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खर्च कम करने की कवायद शीर्ष से हो

केंद्र सरकार अपना आर्थिक खर्च कम करने की बात कह चुकी है। इस माह के आरंभ में पेश किए गए अंतरिम बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने और बाहरी उधारी को सीमित करने पर नए सिरे से जोर दिया। वित्त वर्ष 25 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है जो वित्त वर्ष 24 (संशोधित अनुमान) की तुलना में 71 आधार अंकों के समेकन को दर्शाता है।

कर-जीडीपी अनुपात में भी इजाफा हुआ और यह वित्त वर्ष 24 के 10.1 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 25 (बजट अनुमान) में 11.7 फीसदी हो गया। कर-राजस्व उछाल में भी सुधार हुआ। इसके साथ ही राजस्व व्यय में नियंत्रित वृद्धि, पूंजीगत व्यय को प्रदान किए गए प्रोत्साहन के साथ मिलकर यह प्रदर्शित करती है कि उधार का एक बड़ा हिस्सा अब पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण की दिशा में निर्देशित है।

उल्लेखनीय बात है कि राजस्व व्यय और पूंजीगत आवंटन में अनुपात में जो गिरावट आई है वह संकेत देती है कि सरकार व्यय की गुणवत्ता सुधारने का प्रयास कर रही है जबकि इस दौरान वह राजकोषीय समेकन के मार्ग पर बने रहना चाहती है। इसके बीच यह समझने की आवश्यकता है कि केंद्र सरकार की तरफ से गैर उत्पादक खर्च को कम करने के लिए कौन से उपाय किये जा रहे हैं।

यह समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस पर साफ संकेत दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक हालिया पत्र बेहतर ढंग से आर्थिक वृद्धि और राजकोषीय समेकन का परीक्षण करता है। दिलचस्प बात यह है कि यह पत्र पूंजीगत व्यय को नए सिरे से परिभाषित करता है और विकास संबंधी व्यय पर नजर डालता है।

इसका दायरा व्यापक है क्योंकि इसमें सामाजिक और आर्थिक व्यय शामिल है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल, डिजिटलीकरण और जलवायु जोखिम को भी समेटे हुए है। इसका उद्देश्य है राजस्व व्यय के उन घटकों को शामिल करना जो वास्तव में भौतिक और मानव पूंजी निर्माण के रूप में सामने आ सकते हैं। इसके साथ ही पूंजीगत व्यय के उस हिस्से को अलग करना जो वृद्धि को बढ़ावा देने वाला नहीं हो।

वित्त वर्ष 25 में पूंजीगत व्यय के जहां जीडीपी के 3.4 फीसदी रहने का लक्ष्य तय किया गया है, वहीं विकास संबंधी व्यय के जीडीपी के 4.2 फीसदी के बराबर रहने का अनुमान है। आमतौर पर यह माना जाता है कि कम सरकारी व्यय अल्पावधि में आर्थिक वृद्धि को कमजोर करता है। परंतु राजकोषीय समेकन दीर्घावधि में वृद्धि को गति दे सकता है।

ऐसा दीर्घावधि में ब्याज दरों को कम करके किया जा सकता है। इससे निजी निवेश आएगा और उसी समय अधिक उत्पादक व्यय मसलन भौतिक और मानव पूंजी में सार्वजनिक निवेश तथा लक्षित सामाजिक व्यय के लिए राजकोषीय गुंजाइश बनेगी। इस बारे में पत्र में जो उपाय सुझाए गए हैं उनमें श्रम शक्ति को नए सिरे से कौशल संपन्न बनाना, डिजिटलीकरण में निवेश करना और ऊर्जा किफायत हासिल करना शामिल है। एक वृहद आर्थिक ढांचे को नियोजित करके उक्त पत्र में कहा गया है कि विकास संबंधी वास्तविक व्यय में एक फीसदी का इजाफा संचयी गुणक प्रभाव वाला हो सकता है और चार वर्ष में जीडीपी में पांच फीसदी का इजाफा कर सकता है।

उच्च श्रम उत्पादकता वाले क्षेत्रों (मसलन रसायन, वित्तीय सेवा और परिवहन आदि) में प्रशिक्षण और कौशल सहित रोजगार में एक वर्ष तक पांच फीसदी का इजाफा 2020 से 2031 तक की अवधि में जीडीपी में एक फीसदी की वृद्धि का सबब बन सकता है। इसी तरह डिजिटलीकरण और कम ऊर्जा गहनता से मध्यम अवधि में वृद्धि में इजाफा हो सकता है क्योंकि तकनीकी विकास को श्रम और पूंजी की मदद मिलेगी।

अल्पावधि में दिक्कत हो सकती है। ऋण-जीडीपी अनुपात में वृद्धि के रूप में हम ऐसा देख चुके हैं लेकिन दीर्घावधि के लाभ इसकी पूर्ति कर देंगे। सरकारी व्यय को विकास संबंधी व्यय की ओर नए सिरे से संतुलित करने से 2030-31 तक आम सरकारी ऋण-जीडीपी अनुपात 73.4 फीसदी तक आ जाएगा जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा था कि मध्यम अवधि में यह जीडीपी के 100 फीसदी का आंकड़ा पार कर जाएगा।

अंतरिम बजट में की गयी हालिया घोषणाओं में उभरते क्षेत्रों में शोध और नवाचार के लिए एक लाख करोड़ रुपये का फंड तथा छतों पर सौर ऊर्जा स्थापित करने की योजना ऐसे कदमों में शामिल है जो सरकारी आवंटन की गुणवत्ता सुधारने से संबंधित हैं। इनके बीच शीर्ष स्तर पर होने वाले प्रचार खर्च को भी शामिल कर लें तो यह अंततः देश की जनता पर ही बोझ है जो कई कारणों से कोरोना के बाद से ही वित्तीय संकट से जूझ रही है।

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