किसे किसकी बात याद दिलाऊं। सभी ने तो आसमान से तारे तोड़कर लाने की बात कही थी। अब हालत यह है कि मैंगो मैन को दिन में तारे दिख रहे हैं। बात सिर्फ एक तरफ की नहीं हो रही है बल्कि हर तरफ तो वादाखिलाफी का दौर चला आ रहा है। यानी पॉलिटिकल एजेंडा ही बन गया है कि जनता से झूठ बोलो और भूल जाओ। वोट देने के बाद आखिर आम जनता कर ही क्या लेगी।
अब सबसे पहले झारखंड की बात कर लें। वादा था चौबीस घंटे बिजली सप्लाई का। लेकिन हालत क्या है, यह तो बिना जेनरेटर के रहने वाले ही जान सकते हैं। बिजली आ भी रही है तो कितनी और कितनी देर तक आ रही है, इसका रिकार्ड तक रखना मुश्किल हो गया है। गनीमत है कि अब दूसरे किस्म के बल्ब आ गये हैं वरना इतने लो वोल्टेज में तो पुराने वाले पीले बल्ब तो मोमबत्ती जैसी रोशनी देते। सरकार और तमाम तामझाम वालों को इस तकलीफ से क्या लेना देना। उन्हें तो पब्लिक के पैसे से दिन रात चलने वाले जेनरेटर के अंदर कोई तकलीफ महसूस ही नहीं होती।
अब चूंकि चुनाव करीब आ रहा है इसलिए ऑपोजिशन वाले फिर स कमर कसने लगे हैं। लेकिन भइया तुमलोगों पर भरोसा हो तो कइसे हो। लगातार तो एक दूसरे को दांव लगाकर तुमलोगों ने अपनी साख ही मटियामेट कर रखी है। एक दूसरे को लगातार कोसते रहे हो तो क्या गारंटी है कि चुनाव के बाद फिर से वही खेल नहीं खेलने लगोगे।
फिर भी तुमलोगों के एकजुट होने के भरोसे सरकार और सरकारी अफसर घबड़ाये हुए हैं, यह देखकर दिल को शांति मिलती है। इससे आगे क्या होगा, यह तो पटना में होने वाली बैठक में कुछ हद तक साफ हो जाएगा लेकिन अगर बाजी मार भी लिये तो आगे क्या होगा, यह लाख नहीं करोड़ टके का सवाल बना ही रहेगा।
इसी बात पर राजेश खन्ना और मुमताज की सुपरहिट फिल्म दुश्मन का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने। इसे किशोर कुमार ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह है।
हाँ …, सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से
कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज़ के फूलों से !
मैं इन्तज़ार करूँ, ये दिल निसार करूँ
मैं तुझसे प्यार करूँ, ओ मगर कैसे ऐतबार करूँ ?
झूठा है तेरा वादा !
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
वादे पे तेरे मारा गया, बन्दा मैं सीधा साधा
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
तुम्हारी ज़ुल्फ़ है या, सड़क का मोड़ है ये ?
तुम्हारी आँख है या, नशे का तोड़ है ये?
कहा कब क्या किसी से, तुम्हें कुछ याद नहीं
हमारे सामने है, हमारे बाद नहीं
किताब-ए-हुस्न में तो, वफ़ा का नाम नहीं, अरे !
(मोहब्बत तुम करोगी ? तुम्हारा काम नहीं !) – (2)
अकड़ती खूब हो तुम, मेरी महबूब हो तुम – (2)
निगाह-ए-गैर से भी, मगर मनसूब हो तुम
किसी शायर से पूछो, गज़ल हो या रुबाई
भरी है शायरी में, तुम्हारी बेवफ़ाई
हो ! दामन में तेरे फूल हैं कम, और काँटें हैं ज़्यादा
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
वादे पे तेरे मारा गया, बन्दा मैं सीधा साधा
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
तराने जानती है, फ़साने जानती है
कई दिल तोड़ने के, बहाने जानती है
कहीं पे सोज़ है तू, कहीं पे साज़ है तू
जिसे समझा ना कोई, वही एक राज़ है तू
कभी तू रूठ बैठी, कभी तू मुस्कराई, अरे !
किसी से की मोहब्बत, किसी से बेवफ़ाई ! – (2)
उड़ाए होश तौबा, तेरी आँखें शराबी – (2)
ज़माने में हुई है, इन्हीं से हर खराबी
बुलाए छाँव कोई, पुकारे धूप कोई
तेरा हो रंग कोई, तेरा हो रूप कोई
हो ! कुछ फर्क नहीं नाम तेरा, रज़िया हो या राधा !!
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
वादे पे तेरे मारा गया, बन्दा मैं सीधा साधा
वादा तेरा वादा, वादा तेरा वादा – (2)
अब दिल्ली दरबार की भी बात कर लें। अपने मोदी जी अमेरिका जा रहे हैं, वहां क्या गुल खिलायेंगे, यह कह पाना कठिन है क्योंकि पहली बार उनके लिए प्राइवेट डिनर का भी इंतजाम जो बाइडेन ने किया है। प्राइवेट है तो क्या खाया और क्या बतियाया यह शायद पता नहीं चलेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि पहलवानों का दांव और किसानों का चैलेंज, अब मोदी जी नहीं पूरी पार्टी पर भारी पड़ चुकी है। बृजभूषण को बचाने के चक्कर में पार्टी की फजीहत हो गयी, इसे पार्टी के अंदर के लोग भी अच्छी तरह समझ रहे हैं। ऐसे में पार्टी के अंदर विधानसभा चुनावों के पहले अगर कोई उठापटक अचानक ही हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए क्योंकि यह इंडियन पॉलिटिक्स है भाई साहब।