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दो सीटों पर पहले से ही प्रत्याशी हैं
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बाकी सीटों पर एक अनार सौ बीमार
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वोट ट्रांसफर भी बड़े नेताओं के चुनौती
राष्ट्रीय खबर
रांचीः गैर भाजपा के तीन प्रत्याशी ही पिछले लोकसभा चुनाव में जीत पाये थे। इनमें से आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को भाजपा के सहयोगी के तौर पर आंका जाता है। शेष दो सीटों पर क्रमशः राजमहल से विजय हांसदा और सिंहभूम से गीता कोड़ा विजयी हुई थी। शेष सभी पर भाजपा ने एकतरफा कब्जा किया था।
अब फिर से लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच भाजपा विरोधी दल इन सीटों पर अपनी अपनी दावेदारी ठोंकने की तैयारियों में जुट गये हैं। वैसे सीटों पर गैर भाजपा दलों के बीच सामंजस्य स्थापित करना कोई आसान काम नहीं होगा। इसलिए गैर भाजपा दलों के नेता झारखंड की इन शेष 12 सीटों पर नजर गड़ाये बैठे हैं।
असली पेंच राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से फंस सकता है क्योंकि पलामू, चतरा और कोडरमा में उसका अपना पूर्व का जनाधार रहा है। कोडरमा से मिल रही सूचनाओं के मुताबिक इस बार मतदाताओं का मिजाज भी अन्नपूर्णा देवी के समर्थन में नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में सीटों का तालमेल बैठाना इन तीन दलों यानी कांग्रेस, झामुमो और राजद के बीच कोई आसान काम नहीं होगा।
वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के विजेता यह हैं
1 राजमहल (एसटी) विजय कुमार हंसदा, 2 दुमका (एसटी) सुनील सोरेन, 3 गोड्डा 69.57 निशिकांत दुबे, 4 चतरा सुनील कुमार सिंह, 5 कोडरमा अन्नपूर्णा देवी, 6 गिरिडीह चंद्र प्रकाश चौधरी, 7 धनबाद पशुपति नाथ सिंह, 8 रांची संजय सेठ, 9 जमशेदपुर विद्युत वरण महतो, 10 सिंहभूम (एसटी) गीता कोड़ा, 11 खूंटी (एसटी) अर्जुन मुंडा, 12 लोहरदगा (एसटी) सुदर्शन भगत, 13 पलामू (एससी) विष्णु दयाल राम, 14 हजारीबाग जयंत सिन्हा।
इन दावेदारियों के बीच पार्टी के अंदर की गुटबाजी भी अलग तरीके की है। यह अलग बात है कि भाजपा के अंदर की इस किस्म की मारामारी है पर वह खुलकर सामने नहीं आ पाती है। भाजपा विरोधी दल भी यह मानकर चल रहे हैं कि कई सीटों पर भाजपा भी अपने प्रत्याशी बदल सकती है। इसकी चर्चा अभी से ही चौक चौराहों पर होने लगी है। दूसरी तरफ कई प्रमुख नेता कुछ खास सीटों पर पहले से ही नजर गड़ाये बैठे हैं। सभी दलों के संभावित प्रत्याशी अभी से ही अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए दिल्ली दरबार का चक्कर लगा रहे हैं। भाजपा के अंदर भी लगभग यही स्थिति है।
ऐसे में झारखंड की चौदह लोकसभा सीटों पर कौन प्रत्याशी चुना जाएगा, यह बात स्थानीय स्तर पर तो कतई तय नहीं होगी। इस पर फैसला लेने के पहले विपक्षी एकता के प्रयास में जुटे राष्ट्रीय नेता इस बात पर भी ध्यान देंगे कि भाजपा विरोधी वोटों का अपने प्रत्याशी के पक्ष में आना भी कोई आसान काम नहीं होगा।