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मेरी आवाज सुनो.. .. .. ..

माइक बंद होने की घटना को पूरे देश ने देखा इसलिए लोकसभा अध्यक्ष चाहे जो भी दलील दें पर जनता को सच का पता है। ऊपर से कैमरे का खेल फिर से चालू हो गया है। आखिर इन्हें नियंत्रित जो लोग करते हैं, वे दरअसल कौन लोग हैं। पूर्व की व्यवस्था को सही मानें तो वहां तकनीकी कर्मचारी बैठे रहते हैं, जिनका काम माइक और कैमरा का संचालन होता है।

यह कर्मचारी जब नेता प्रतिपक्ष की माइक बंद कर देते हैं, कैमरा उनसे अलग हटा लेते हैं तो उनके इतिहास की जांच भी जरूरी हो जाता है। आवाज दबाने का खेल अब पब्लिक को अच्छी तरह समझ में आ गया है। वह भी इसलिए क्योंकि अभी जो मुद्दा बहस के केंद्र में है, वह पूरे देश को प्रभावित करने वाला है।

नीट यूजी के प्रश्न पत्र लीक हुए हैं, इसकी जांच करते हुए एक एक कर गिरफ्तारियां भी होने लगी हैं। पर सरकार अब तक इस परीक्षा को रद्द करने को तैयार नहीं है। फिर से इस आरोप को सही माना जाएगा कि दरअसल परीक्षा के इस नौटंकी के पीठ पीछे अच्छी खासी वसूली हो चुकी है। इस किस्म की दुकानदारी अगर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ हो रही है तो बाकी का क्या हाल है, अच्छी तरह समझा जा सकता है।

सरकार को दिक्कत इस बात की है कि इस बार विरोधियों का स्वर पहले से काफी ऊंचा है और बार बार एक टाइप का खेल दोहराने से जनता भी खेल को समझ चुकी है। सुना है कि अडाणी जी अपने सौर ऊर्जा परियोजना के लिए चीन से कुशल मजदूर मंगाने के लिए वीजा का आवेदन कर चुके हैं। इससे पहले के आरोपों को आधार मिलता है।

वैसे सरकार ने बड़ी चालाकी से इस औद्योगिक घराने के वाया दुबई चीनी कनेक्शन का मुद्दा ही दबा दिया है। अगले चंद दिनों में अगर फिर से राहुल गांधी अडाणी का राग अलापने लगे तो कोई अचरज नहीं है। मोदी जी की परेशानी यह है कि ना चाहते हुए भी सदन में फिर से महुआ मोइत्रा आ चुकी हैं।

ऐसे में एक साथ दो दो मुंह के बल्लमों का संभालना कठिन हो जाएगा। मोदी सरकार के दूसरे मंत्री इस किस्म के हमलों का जबाव देने के लिए अभ्यस्त नहीं है। लिहाजा सरकार फिर से लोकसभा अध्यक्ष के भरोसे हो जाएगी। अब बेचारे ओम बिड़ला जी भी कितनी बार माइक बंद करेंगे। इस बार का माहौल ही कुछ बदला हुआ है।

इसी बात पर फिल्म नौनिहाल का यह प्यारा सा गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था कैफी आजमी ने और संगीत में ढाला था मदन मोहन ने। इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

मेरी आवाज़ सुनो, प्यार के राज़ सुनो

मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रखा था

उसके परदे मैं तुम्हे दिल से लगा रख्ह था

था जुदा सबसे मेरे इश्क़ का अंदाज़ सुनो

ज़िन्दगी भर मुझे नफ़रत सी रही अश्कों से

मेरे ख्वाबों को तुम अश्कों में डुबोते क्यों हो

जो मेरी तरह जिया करते हैं कब मरते हैं

थक गया हूँ मुझे सो लेने दो रोते क्यों हो

सो के भी जागते ही रहते हैं जाँबाज़ सुनो …

मेरी दुनिया में ना पूरब है ना पश्चिम कोई

सारे इन्सान सिमट आये खुली बाहों में

कल भटकता था मैं जिन राहों मैं तन्हा तन्हा

काफ़िले कितने मिले आज उन्हीं राहों मैं

और सब निकले मेरे हमदर्द मेरे हमराज़ सुनो …

नौनिहाल आते हैं अरथी को किनारे कर लो

मैं जहाँ था इन्हें जाना है वहाँ से आगे

आसमाँ इनका ज़मीं इनकी ज़माना इनका

हैं कई इनके जहाँ मेरे जहाँ से आगे

इन्हें कलियां ना कहो हैं ये चमनसाज़ सुनो …

क्यों सँवारी है ये चन्दन की चिता मेरे लिये

मैं कोई जिस्म नहीं हूँ के जलाओगे मुझे

राख के साथ बिखर जाऊंगा मैं दुनिया में

तुम जहाँ खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे

हर कदम पर है नए मोड़ का आग़ाज़ सुनो …

इधर न चाहते हुए भी हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गये हैं। सिर्फ जेल से बाहर ही नहीं आये हैं बल्कि बाहर आते ही बोलना भी शुरु कर दिया है। यहां पर माइक बंद करने की कोई व्यवस्था नहीं है तो पूरा देश हेमंत सोरेन की बातों को सुन रहा है और साथ ही यह समझ रहा है कि दरअसल ईडी सहित केंद्रीय एजेंसियों का खेल कैसे चलता है। अदालत ने मान लिया है कि ईडी के आरोपों में कोई दम नहीं है।

रही बात दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और दो अन्य मंत्रियों की। आस पास का माहौल देखकर वहां की अदालतों पर कोई मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। गलती से अगर वे लोग भी बाहर आ गये तो कहां कहां पर माइक बंद करते फिरेंगे हुजूर।

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