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सिर्फ किसी को छिपाने की दलील है एसबीआई की

चुनावी बॉंड पर एसबीआई की दलीलों से सहमत नहीं हैं विशेषज्ञ


  • खरीद से भूनाने तक की प्रक्रिया आसान

  • कोई चाहे तो एक क्लिक से जान सकता है

  • आम ग्राहक का लेनदेन भी डिजिटल है आज


राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की चुनावी बांड योजना को रद्द करने और दानकर्ताओं और लेनदेन के विवरण को सार्वजनिक करने का आदेश देने के तीन सप्ताह बाद, बांड को संभालने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक, भारतीय स्टेट बैंक ने एक आवेदन दायर किया। उसने कहा है कि उक्त डेटा को प्रकट करने के लिए 30 जून तक समय विस्तार चाहिए।

इस मामले पर नजर रखने वालों का कहना है कि इतने दिनों तक चुप्पी साधे रखने के बाद सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देना ही गलत है। अगर वाकई ऐसी बात थी को फैसले के तुरंत बाद एसबीआई ऐसा आवेदन दे सकती थी। दरअसल इस फैसले को पहले से ही सरकार के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है, कार्यकर्ताओं, राजनीतिक पर्यवेक्षकों और विपक्षी दलों ने तुरंत एसबीआई द्वारा बताई गई समयसीमा की ओर इशारा किया, इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि आम चुनाव समाप्त होने तक डेटा का खुलासा नहीं किया जाएगा।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), चुनावी बांड मामले में चार याचिकाकर्ताओं में से एक, विस्तार के लिए एसबीआई की याचिका को चुनौती देने के लिए तैयार है, कांग्रेस ने सवाल किया कि 30 जून तक रोक लगाने के लिए एसबीआई पर कौन दबाव डाल रहा था। कहा गया है कि यह सारा डेटा जो सिर्फ एक क्लिक से सामने आ सकता है।

पूरे मामले की जानकारी रखने वालों के मुताबिक एसबीआई ने यह चुनावी बॉंड देश के 29 शाखाओं से जारी किये हैं। एक विशेषज्ञ ने कहा, जब आप चुनावी बांड खरीदते हैं, तो आपको एसबीआई की उन 29 शाखाओं में से एक में जाना होगा जहां बांड बेचे जाते हैं। इससे पहले कि वे आपको बांड सौंपें, वे रिकॉर्ड में छिपे हुए अद्वितीय अल्फ़ान्यूमेरिक नंबर को लिखते हैं, जिसे अमूक व्यक्ति ने बांड नंबर खरीदा है। जब कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल को बांड सौंपता है और राजनीतिक दल इसे भुनाने के लिए एसबीआई के पास वापस जाता है, तो बैंक बांड को भुनाने से पहले रिकॉर्ड में छिपे हुए नंबर और क्रेता के नाम की जांच करता है। वे रिकॉर्ड भी करते हैं राजनीतिक दल का नाम। ये सभी प्रविष्टियाँ और डेटा वास्तविक समय में दर्ज किए जाते हैं। इसलिए एसबीआई की दलील सिर्फ सच्चाई छिपाने की कोशिश है।

एक अन्य जानकार ने पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए उदाहरण दिया कि यदि कोई 29 नामित शाखाओं में से किसी एक में जाता है और 10 करोड़ रुपये का बांड खरीदता है, तो वह स्वतंत्र है किसी भी योग्य राजनीतिक दल को दान देने के लिए। मान लीजिए कि वह पटना में किसी पार्टी को देता है और पार्टी उसे लेती है और कोलकाता में अपनी निर्दिष्ट शाखा में अपने खाते में जमा कर देती है। एसबीआई के आवेदन में कहा गया है कि व्यक्ति के बांड, पे-इन-स्लिप और केवाईसी विवरण को भौतिक रूप में संग्रहीत किया गया था और फिर एक सीलबंद कवर में मुंबई में मुख्य शाखा में भेजा गया था। यहां पर भ्रम की स्थिति यह है कि सारा कुछ डिजिटल होने के बाद अब एसबीआई इन आंकड़ों के डिजिटल नहीं होने का तर्क कैसे दे रहा है। आम ग्राहक भी अपने बैंक खातों का जो संचालन आज करता है वह डिजिटल स्वरुप में बैंक में दर्ज होता है।

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