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जाने कहां गये वो दिन.. … ….

जाने कहा गये क्योंकि सभी लोग चुनावों में व्यस्त है। कोई कहीं भाषण दे रहा है तो कोई कहीं रोड शो कर रहा है। कुल मिलाकर पोजिशन और अपोजिशन दोनों ही सुपर एक्टिव है। ज्यादा मजा इस बात पर आ रहा है कि अपने मोदी जी बार बार कह रहे हैं कि कांग्रेस को एक ओबीसी प्रधानमंत्री पसंद नहीं आ रहा है।

दूसरी तरफ राहुल गांधी कह रहे हैं कि इतने दिनों बाद अचानक ओबीसी की याद क्यों आ रही है मोदी जी को। और अगर इतनी ही फिक्र है तो पूरे देश में जातिगत जनगणना क्यों नहीं करा लेते। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा कि देश में वाकई पिछड़ी आबादी ने दूसरों के मुकाबले तरक्की की है या और भी पीछे चले गये हैं। मौका भांपकर दूसरे भी चौका लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

असली कहानी तो टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की है। उनकी राजनीतिक सहयोगी यानी बंगाल की दीदी इस बार अजीब तरीके से चुप हैं। दूसरी तरफ उनका पहले के मित्र ही उनके खिलाफ हाथ धोकर पड़े हैं। पता नहीं ऐसी दोस्ती किस काम की, जो मौका पाते ही पलटी मार जाती है। कुत्ते को लेकर उपजा विवाद यहां तक आ पहुंचा है, इसकी कल्पना तो सपने में भी नहीं की जा सकती है और एक पढ़ी लिखी सांसद से अपना पासवर्ड और लॉग इन किसी दूसरे को देना भी समझ से परे है। फिर भी एक पुरानी कहावत है कि ज्यादा चालाक तीन बार फंसता है। इस बार मैडम मोइत्रा लगता है इसी कहावत को फिर से सच साबित कर रही हैं। जिन लोगों पर भरोसा किया था, वे दोनों ही धोखा दे रहे हैं और जिनके आसरे राजनीति कर रही थी वह ममता दीदी कन्नी काटे बैठी हैं। पता नहीं कौन सा दोस्त किस जनम का बैर निकाल रहा है।

इसी बात पर एक चर्चित और सुपरहिट फिल्म जोकर का एक गीत याद आने लगा है। इस फिल्म ने राजकपूर को वह लोकप्रियता दिलायी कि वह अभिनय के शिखर पर पहुंच गये। इस गीत को लिखा था हसरत जयपुरी ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन की जोड़ी ने। इसे मुकेश कुमार ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।

जाने कहाँ गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में

नज़रों को हम बिछाएंगे

चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर

तुमको ना भूल पाएंगे

जाने कहाँ गए वो दिन …

मेरे कदम जहाँ पड़े, सजदे किये थे यार ने

मेरे कदम जहाँ पड़े, सजदे किये थे यार ने

मुझको रुला रुला दिया, जाती हुई बहार ने

जाने कहाँ गए वो दिन …

अपनी नज़र में आज कल, दिन भी अंधेरी रात है

अपनी नज़र में आज कल, दिन भी अंधेरी रात है

साया ही अपने साथ था, साया ही अपने साथ है

जाने कहाँ गए वो दिन …

इस दिल के आशियान में बस उनके ख़याल रह गये

तोड़ के दिल वो चल दिये, हम फिर अकेले रह गये

जाने कहाँ गए वो दिन …

अब वे दिन कहां गये हैं, इसका तो पता नहीं पर दूसरे कई चेहरे अचानक से सामने दिखने लगे हैं। अब ईडी की ही बात लीजिए। अब तक तो पूरे देश के ऑपोजिशन के नेता ईडी से डरते थे। अब हालत यह है कि ईडी खुद सुप्रीम कोर्ट से डर रही है. ऐसे ऐसे सवाल पूछे जा रहे हैं, जिनका जबाव देना इस केंद्रीय जांच एजेंसी के लिए कठिन होता जा रहा है। दरअसल पहले इस विभाग को भी शंटिंग विभाग समझा जाता था। कोई काम धाम ज्यादा होता नहीं था। बैठकर मक्खी मारा करते थे लोग। इस बार की सरकार ने विरोधियों को चुप कराने के लिए इसे कारगर तो बना दिया पर पुरानी मशीन के कल पूरजे पुराने ही रह गये तो बार बार इंजन फेल हो रहा है।

इनसे अलग अब चुनावी बॉंड का मामला फंसा है। अपने माई लॉर्ड से चुनाव आयोग से हिसाब मांग लिया है। अब हिसाब अगर चुनाव से पहले सार्वजनिक हुआ और जो शक है वह सच साबित हुआ तो मोदी जी कुछ सफाई देने के लायक नहीं रह जाएंगे। वैसे भी इनदिनों पूर्वोत्तर भारत ही नहीं पूरे देश में यह सवाल गूंज रहा है कि आखिर मोदी जी को मणिपुर जाने से कौन रोक रहा है और इस राजनीतिक भूल की कितनी कीमत भाजपा चुकाने वाली है। जिसे बार बार पप्पू साबित करने में इतने पैसे झोंके गये थे, वह राहुल गांधी को सुलतान पहलवान साबित हुआ। जहां तहां जाकर विरोधी को सीधे धोबिया पाट देने में जुटा है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम अगर मोदी जी के पक्ष में नहीं रहा तो सत्ता की ईंटों को भरभराकर गिरने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। ऊपर से सुप्रीम कोर्ट का खतरा तो पहले से ही मंडरा रहा है।

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