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इस दौरान एडीजी रैंक के साथ कितनी बैठकें
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एडीजी हेडक्वार्टर से क्या लिया सलाह अब तक
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रेंज में वर्षों से तैनात की तबादला नीति में बदलाव
दीपक नौरंगी
पटनाः बिहार में राज्य सरकार ने जितने भी आईपीएस अधिकारी को डीजीपी की जिम्मेदारी दी तो उन्होंने पदभार संभालने के तुरंत बाद पुलिस कर्मियों के वेलफेयर के विषय में काफी लंबा चौड़ा भाषण तो दिया लेकिन कोई बेहतर वेलफेयर का काम पुलिस कर्मियों के लिए धरातल पर उतरता नहीं देखा जा रहा है।
डीजीपी राजविंदर सिंह भट्टी के ग्यारह महीना के कार्यकाल में कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
ग्यारह महीने के कार्यकाल में कई तरह की चर्चाएं पुलिस मुख्यालय में होती रह गई लेकिन राज्य सरकार के मुखिया नीतीश कुमार का ध्यान सरदार पटेल भवन की तरफ नहीं गया।
बताया जाता है कि राजनीतिक बिहार में जो परिस्थितियों बनी उसे वजह से पुलिस मुख्यालय की तरफ माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान केंद्रित नहीं हो पाया।
जिसकी वजह से पुलिस कर्मियों से लेकर आईपीएस अधिकारियों के दर्द को कौन सुनेगा। ग्यारह महीने के दौरान सबसे अधिक चर्चा यह होती गई की डीजीपी साहब ने एक बार भी बिहार की आम जनता से जन संवाद क्यों नहीं किया।
बिहार के मुख्यमंत्री बिहार की आम जनता से जनसंवाद करते हैं और मिलते हैं तो डीजीपी साहब क्यों नहीं? जिन पुलिस कर्मियों का मात्र दो साल का कार्यकाल बचा हुआ है गृह जिला तबादला क्यों नहीं किया गया। एक ही रेंज में कई वर्षों से पुलिसकर्मी तैनात है उनका तबादला पुलिस मुख्यालय से अभी तक नहीं हुआ है।
देखिये इस पर वीडियो रिपोर्ट
मेडिकल के आधार पर पुलिस कर्मियों का तबादला होना है वह क्यों नहीं हुआ। पुलिस मुख्यालय में ग्यारह महीने के दौरान डीजीपी के द्वारा दो एडीजी को महत्वपूर्ण बैठकों से अलग रखने की चर्चा के पीछे की क्या सच्चाई है। उनसे महत्वपूर्ण फाइलों में मंतव्य क्यों नहीं लिया जा रहा है। चर्चा के अनुसार एडीजी सीआईडी जितेंद्र कुमार से ग्यारह महीने के दौरान कई महत्वपूर्ण बैठकों से अलग रखा गया और कई महत्वपूर्ण फाइलों में मंतव्य नहीं लिया जा रहा है।
दिल्ली में तैनात एक आईपीएस ने अपने नाम नहीं छापने के साथ में यह कहा कि ग्यारह महीने के दौरान डीजीपी साहब ने एडीजी सीआईडी से ग्यारह बार भी उनके साथ बैठक नहीं की है। चर्चा है कि आईजी पी कन्नन जो सीआईडी में है वह सीधे तौर पर महत्वपूर्ण फाइल सीधे डीजीपी के टेबल पर देते हैं।
हाल फिलहाल कई महीनों से यह चर्चा है सीआईडी के आईजी पी कन्नन से आईजी हेडक्वार्टर और एडीजी सीआईडी और एडीजी हेड क्वार्टर जिन महत्वपूर्ण फाइलों में अपना मंतव्य देते हैं उन फाइलों में आईजी के सीआईडी ही मंतव्य दे रहे हैं। चर्चाओं पर भरोसा करें तो वर्तमान डीजीपी भट्टी के निर्देश पर सीआईडी के आईजी उनके निर्देश का पालन कर रहे हैं।
आईपीएस अधिकारी के पद की गरिमा होती है राज्य सरकार ने जिन आईपीएस अधिकारी को जिन कार्यों के लिए उनकी पोस्टिंग की है उनसे डीजीपी के द्वारा कार्य नहीं लिए जाने की चर्चा बिहार आईएएस और आईपीएस से लेकर दिल्ली तक के गृह मंत्रालय में इसकी गूंज सुनने की बात सामने आई है। मुख्यमंत्री जी ग्यारह महीने के दौरान डीजीपी साहब के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति जाने की चर्चा भी होती रही इसके पर्दे के पीछे की क्या सच्चाई है इस कहना कठिन होगा।
दरभंगा रेंज में एक हफ्ते के दौरान दो बार आईजी की पोस्टिंग
डीजीपी राजविंदर सिंह भट्टी की मंशा और कार्यकाल पर जब अधिक सवाल उठने लगा जब एक हफ्ते के दौरान ही दरभंगा रेंज में अतिरिक्त तौर पर आईजी की पोस्टिंग दो बार की गई। सबसे पहली बार बीएमपी के आईजी राजेश कुमार को दरभंगा रेंज के अधिक जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा आदेश से पहले होने लगी और उसके बाद चर्चा जब यकीन में बदल गई कि जब राजेश कुमार को ही दरभंगा रेंज का आईजी बना दिया गया।
फिर डीजीपी साहब की कार्यशाली को लेकर सवाल उठने लगे कि आखिर राजेश कुमार को ही दरभंगा रेंज में अतिरिक्त आईजी के तौर पर पोस्टिंग क्यों दी गई है। बताया जाता है कि मामला जब राज्य सरकार तक पहुंचा तो डीजीपी साहब को अपने दिए गए निर्णय को वापस लेना पड़ा। उसके बाद आईजी हेड क्वार्टर विनय कुमार को दरभंगा रेंज की अतिरिक्त जिम्मेदारी 13 नवंबर को आदेश दिया गया।
आदेश के तुरंत बाद राजेश कुमार आईजी दरभंगा से तुरंत लौटे और पटना पुलिस मुख्यालय में तैनात आईजी हेड क्वार्टर विनय कुमार को तुरंत दरभंगा में पदभार ग्रहण करने के लिए दरभंगा जाना पड़ा क्योंकि छठ पर्व का त्यौहार महत्वपूर्ण है ऐसी स्थिति में उन्होंने तुरंत जाकर अपना पदभार संभाला। दो बार दरभंगा रेंज में अतिरिक्त आईजी की जिम्मेदारी की पोस्टिंग को लेकर इस और आईपीएस महकमें डीजीपी साहब की कार्यशैली को लेकर सवाल उठना लाजमी हो गया।