दिल का खिलौना ही था कि हर रात को सपना देखते थे कि गद्दी आ रही है, इस बार पटखनी दे ही देंगे। लेकिन प्रभु श्रीराम ने ऐसी चाल चल दी कि दोनों तरफ एक जैसा दर्द है। दोनों खेमों में जीत के बाद भी उदासी का माहौल है और अंदर ही अंदर यह कसक है कि काश और सीटें जीत जाते।
अपने पूर्व पप्पू (अब नहीं कहा जा सकता) यानी राहुल गांधी ने दो भारत जोड़ो यात्रा कर भाजपा के उस प्रचार को ही ध्वस्त कर दिया है, जिसके बारे में खुद राहुल गांधी कहते हैं कि उन्हें नकारा साबित करने के लिए भाजपा के हजारों करोड़ रुपये खर्च किये थे। सारा पानी में चला गया तो दुख तो होगा ही। एक नहीं दो दो सीट से नाव जीतकर आ गया तो संसद में फिर से अडाणी पर सवाल उठायेगा।
इस बार भी अगर ओम बिड़ला होते तो भी वह राहत दे पाते अथवा नहीं उसमें संदेह है। दरअसल पूर्ण बहुमत नहीं होने का यह खामियजा भी है। जो भाई लोग सरकार को समर्थन दे रहे हैं, वे हर बात पर सहमत होंगे, इसकी बहुत कम गुंजाइश है।
खैर विपक्ष भी कौन सा एकजुट है। दिल्ली में टकराने का नतीजा देखकर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से पल्ला झाड़ लेने का एलान कर दिया पर इससे क्या होता है। अगले पांच साल तक को सारे भाजपा के ही सांसद होंगे। दूसरी तरफ पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को यह उम्मीद थी कि अंतरिम जमानत के बाद उन्हें बाहर रहने का कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा।
बदकिस्मती से वह भी यही दोहरा रहे हैं कि दिल का खिलौना हाय। बेचारे को फिर से तिहाड़ जेल जाना पड़ गया है और वहां ईलाज ठीक से नहीं होने की शिकायत पर भी ईडी ने कोर्ट से अपनी आपत्ति दर्ज करायी है।
सरकार की तरफ आते हैं तो मोदी कैबिनेट के मंत्री एचडी कुमारस्वामी गुजरात पर हो रही मेहरबानी पर सवाल उठा रहे हैं और यह पूछ रहे हैं कि गुजरात में रोजगार देने वाली कंपनी को भारत सरकार इतना अनुदान क्यों दे रही है। इससे अधिक रोजगार तो बेंगलुरु के छोटे और मध्यम उद्योग देते हैं पर उन्हें तो कोई सबसिडी नहीं दी जाती है।
यह माजरा क्या है। कुमार स्वामी का सवाल संसद के भीतर भी तूफान पैदा कर सकता है। दरअसल अपने मोदी जी को वहां राहुल के अलावा महुआ मोइत्रा को भी झेलना पड़ेगा। बदकिस्मती से वह फिर से चुनाव जीतकर आ चुकी हैं और अब भी उसी तेवर में हैं, जिसकी वजह से वह मोदी सरकार के आंख की किरकिरी बन गयी थी।
इसी बात पर एक पुरानी फिल्म गूंज उठी शहनाई का यह गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था भरत व्यास ने और संगीत में ढाला था बसंत देसाई ने। इसे लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
टूट गया, टूट गया
दिल का खिलौना हाए टूट गया
कोई लूटेरा आ के लूट गया
हुआ क्या कुसूर ऐसा सैय्य़ा हमारा
जाते हुये जो तूने हमें ना पुकारा
उल्फ़त का तार तोड़ा, हमे मझधार छोड़ा
हम तो चले थे ले के तेरा ही सहारा
साथी हमारा हम से छूट गया
कैसी परदेसी तू ने प्रीत लगाई
चैन भी खोया, हम ने नींद गँवाई
तेरा ऐतबार कर के, हाय इंतजार कर के
खुशियों के बदले ग़म की दुनिया बसाई
जालिम ज़माना हम से रूठ गया।
अब रूठने की बात चल रही है तो झारखंड में भी महागठबंधन का क्या होगा, इस पर सवाल उठने लगे हैं। जोबा मांझी सांसद बनी है तो विधानसभा की एक सीट खाली होगी। यह झामुमो की सीट है और एक झामुमो नेता ने अचानक यह कह दिया है कि उनकी पार्टी तो अगले विधानसभा में सभी 81 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार है। जाहिर है कि सहयोगी कांग्रेस की तरफ से इस बयान की प्रतिक्रिया आयी है। अभी हेमंत सोरेन के जेल में होने के दौरान ही कल्पना सोरेन के विधायक बनने के बाद से सत्ता के समीकरणों का ऊंट किस करवट बैठने वाला है, इस पर सभी की नजर है।
यह तो हुई एक तरफ की बात अब दूसरे तरफ की देख लें यानी भाजपा की तो दो सीनियर एमपी यानी विद्युत वरण महतो और बीडी राम फिर से मंत्री बनने से चूक गये हैं। जाहिर है कि दो महत्वपूर्ण जातिवर्गों पर इस फैसले का असर तो होगा। झारखंड में महतो वोट को नजरअंदाज करना दूसरी परेशानी है। पहली परेशानी तो यह है कि आदिवासी वोट अब भाजपा से छिटक गया है और शायद उड़ीसा के मुख्यमंत्री के जरिए उसे वापस लाने की कोशिश हो रही है। इसका एक मतलब यह निकलता है कि अब झारखंड भाजपा के आदिवासी नेताओं की अहमियत भी क्या कम होने वाली है।