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पहले काला और अब लाल सागर की चुनौती

महासागरों पर युद्ध का असर वैश्विक होता है क्योंकि इससे जल मार्ग से होने वाले परिवहन की स्थिति बिगड़ती है। रूस और यूक्रेन के युद्ध में काला सागर अब ऐसा क्षेत्र पहले से बना हुआ है। रूस ने पहले ही यूक्रेन के अनाज निर्यात को इस समुद्री मार्ग से रोक दिया था। उस सागर में जगह जगह पर बिछाये गये बारूदी सुरंगों को साफ करने के लिए अब पड़ोस के तीन देशों ने मिलकर प्रयास करने का फैसला लिया है।

सभी युद्धों में निर्णायक क्षण होते हैं – महत्वपूर्ण मोड़ जब जुझारू लोगों को एहसास होता है कि युद्ध की दिशा और गति निर्णायक रूप से बदल गई है। यूक्रेन-रूस युद्ध में रूस की सच्चाई का क्षण 13 सितंबर, 2023 की सुबह आया, जब यूक्रेन ने रूस के काला सागर बेड़े के घर, क्रीमिया शहर सेवस्तोपोल में रूसी नौसैनिक लक्ष्यों और बंदरगाह बुनियादी ढांचे पर हमला किया। उस समय युद्ध में बड़े पैमाने पर अनदेखी की गई जगह, काला सागर में रूसी ठिकानों पर यूक्रेनी हमलों की बाढ़ देखी गई थी।

इसमें रूसी फ्लैगशिप, मोस्कवा पर एक घातक हमला और अक्टूबर 2022 में सेवस्तोपोल पर हमला शामिल था, जिसमें फ्रिगेट एडमिरल मकारोव और माइनस्वीपर इवान गोलूबेट्स बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। फिर भी, सितंबर 2023 में सेवस्तोपोल पर हमला रूसी नौसेना द्वारा युद्ध में अब तक अनुभव किए गए किसी भी हमले के विपरीत था।

एक समन्वित हमले में, यूक्रेनी क्रूज मिसाइलों और आत्मघाती स्पीडबोटों ने सेवस्तोपोल शिपयार्ड पर भयंकर तीव्रता से हमला किया, जिसमें एक उभयचर जहाज और एक पनडुब्बी सहित मरम्मत के दौर से गुजर रहे दो सैन्य जहाज नष्ट हो गए। नाराज रूस ने इसी ब्लैक सी पर अपनी तैनाती और मजबूत कर दी।

इससे वहां से गुजरने वाले परिवहन जहाजों के लिए नया संकट उत्पन्न हो गया। अब लाल सागर की तरफ देखते हैं तो वहां इजरायल वनाम हमास युद्ध के मैदान में हाउती विद्रोहियों के आने से नया संकट उत्पन्न हो गया है। लाल सागर में स्वेज नहर के जरिये वाणिज्यिक पोतों के आवागमन पर मंडरा रहे संकट समाप्त होने का कोई संकेत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।

यह भूमध्यसागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को जोड़ने वाला एक अहम मार्ग है और गाजा पट्‌टी तथा उसके आसपास के इलाके में इजरायल-हमास जंग के कारण इसे लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है। यमन में ईरान समर्थित हाउती विद्रोही गठजोड़ ने यमन और जिबूती के बीच बाब-अल-मांदेब खाड़ी में नौवहन पर हमले शुरू कर दिए। विद्रोही गठबंधन आश्चर्यजनक रूप से हथियारों से अच्छी तरह लैस है। उसने पोतरोधी बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है।

इससे पहले किसी लड़ाई में इतनी बड़ी तादाद में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया था। इनके साथ ही विद्रोहियों ने क्रूज मिसाइलों, ड्रोन और छोटी नौकाओं का उपयोग करके भी जहाजों पर हमला किया और उन्हें धमकाया। हाउती विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने इजरायल की ओर जा रहे पोतों पर हमले किए लेकिन वास्तव में यह सच नहीं है।

यह संभव ही नहीं है कि वे जान सकें कि कौन सा जहाज किस दिशा में जा रहा है। इन हमलों के परिणामस्वरूप कई प्रमुख पोत संचालकों ने स्वेज नहर और लाल सागर का मार्ग छोड़ देने का निर्णय लिया। इन पोत संचालक कंपनियों में मेर्स्क, हपाग-लॉयड और मेडिटेरेनियन शिपिंग कंपनी तथा कुछ प्रमुख तेल कंपनियां शामिल हैं।

वहां की परेशानियों की वजह से भारतीय नौसेना तक को सतर्क होना पड़ा है। इसके बाद भी हाउती विद्रोहियों के हमले जारी हैं। इसके परिणामस्वरूप भूमध्यसागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बीच नौवहन में लगने वाला समय और व्यय बहुत अधिक बढ़ गया है। तमाम पोत अपनी यात्राओं को स्थगित कर रहे हैं और अगर उन्हें यात्रा करनी ही पड़ रही है तो वे दक्षिण अफ्रीका में आशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) के रास्ते से आवागमन कर रहे हैं।

भारत के औद्योगिक संगठनों के हालिया अनुमानों के मुताबिक यूरोप तक पोत भेजने की लागत काफी बढ़ गई है। विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों में भारत के निर्यात की बात करें तो इसका असर उनके मार्जिन और उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता पर पड़ सकता है। भारत के पूर्वी तटों में से एक से निकला डीजल और जेट फ्यूल कार्गो पोत पहले ही विलंब से चल रहा है और उसकी दिशा बदल दी गई है।

अन्य वैश्विक एकीकरण वाले क्षेत्रों पर भी असर पड़ सकता है। 2023-24 में भारत की अप्रत्याशित रूप से मजबूत वृद्धि के लिए भी लाल सागर के हालात निकट भविष्य में सर्वाधिक अनिश्चितता वाले हालात बने रहने वाले हैं। पोतों के आवागमन का इस तरह बाधित होना आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को गहरी क्षति पहुंचाने वाला साबित होगा। यह मुद्रास्फीति के लिए भी बड़ा जोखिम साबित हो सकता है। वैश्विक स्तर पर ऐसी घटनाओँ का प्रभाव पूरी दुनिया पर आर्थिक तौर पर पड़ता है, यह अब आइने की तरह साफ है। लाल और काला सागर की इन दो समस्याओं के निदान की अभी कोई गारंटी नहीं है।

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