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नीट के बाद अग्निवीर योजना पर हमला

राजग के दो सहयोगी दल पहले ही जता चुके हैं मतभिन्नता

राष्ट्रीय खबर

नई दिल्ली: नीट मुद्दे पर सरकार की कड़ी आलोचना करने के बाद विपक्ष अब अगले सप्ताह संसद में विवादास्पद अग्निवीर योजना को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। नीट यूजी मामले की लीपापोती में शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान की फजीहत हो चुकी है। उन्होंने पहले ही बयान दे दिया था कि कोई पेपर लीक नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद पूरा मामला प्याज के छिलके की तरह परत दर परत उतर रहा है। अब तो इसकी आंच गुजरात तक पहुंच चुकी है। नीट  के मुद्दे पर राहुल गांधी का माइक बंद होने के लेकर भी लोकसभा अध्यक्ष निशाने पर आ गये है। उन्होंने सफाई दी है कि उनके पास माइक बंद करने का कोई बटन नहीं होता है। इस पर विपक्ष ने उल्टा सवाल कर दिया कि फिर लोकसभा अध्यक्ष की सहमति के बिना ऐसा काम कौन करता है। इस नीट प्रकरण के बाद अब अग्निवीर योजना पर भी विपक्ष की तरफ से हमला होना तय है।

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बनी इस योजना को विपक्षी दलों ने खत्म करने की मांग की है। विपक्ष संसद में सरकार द्वारा अपने विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहा है। नीट विवाद के कारण पहले से ही दबाव में चल रही भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को अब अग्निवीर योजना को लेकर और अधिक हमले का सामना करना पड़ रहा है।

कांग्रेस के 2024 के लोकसभा घोषणापत्र में अग्निवीर योजना को खत्म करने का वादा किया गया है, जिसे मोदी सरकार ने जून 2022 में पेश किया था। एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) (जेडी-यू) ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को अपना समर्थन देने की पुष्टि की, जिससे नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

सूत्रों ने कहा कि नीतीश और नायडू ने कई मांगें रखीं। उन्होंने कहा कि भाजपा नेतृत्व जेडी-यू और टीडीपी के शीर्ष नेताओं के साथ सत्ता-साझेदारी की बातचीत को सुलझाने के लिए काम कर रहा है। मोदी की सरकार को टिका रखने वाले इन दोनों दलों को अग्निवीर को लेकर अपने अपने इलाके में पनप रहे असंतोष की जानकारी है।

ऐसे में इन दोनों दलों यानी टीडीपी और जेडीयू को अपने वोट बैंक की चिंता भी सता रही है। वे चुनाव के दौरान जो कुछ बोल चुके हैं, उससे अगर पीछे हटते हैं तो उन्हें भी जनता का भरोसा तोड़ने का दोषी समझा जाएगा और दोनों ही दल चुनावी राजनीति को समझते हुए ऐसा खतरा नहीं उठा सकते।

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