विपक्ष ने जता दिया पहले जैसा नहीं चलेगा
-
सरकार की मनमर्जी नहीं चलेगी
-
विपक्ष भी जनता की आवाज है
-
सांसदों को बाहर नहीं भेजा जाए
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः स्पीकर चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष में नहीं बन पाई आम सहमति, संसद में शुरू हुआ टकराव, चार साल बाद वोटिंग हुई। वैसे ध्वनिमत से ही भाजपा के ओम बिड़ला को निर्वाचित घोषित किया गया। वैसे इस एक घटना ने साफ कर दिया कि बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में भाजपा अपनी मर्जी से सब कुछ नहीं कर पायेगी। दूसरी तरफ यह बात भी सामने आ गयी कि कई महत्वपूर्ण विधेयकों को सदन से जल्दबाजी में पारित कराने के लिए भाजपा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों पद अपने पास रखना चाहती है।
इससे पूर्व नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि देश चलाने के लिए आम सहमति जरूरी है। इसलिए वह सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं। लेकिन उनकी सरकार लोकसभा अध्यक्ष पद पर विपक्ष के साथ आम सहमति नहीं बना सकी। मोदी सरकार की तीसरी सरकार की शुरुआत में संसद आम सहमति के बजाय सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव में तब्दील हो गई।
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव आमतौर पर सर्वसम्मति के आधार पर किया जाता है। कांग्रेस समेत विपक्षी खेमे की शर्त थी कि वे बीजेपी के स्पीकर उम्मीदवार को समर्थन देने को तैयार हैं। हालांकि परंपरा के मुताबिक उपसभापति का पद विपक्ष को दिया जाना चाहिए। संविधान में प्रावधान के बावजूद पिछले पांच वर्षों में कोई उपसभापति नियुक्त नहीं किया गया है।
48 साल बाद बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच मुकाबला हुआ। जिसमें संख्याबल अधिक होने की वजह से ओम बिड़ला विजयी घोषित किये गये। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेण रिजिजू आसन तक ले गये।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में अध्यक्ष पद के लिए केवल तीन बार मतदान हुआ है। पहली बार 1952 में। दूसरी बार 1967 में। तीसरी बार आपातकाल के बाद 1976 में। विरोधियों का तर्क है कि नरेंद्र मोदी के तहत भी अघोषित आपातकाल की स्थिति में लौट आई है। लोकसभा स्पीकर चुनाव में भी वोटिंग दोबारा होती है। नरेंद्र मोदी आम सहमति की बात करते हैं लेकिन अपनी मर्जी थोपना चाहते हैं। जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के चार सांसदों ने भी एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया है। दूसरी तरफ प्रारंभिक नाराजगी के बाद भी टीएमसी ने इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी का समर्थन किया है।
ओम बिड़ला के आसन ग्रहण करने के बाद अपने अपने संबोधन में राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस बार सरकार यदि अपनी मर्जी थोपना चाहेगी तो उसका विरोध होगा। दोनों ने आसन को भी तटस्थ रहकर विपक्ष को भी पूरा मौका देने की बात कहकर उन्हें पिछले कार्यकाल की याद दिला दी।
श्री गांधी ने कहा कि विपक्ष का संख्याबल कम होने को नजरअंदाज करना गलती है क्योंकि वे भी देश की जनता के समर्थन से ही चुनकर आये हैं। इसलिए देश की जनता के इस हिस्से की बात भी सदन के अंदर सुनी जानी चाहिए। दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने नये संसद भवन का उल्लेख करते हुए कहा कि उम्मीद है कि इस बार वैसे कुछ नहीं होगा, जो देश ने पिछले लोकसभा सत्र में देखा है और सरकार के विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कराने के लिए थोक भाव में सांसदों को निलंबित नहीं किया जाएगा।