देश के विकास की योजनाओं में किसी शहर पर आबादी का कितना बोझ डाला जाए, इसकी सोच शामिल नहीं थी। इसी वजह से अधिक रोजगार की तलाश में महानगरों में पहुंची आबादी के साथ साथ वहां प्रदूषण भी निरंतर बढ़ता गया है। इसका नतीजा है कि अब दिल्ली के प्रदूषण की आंच चंबल तक आ पहुंची है।
दशकों तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी दिल्ली और आसपास के गुड़गांव तथा नोएडा जैसे शहर देश की निर्माण राजधानी भी रहा है। आसपास के उपनगरों में आवासीय और कार्यालयों वाले टावर बनाए गए और उन्हें जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे तथा मेट्रो लिंक तैयार किए गए। इस बीच नियमों में परिवर्तन करके एक मंजिला आवासों को बहुमंजिला आवासीय अपार्टमेंट में बदला गया।
इससे आबादी का घनत्व बढ़ा और नए फ्लाईओवर तथा शहरों के ऊपर से गुजरने वाले क्रॉस सिटी फ्रीवे आबादी और यातायात के बढ़ते दबाव से निपटने में नाकाम रहे। इस बीच शहर का दम खराब हवा में घुटता गया। इसी तरह अब मुंबई भी दम तोड़ता नजर आ रहा है। यह हमारे देश की वित्तीय राजधानी है। वित्तीय राजधानी ने अधोसंरचना विकास और अचल संपत्ति निर्माण में समांतर तेजी के साथ दिल्ली को पीछे छोड़ दिया।
पूरे शहर में निर्माण कार्य में इस्तेमाल होने वाले भारी-भरकम उपकरण देखे जा सकते हैं। इसकी कीमत वायु प्रदूषण के रूप में चुकानी पड़ रही है और प्रदूषण की स्थिति यह है कि कुछ दिन तो दिल्ली से भी बुरे हालात रहते हैं। वादा तो यही है कि ये बातें पारंपरिक तौर पर बुनियादी परिवहन ढांचे के अभाव से जूझ रहे शहर को बदल देंगी।
मुंबई में 22 किलोमीटर लंबा ट्रांस हार्बर लिंक बनाया जा रहा है जो मिड-टाउन मुंबई को मुख्यभूमि से जोड़ेगा। यह लगभग पूरा होने वाला है। एक नया हवाई अड्डा निर्माणाधीन है, शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ने वाली ओवरहेड कनेक्टिंग रोड बनाई जा रही हैं और शहर तथा समुद्र के नीचे कई किलोमीटर की सुरंग तैयार की जा रही हैं। इनमें से अधिकांश परियोजनाओं को अगले दो सालों में पूरा करना है इसलिए निर्माण कार्य पूरी गति पर है।
एकमात्र चीज जिसका विस्तार नहीं किया जा रहा है वह है उपनगरीय रेल सेवा जो शहर की जीवन रेखा भी है। निर्माण का आकार पहले की परियोजनाओं को काफी छोटा कर देता है। परिवहन परियोजनाओं से अलग अचल संपत्ति निर्माण (अनुमान के मुताबिक 15 करोड़ वर्ग फुट) के बारे में अनुमान है कि इनका आकार नरीमन पॉइंट से पांच गुना है।
तटवर्ती सड़क परियोजना में समुद्र से पहले की तुलना में अधिक भूमि ली जानी है। बेंगलूरु और दिल्ली का अनुभव बताता है और जैसा कि मुंबई में टेक्सटाइल मिलों की जमीन के पुनर्विकास का अनुभव है, नया परिवहन ढांचा भी बढ़ती जरूरतों के साथ शायद ही तालमेल बिठा पाए। ऐसा इसलिए कि परिवहन संपर्क में सुधार होने और शहर तथा मुख्य भूमि के बीच बेहतर संपर्क से यातायात बढ़ता है। हम देख चुके हैं कि गुड़गांव और नोएडा तथा दिल्ली के बीच कैसा विशाल शहरी ढांचा विकसित हुआ।
मुंबई की बात करें तो मुख्यभूमि से बेहतर संपर्क जमीन की कमी दूर करेगा जिसने इसके विकास को बाधित किया है। इसके साथ ही आवासीय और कार्यालयीन निर्माण को मंजूरियों में अचानक तेजी आने से पहले से ही भीड़भाड़ वाले शहर में आबादी का दबाव और बढ़ेगा। इस बीच धारावी का भी पुनर्विकास होगा।
पानी की आपूर्ति और गंदगी का निस्तारण और बड़े मुद्दे बन जाएंगे। संभव है यह केवल शुरुआत हो। दिल्ली से 65 किलोमीटर दूर मेरठ जाने के लिए हाईस्पीड रेल लाइन हाल ही में शुरू हुई है। अलवर आदि अन्य शहरों के लिए ऐसी अन्य लाइन बिछाने की योजना है। मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के बीच यात्री पहले ही आवागमन करते हैं।
कल्पना कीजिए कि और तेज परिवहन के साथ इस दूरी में भी विस्तार होगा। समय के साथ हम दक्षिणी चीन के ग्रेटर बे एरिया का भारतीय समकक्ष भी देख सकते हैं जिसमें शेनझेन और ग्वांगझाऊ जैसे शहर तथा हॉन्गकॉन्ग भी शामिल है। यहां सात करोड़ लोग रहते हैं और यह चीन के जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर है। क्या अब वक्त आ गया है कि भारतीय शहरों के मामले में हम अब तक प्राप्त नतीजों की तुलना में बेहतर योजनाओं का निर्माण करें।
कुछ इसी तरह रांची जैसे मध्यम आकार के शहरों की बात करें जहां बुनियादी सुविधाएं सिर्फ पांच लाख लोगों की आबादी को ध्यान में रखकर बनायी गयी थी। राजधानी बनने के बाद इसी व्यवस्था में करीब चौगुणी आबादी को व्यवस्थित करना कठिन काम है। विकास की सोच के बीच पानी जैसी बुनियादी सुविधा की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है। इसलिए हर गरमी में जलसंकट दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। यहां की राजनीति किसी नये जलभंडार की सोच को आगे बढ़ाने का मौका नहीं देती। इसलिए बहस से अलग यह जरूरी है कि आबादी का विस्तार भौगोलिक स्तर पर हो।