जो कुछ बोला सभी पर तो भरोसा किया लेकिन अब तो चुनावी चंदे का फंडा भी समझ में आ रहा है। क्या हमारे इसी विश्वास का ऐसा ईनाम दिया जा रहा है। मान लिया कि हर खाते में पंद्रह पंद्रह लाख देने की बात एक जुमला थे। लेकिन बाकी सब का क्या हुआ।
पंडित नेहरू को याद कर आज तो नहीं चल सकते। अरे भाई दस साल से आप कुर्सी पर हो तो आप अपनी उपलब्धि बताओ ना। कहा था दो करोड़ रोजगार दूंगा, दिया क्या। अचानक से नोटबंदी करते वक्त कहा था कि काला धन वापस आ जाएगा तो आया क्या। आंकड़े तो बताते हैं कि स्विस बैंक में भारतीयों का रुपया और बढ़ गया।
फिर जीएसटी को लागू कर दिया और यह दिलासा दिया कि इससे कीमतें कम और स्थिर हो जाएंगी, हुआ क्या। बीच में कोरोना आ गया तो आपके कहने पर हमलोगों ने ताली और थाली भी बजायी तो महामारी भाग गयी क्या। इतना ज्यादा भरोसा किया था लेकिन अब चुनावी चंदे का कारोबार सामने है। इस पर भी सफाई तो दो।
जिसके यहां छापामारी हुई, वही बॉंड खरीदकर तुम्हें दे आया और छुटकारा पा गया, इस पर भी कुछ जानकारी दीजिए। हर बार इस तरीके से भरोसा किया तो उसका क्या नतीजा निकला है, यह भी सोचने का समय आ गया है।
इसी बात पर फिल्म लोफर का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और सुरों में ढाला था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। इसे लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।
मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं
तू मुझे आज़माने की कोशिश न कर
मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं
तू मुझे आज़माने की कोशिश न कर
ख़ूबसूरत है तू तो हूँ मैं भी हसीं
मुझसे नज़रें चुराने की कोशिश न कर
मैं तेरे इश्क़ में
शौक़ से तू मेरा इम्तहान ले -२
तेरे कदमों पे रख दी है जान ले
बेकदर बेकबर मान जा ज़िद ना कर
तोड़ कर दिल मेरा ऐ मेरे हमनशीं
इस तरह मुस्कुराने की कोशिश ना कर
ख़ूबसूरत है तू तो हूँ मैं भी हसीं
मुझसे नज़रें चुराने की कोशिश न कर
मैं तेरे इश्क़ में
फेर ली क्यूँ नज़र मुझसे रूठ कर -२
दिल के टुकड़े हुये टूट टूट कर
क्या कहा दिलरूबा तू है मुझसे ख़फ़ा
इक बहाना है ये हक़ीक़त नहीं
यूँ बहाने बनाने की कोशिश ना कर
ख़ूबसूरत है तू तो हूँ मैं भी हसीं
मुझसे नज़रें चुराने की कोशिश न कर
मैं तेरे इश्क़ में
कब से बैठी हूँ मैं इंतज़ार में -२
झूठा वादा ही कर कोई प्यार में
क्या सितम है सनम तेरे सर की क़सम
याद चाहें ना कर तू मुझे ग़म नहीं
हाँ मगर भूल जाने की कोशिश ना कर
ख़ूबसूरत है तू तो हूँ मैं भी हसीं
मुझसे नज़रें चुराने की कोशिश न कर
मैं तेरे इश्क़ में
भरोसे का मतलब अंधा होना नहीं होता है भाई साहब। कई बार अपने दिमाग में जो सवाल उभरते हैं, उसका उत्तर देश का मैंगो मैन चाहता है। अब तो हालत यह है कि मोदी की तरह दूसरे नेता भी मीडिया के सवालों के भागते फिर रहे हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान भी अइसा ही कीजिएगा क्या। इ इंडिया भी बड़ा गजब कंट्री है और यहां का पब्लिक और और भी गजब है। चुपचाप बैठा हुआ है तो यह मत सोच लीजिए कि वह आपकी हर बात को मान रहा है। अब वह अपनी जेब को भी हर बार टटोल रहा है और पता नहीं कब उठ खड़ा होगा और कुछ बवाल कर देगा।
यह तो बाहर की बात है, पार्टी के अंदर भी सारे लोग आपके भरोसेमंद है, यह सोच आपकी गलती है। बहुत सारे लोग सिर्फ मौके की तलाश में है। कभी भी लंगड़ी मार सकते हैं और लोकसभा चुनाव इसका सही मौका माना जाता है। इनके बीच अरविंद केजरीवाल की यह बात सही साबित हो रही है कि भाजपा सिर्फ आम आदमी पार्टी से भयभीत है।
वरना इतना तामझाम और आरोपों का ढिंढोरा पीटने के बाद भी जनता के बीच कोई नतीजा निकलता दिख नहीं रहा है। चारों तरफ से घेराबंद और बचाव के लिए ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स। केजरी बाबा ने जो ईडी का खौफ ही खत्म कर दिया। अइसे में चार सौ पार कइसे पहुंचेंगे हुजूर।