सीमा पर चीन की चुनौतियों का जबाव देने की नई तैयारी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः गलवान घाटी की घटना के बाद से भारत अपने पड़ोसी चीन को लेकर पूरी तरह सतर्क है। वैसे गलवान घाटी के संघर्ष के बाद भी कई मोर्चों पर तनातनी हुई है। दरअसल इस हादसे के तुरंत बाद भारतीय टैंक के उस ऊंचाई पर पहुंच जाने की घटना ने चीन की सेना को हैरान कर दिया था। उसके बाद से भारत नये सिरे से चीन को उसकी सीमा के बिल्कुल करीब से चुनौती देने की तैयारियों में जुटा है। इसके तहत नाओमा के पास वर्तमान में केवल एक हवाई पट्टी है। सीमा सड़क संगठन उस हवाई पट्टी को पूर्ण हवाई अड्डे में बदलने के लिए काम कर रहा है।
इस संदर्भ में सीमा सड़क संगठन के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने रविवार को कहा कि लद्दाख के नायोमा एयरबेस पर 2.7 किमी रनवे का निर्माण अक्टूबर 2024 तक पूरा हो जाएगा। संयोग से, भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच लद्दाख में सीमा विवाद पर लगभग 20 बार चर्चा हो चुकी है।
लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। इसके विपरीत चीन अपने रुख पर कायम है। इस माहौल में, नाओमा हवाई पट्टी का बुनियादी ढांचा विकास, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा के बहुत करीब है, काफी महत्वपूर्ण है। इस बीच, सीमा सड़क संगठन के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने रविवार को कहा, परियोजना को जल्द पूरा करने के लिए हम शिफ्ट में काम कर रहे हैं। वहां की मिट्टी बहुत उबड़-खाबड़ है। लेकिन बीआरओ सभी कदम समय पर उठा रहा है।
हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय वायुसेना जल्द ही इस जगह का उपयोग कर सके। इससे भारतीय वायुसेना का विकल्प भी बढ़ेगा। ध्यान दें कि इस नाओमा एयरपोर्ट प्रोजेक्ट पर कुल 218 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। उन्होंने पिछले साल सितंबर में इस परियोजना की आधारशिला रखी थी। इस परियोजना का प्रबंधन कर्नल पैनुंग डोमिंग नामक एक महिला बीआरओ अधिकारी द्वारा किया जा रहा है।
इस संदर्भ में बीआरओ प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने कहा, ‘यह परियोजना भारतीय सेना के लिए गेम चेंजर होगी।’ ज्ञात हो कि नाओमा एयर बेस वास्तविक नियंत्रण रेखा से केवल 23 किमी दूर समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह एयरबेस कई दशकों तक बेकार पड़ा रहा। फिर 2009 में भारतीय वायुसेना ने इसे दोबारा चालू किया।