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दिल्ली हादसा, बार बार एक ही गलती क्यों

नईदिल्ली यानी राष्ट्रीय राजधानी में 27 जुलाई की शाम को बाढ़ में डूबे कोचिंग संस्थान के पुस्तकालय के अंदर मौजूद सदमे में डूबे छात्रों ने अपनी बाल-बाल बचने की दर्दनाक कहानी साझा की।

सांस लेने के लिए हांफना, मेजों और कुर्सियों पर चढ़ना, रस्सियों से खींचे जाना। 20 वर्षीय छात्रा राऊ के आईएएस स्टडी सर्किल बेसमेंट सेंटर से खाना खाने के लिए निकली और कुछ ही मिनटों बाद, वहां पानी भर गया।

नाम न बताने की शर्त पर उसने बताया कि उस समय लाइब्रेरी के अंदर करीब 30 छात्र थे। उसने बताया कि कोचिंग सेंटर के कर्मचारियों ने छात्रों को पकड़कर बाहर आने के लिए रस्सियां ​​फेंकी। पिछले साल भारी बारिश के कारण गेट टूट गया था, लेकिन यह कोई गंभीर मामला नहीं था क्योंकि पानी लाइब्रेरी में नहीं घुसा था।

लेकिन कल बाढ़ जैसी स्थिति थी। हम सभी को ऐसा लगा जैसे पानी का पाइप फट गया हो। उसने बताया कि बचाव के दौरान अन्य छात्रों को ऊपर रहने के लिए कहा गया था।

मैं कुछ छात्रों के साथ बैठी थी जो भागने में सफल रहे। मैंने उन्हें सांत्वना दी और प्राथमिक उपचार में उनकी मदद की क्योंकि कांच का दरवाजा टूटने से उनके शरीर पर कट लगे थे।

लाइब्रेरी के शिक्षक भी घायल हो गए। मैं कभी नहीं भूल सकता कि मेरे दोस्त कैसे सांस के लिए हांफ रहे थे। वे संघर्ष कर रहे थे क्योंकि पानी गंदा था। मुझे याद है कि एक छात्र चिल्ला रहा था क्योंकि उसकी बहन अंदर फंस गई थी। वे तस्वीरें कभी नहीं भूली जा सकती, छात्र ने कहा।

एक अन्य छात्र ने कहा कि वे अंदर फंस गए थे लेकिन कांच का दरवाजा टूटने पर वे बाहर निकलने में सक्षम थे। पानी अंदर बहने लगा क्योंकि सड़क और बेसमेंट का स्तर एक ही है। पानी अंदर आने के बाद उन्होंने गेट बंद कर दिए।

हालांकि, पानी का बल इतना अधिक था कि सिर्फ पांच मिनट में पूरा बेसमेंट पानी से भर गया, छात्र ने बताया। यूपीएससी सीएसई की तैयारी कर रहे असम के 22 वर्षीय छात्र ने कहा हम सभी डरे हुए थे। हमें नहीं पता कि हम वापस कैसे जाएंगे।
अब हम अपनी पढ़ाई छोड़ सकते हैं, छात्र ने कहा। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं सभी छात्र लाइब्रेरी में बैठे थे। स्टाफ ने हमें बाहर जाने को कहा क्योंकि शाम 7 बजे लाइब्रेरी बंद हो जाती है। जब हम दरवाजे के पास पहुंचे तो पानी का दबाव इतना था कि कुछ ही मिनटों में हमारे घुटने पानी में डूब गए। पानी के बहाव के कारण सीढ़ियाँ चढ़ना भी मुश्किल हो गया। जब छात्रों को बाहर निकलने के लिए रस्सियाँ फेंकी गईं, तो पानी इतना गंदा था कि हमें कुछ भी ढूँढ़ने में परेशानी हो रही थी।
हम देख नहीं पा रहे थे। किसी ने मेरी रस्सी खींची, तब मैं बाहर निकल पाया, छात्र ने कहा। ऐसा अनुमान है कि राष्ट्रीय राजधानी में एक हज़ार से ज़्यादा कोचिंग सेंटर हैं जो छात्रों को उच्च शिक्षा कार्यक्रमों और सिविल सेवा में प्रवेश के लिए तैयार करते हैं।
ओल्ड राजिंदर नगर इलाके में कई कोचिंग सेंटर हैं, जहाँ यह दुर्घटना हुई। शनिवार को हुई घटना के तुरंत बाद छात्रों ने सड़कों पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ओल्ड राजिंदर नगर इलाके में छात्रों का एक बड़ा समूह इकट्ठा हुआ। पुलिस द्वारा उन्हें मनाने के बार-बार प्रयास के बावजूद, विरोध जारी रहा।
कल दोपहर 2.30 बजे तक विरोध प्रदर्शन पूसा रोड तक फैल गया। इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस दल और त्वरित प्रतिक्रिया इकाइयों की तैनाती की गई। शाम को प्रदर्शनकारियों को जबरन हटा दिया गया। पुलिस ने कहा कि वे छात्रों के भविष्य को देखते हुए मामला दर्ज नहीं करेंगे। लेकिन इसके बीच यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है कि क्या सरकार और संबंधित विभागों को जल प्रवाह के ऐसे खतरों की जानकारी नहीं है। अगर जानकारी नहीं है तो पिछले सालों के स्पष्ट संकेतों के बाद भी कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया और बेसमेंट में कोचिंग सेंटर चलाने की गड़बड़ी की जांच पहले क्यों नहीं हुई। क्या सरकार भी कार्रवाई के लिए किसी हादसे का इंतजार कर रही है।

देश में यह अजीब स्थिति है कि पूर्व चेतावनियों को हमेशा से सरकारी स्तर पर नजरअंदाज किया जाता है और समय रहते सुरक्षा के इंतजाम नहीं किये जाते हैं। जिन तीन छात्रों की मौत इस हादसे में हुई, उनके तथा उनके परिवार वालों के ऊपर दुख का ऐसा पहाड़ टूटने की सरकारी जिम्मेदारी आखिर किसी  की तो बनती है। यह सारा कुछ सिर्फ कोचिंग सेंटर चलाने वालों के माथे पर थोपने वाली कार्रवाई नहीं है। बार बार ऐसे हादसों के बीच सरकार अपने लोगों की जिम्मेदारी आखिर कब तय करने का साहस जुटा पायेगी।

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