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लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बदल रहे हैं मोदी और शाह

निजी कंपनियों पर अधिक भरोसा किया दोनों ने


  • कोलकाता से यह सूचना बाहर आयी

  • पार्टी नेताओं की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं

  • दस प्रतिशत वोट बढ़ाने के लिए रणनीति


राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः लोकसभा चुनाव में दस प्रतिशत अधिक वोट लाने की अपील के साथ साथ अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दूसरी रणनीति पर काम करने में जुट गये हैं। इस बात का संकेत पहले ही मिल चुका है कि वर्तमान सांसदों में से करीब एक सौ सांसदों को अगले चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा। अंदरखाने की सूचनाओं पर भरोसा करें तो खास तौर पर पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राज्य के नेताओं की जानकारी पर भरोसा न कर निजी कंसल्टिंग कंपनियों पर भरोसा कर रहे हैं।

बंगाल में यह पहली बार है कि भाजपा बड़े पैमाने पर निजी संस्थाओं की मदद ले रही है। सत्तारूढ़ खेमे के नेताओं के एक बड़े वर्ग ने पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल की सफलता के लिए प्रशांत किशोर (पीके) के संगठन आईपीएसी को काफी श्रेय दिया। आगामी लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल भी मदद ले रही है। यह अप्रत्याशित नहीं है। हैरानी की बात यह है कि राज्य भाजपा भी इस बार चुनाव लड़ने के लिए एक पेशेवर संगठन का हाथ ले रही है।

भाजपा पहले भी कई राज्यों में ऐसी मदद ले चुकी है। बंगाल में भी सर्वेक्षण के लिए पेशेवर निकायों का उपयोग किया गया। लेकिन इस बार पश्चिम बंगाल भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक सुनिश्चित करने और अमित शाह द्वारा दिए गए 35 सीटों के लक्ष्य पर लड़ने के लिए पेशेवर संगठनों की मदद लेने जा रही है। मुंबई स्थित मतदान दल जार्विस टेक्नोलॉजी एंड कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड ने पहले ही कोलकाता सहित जिलों में काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि प्रदेश नेतृत्व इस बारे में खुलकर नहीं बोल रहा है।

इस एक घटना से पूरे देश में चल रही गुपचुप तैयारियों का संकेत मिल जाता है। इससे यह भी संकेत मिल रहा है कि मोदी और शाह अब अपनी पार्टी के नेताओं के फीडबैक पर भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। बंगाल में भाजपा ने पार्टी नेताओं द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर वोटों के लिए लड़ाई लड़ी। सत्ता में आने से दूर रहें, बंगाल में उन्हें अपेक्षित नतीजे नहीं मिले। बाद में वोटों की समीक्षा के दौरान पार्टी की गलती पकड़ी गई।

मालूम हो कि जिले से लेकर प्रदेश तक केंद्रीय नेतृत्व तक जो सूचनाएं और आंकड़े पहुंचे, वे हकीकत से काफी अलग थे। नतीजा यह हुआ कि पार्टी में यह चर्चा हुई कि कई विधानसभा क्षेत्रों में जरूरी कदम नहीं उठाये जा सके। इस बार पश्चिम बंगाल भाजपा शुरू से ही तटस्थ संगठनों की जानकारी के आधार पर योजना बनाना चाहती है। जार्विस भाजपा के लिए लाभार्थी ढूंढने में भी मदद करेंगे। यानी जार्विस इस बात का भी हिसाब देंगे कि पहली और दूसरी मोदी सरकार के दौरान केंद्रीय योजनाओं से किसे फायदाहुआ है। साथ ही यह भी तय करेगा कि केंद्र के किसी सफलअभियान को किस विधानसभा क्षेत्र में चुनाव में सफलता मिलेगी।

हालांकि, प्रदेश भाजपा का उस संगठन से कोई समझौता नहीं हुआ। यह केंद्रीय भाजपा रही है। जार्विस के लोग अखिल भारतीय स्तर पर भाजपा के लोकसभा चुनाव का बैक ऑफिस संभालेंगे। पार्टी की ओर से अखिल भारतीय महासचिव सुनील बंसल उनके प्रभारी हैं। जार्विस की ओर से पूरे चुनाव की निगरानी का जिम्मा संगठन के प्रमुख दिग्गज मोगरा के पास है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश भाजपा ने पहली बार अलग से स्टाफ लगाकर कॉल सेंटर बनाया।

उस वक्त पार्टी के महासचिव (संगठन) सुब्रत चटर्जी पूरे मामले को देख रहे थे। वह कॉल सेंटर सबकी नजरों से छिपाकर मध्य कोलकाता के मुरलीधर सेन लेन स्थित प्रदेश कार्यालय की सबसे ऊपरी मंजिल पर चल रहा था। 2021 में हेस्टिंग्स में जो बड़ा चुनाव कार्यालय खुला, उसमें एक मंजिल पर एक कॉल सेंटर था। वहां कोई सार्वजनिक पहुंच भी नहीं थी। हालांकि, भाजपा सूत्रों के मुताबिक इस बार ज्यादा विकेंद्रीकरण का फैसला किया गया है।

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