रंजीत तिवारी
स्थानीय सम्पादक, बिहार
पिता हुए सरकार, युवराज अब नहीं बनेंगे महाराज ! पलटी मारने का खिताब अपने नाम कर चुके नीतीश कुमार का खास है सावन कनेक्शन
चिंगारी कोई भड़के
तोह सावन उसे बुझाये
सावन जो अगन लगाये
उसे कौन बुझाये
ओ उसे कौन बुझाये
पतझड़ जो बाग उजाड़े
वोह बाग बहार खिलाये
जो बाग बहार में उजड़े
उसे कौन खिलाए
ओ उसे कौन खिलाए
यह प्रसिद्ध गाना हिन्दी फिल्म अमर प्रेम में आंनद बक्षी के गीतों को किशोर कुमार ने अपना लय दिया था, जो बिहार के मौजूदा हालात पर इन दिनों बिल्कुल फिट बैठ रहा है। दरअसल, बिहार की राजधानी पटना और आषाढ़ की भीषण गर्मी में विपक्षी एकता की पहली बैठक ने सियासी पारा को हाई कर दिया था।
जिसे नॉर्मल करने के लिए कांग्रेस की तरफ से 12 जुलाई को शिमला की ठंडी वादियों दूसरी बैठक निर्धारित की गई, जो आपसी तालमेल नहीं बैठने के कारण स्थगित कर दी गई। यह बैठक अब 18 जुलाई को निर्धारित की गई है, लेकिन उसके स्थागित होने की अबतक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।
इससे पहले ही एकता बैठक के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजद व लालू कुनबा से बेहद रंज दिख रहे थे, जो मानमनौव्वल के बाद थोड़े शांत जरूर हुए हैं लेकिन स्थिर नहीं। दोनों पार्टियों के बयान वीर एक दूसरे पर हमलावर हैं। हालांकि, पहले यह उम्मीद थी, कि 4 जुलाई से सावन की बारिश ने सियासी गर्मी को ठंडक देगा। लेकिन, अबतक उम्मीद के विपरीत होता हीं दिख रहा है।
नीतीश कुमार अंतरात्मा की आवाज, राजगीर प्रवास और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल तथा अपनी कुर्सी पर नजर बर्दाश्त नहीं करते हैं, चाहे वह कोई भी क्यों नहीं हो। शायद इसी को भांपते हुए राजद सुप्रीमो व तेजस्वी ने सभी विधायक व विधान-पार्षदों के साथ मोबाइल जमा कर एक हाई लेबल मीटिंग की। जिसका निष्कर्ष यह था कि आप यदि राजद में तो यह भूल जाएं कि मुंह में जबान भी है, बिल्कुल चुप्पी साधे रहें। अन्यथा, पार्टी स्तर पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद मानमनौव्वल हो गया और सरकार अब खतरे से बाहर बताई जा रही है।
आंकड़ों की बाजीगरी के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार को पलक झपकते ही अपनी सारी गोटियां सेट करने का महारत हासिल है। वे ऐसे हीं नहीं आठ बार मुख्यमंत्री का सपथ ले चुके हैं। हालांकि, इधर वे लालू प्रसाद राजद के हस्तक्षेप से असहज जरूर हुए थे, लेकिन समय रहते लालू की सूझबूझ ने सबकुछ संभाल लिया।
पुत्र को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखने के लिए लालू ने हर जोर का आजमाइश किया। जो शुरूआत में तो असरदार दिख रहा था, लेकिन बाद में नीतीश के आगे धराशायी हो कर रह गया। शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर से शुरू हुआ विवाद मुख्यमंत्री नीतीश और केके पाठक के समक्ष सरेंडर करने के बाद अब थम गया है।
हालांकि, यह काम बिगड़ रही स्थिति के नजाकत को ससमय समझने वाले लालू प्रसाद के इशारों पर ही हुआ था। लालू ने अन्दरखानों में यह स्पष्ट कर दिया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हमलोगों को कोई मतलब नहीं है, बस आप बाल-बच्चों को इस बार नहीं छोड़िएगा। इस अध्याय के बाद बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल शांत है। इन सब प्रकरणों को गंभीरता से देखें तो विधायकों की लिहाज से बिहार में तीसरी स्थान पर रहने वाली जदयू के मुखिया नीतीश कुमार का कद पहली स्थान पर है।
राजद एक साजिश के तहत किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार को दिल्ली में उलझा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती थी। उनके मंसूबे पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के चार्जशीटेड होने के बाद बिहार में 2017 जैसे हालात बन गए हैं। सीबीआई ने लैड फॉर जॉब्स मामले में लालू-राबड़ी के साथ तेजस्वी यादव को भी आरोपी बनाया है।
तब से कयास लगाया जा रहा है कि बिहार में सरकार की स्थिति डावांडोल है। इसे सावन से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे नीतीश कुमार सावन कनेक्शन खास है, इसी महीने में वे अक्सर पलटी मरते हैं। साल 2017 हो या 22, सावन में ही नीतीश कुमार ने सियासी पलटी मारकर सरकार गिराई और बनाई थी।