जानकारी देने लगे मानो वे सारे खुद पेरिस में उपलब्ध हो।
कभी तो सच बोल दिया करो यार कि गुज्जू भाई ने संदेश भेजा और बिना सोचे समझे लगे ज्ञान बधारने। लेकिन अब देश की पब्लिक पहले जैसी नहीं रही और जनता का सवाल करना भी भाई लोगों को अखरने लगा है।
एक दिन में 2 किलो सात सौ ग्राम वजन बढ़ा तो क्यों बढ़ा, यह स्वाभाविक सवाल भी उनलोगों के जेहन में नहीं आता है। खैर जनता की नजरों में उसकी मेहनत को सम्मान मिला है, यह कोई कम नहीं है।
इसी को देश का प्यार कहते हैं। बुद्धिभ्रष्ट लोगों को विनेश के पदक से ज्यादा बांग्लादेश में हिंदुओं की प्रताड़ना की चिंता है। किसी ने वहां के खिलाड़ी की एक तस्वीर भी जारी कर दी, जिसमें वह अपने ही घर में भारतीय टीवी पर अपना घऱ जलाने की खबर देख रहे हैं। हद है झूठ बोलने की।
इसी बात पर फिल्म एयरलिफ्ट का यह गीत याद आने लगा है। यह फिल्म इराक द्वारा कुवैत पर हमला की पृष्टभूमि पर बनायी गयी थी। इस गीत को लिखा था कुमार ने और संगीत में ढाला था अनु मलिक ने। इसे अक्षय कुमार और निमरत कौर पर फिल्माया गया था। गीत के बोल कुछ इस तरह है।
तेनु इतना मैं प्यार करां इक पल विच सौ बार करां
तू जावे जे मैनू छड्ड के मौत दा इंतज़ार करां
के तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ ये तू कभी सोच ना सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ ये तू कभी सोच ना सके
कुछ भी नहीं है ये जहां तू है तो है इसमें ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं है ये जहां तू है तो है इसमें ज़िन्दगी
अब मुझको जाना है कहाँ के तू ही सफ़र है आख़िरी
के तेरे बिना जीना मुमकिन नहीं न देना कभी मुझको तू फ़ासले
तुझको कितना चाहती हूँ ये तू कभी सोच ना सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ ये तू कभी सोच ना सके
आँखों की है ये ख्वाहिशें के चेहरे से तेरे ना हटे
नींदों में बस तेरे ख़्वाबों ने ली है करवटें
के तेरी ओर मुझको ले के चले ये दुनिया भर के सब रास्ते
मैं तुझको कितना चाहता हूँ ये तू कभी सोच ना सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ ये तू कभी सोच ना सके
अब कितना चाहते हैं, यह देखना है कि दिल्ली में मऩीष सिसोदिया को देख आइये। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली तो पूरी पार्टी को नये सिरे से मानो संजीवनी मिल गयी। शीर्ष अदालत ने ठीक ही कहा कि निचली अदालतें और यहां तक की हाईकोर्ट भी सिर्फ जिम्मेदारी टाल रही हैं। सभी को पता होना चाहिए कि भारतीय कानून के मुताबिक जमानत ही अधिकार है और बार बार मामले के ठेलाठेली के नाम पर इस अधिकार से सिसोदिया को वंचित किया गया है। जाहिर है कि बाहर आया है तो बवाल फिर से मचायेगा और हरियाणा का चुनाव संचालन अपने हाथ में लेते ही वहां भी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनेगा।
अब पीछे पीछे अरविंद केजरीवाल और सत्येंद्र जैन का भी नंबर लगेगा क्योंकि सभी के मामले में सच यही है कि अदालत में स्वीकार होने लायक सबूत एक भी नहीं है। इसके बाद भी अगर केंद्र सरकार सच को स्वीकार ना करे तो यह भी मान लेना चाहिए कि जैसा बीज वे बो रहे हैं, बाद में उसकी फसल भी वही काटेंगे। साथ में अनेक अफसरों को भी रिटायर होने के बाद भी शायद जेल जाना पड़ेगा। फाइलों में कौन सा सांप कहां कुंडली मारकर बैठा हुआ है, बस वही राज खुलना बाकी है।