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बड़े बड़े दावे किये गये थे गरमी के लिए
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पलामू को छोड़ शेष राज्य में एक जैसी हालत
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तापमान बढ़ा तो औसतन छह घंटे बिजली गुल
राष्ट्रीय खबर
रांचीः यह साफ होता जा रहा है कि झारखंड में बिजली विभाग भी अनाथ जैसा हो गया है। इसी वजह से विभागी अधिकारी फूल लोड होने का दावा ठोंकते हैं जबकि आम जनता को लोडशेडिंग से काफी परेशानी है। यह हाल सिर्फ रांची का नहीं है।
पूरे राज्य की बात करें तो पलामू को छोड़कर शेष इलाकों में जबर्दस्त लोडशेडिंग हो रही है। इसके कारणों को खुलकर स्पष्ट भी नहीं किया जा रहा है। पहले बिजली विभाग ने बेहतर बिजली व्यवस्था का जो दावा किया था, वह भी अब मुंगेरी लाल के हसीन सपने बनकर रह गया है।
राज्य सरकार की तरफ से भी इस बारे में बिजली विभाग से यह नहीं पूछा गया है कि आखिर यह गड़बड़ी क्यों हो रही है। इस साल के शुरूआत में बिजली विभाग द्वारा कहा गया कि एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा थर्मल पावर प्लांट से राज्य को 150 मेगावाट बिजली मिलने लगेगी।
तब यह भी कहा गया था कि इस अतिरिक्त इंतजाम की वजह से इससे गर्मी या सर्दी के साथ बिजली की एकाएक मांग बढ़ने की स्थिति में भी झारखंड के लिए आपूर्ति सामान्य बनाए रखना आसान होगा। अब अचानक तापमान के लगातार बढ़ने के बाद वही पुरानी समस्या फिर से उभर आयी है।
झारखंड में बिजली की मांग ढाई हजार मेगावाट के आसपास रहती है। प्रदेश में टीवीएनएल, बीटीपीएस, सिकिदरी और केटीपीएस जैसे पावर प्लांट से बिजली की आपूर्ति की जाती है। इसके अलावा जेबीवीएनएल मांग के बड़े हिस्से की पूर्ति के लिए एनटीपीसी, डीवीसी, सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और स्थानीय निजी उत्पादन इकाइयों से बिजली खरीदती है. लेकिन इसके बाद भी ग्रामीण हो या शहरी हर क्षेत्र में बिजली कम पड़ रही है।
बिजली की आपूर्ति में कौन सी बाधा है, इस पर बिजली विभाग की तरफ से खुलकर और जिम्मेदारी के साथ कोई जानकारी नहीं दी गयी है। अरबों खर्च होने के बाद भी राज्य की बिजली व्यवस्था का यही हाल बताता है कि यह सारा पैसा भी अंततः भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।
वैसे भी जलस्तर घटने की वजह से सिकिदिरी का जलविद्युत केंद्र अभी बंद है। दूसरी तरफ कई स्तरों पर सुझाव दिये जाने के बाद भी अलग राज्य बनने के बाद से राज्य सरकार ने अपना एक भी पावर प्लांट नहीं लगाया है। उल्टे जो पतरातू संयंत्र था, वह भी एनटीपीसी के हवाले कर दिया गया है।
अजीब स्थिति यह है कि पूरे देश की बिजली व्यवस्था बहाल रखने के लिए अधिकांश कोयला इसी झारखंड राज्य से भेजा जा रहा है। इसके बाद भी झारखंड के अधिकांश इलाके हर बार की तरह इस बार भी बयानों से ही बिजली महसूस कर रहे हैं क्योंकि हर इलाके में औसतन कमसे कम छह घंटे की लोडशेडिंग हो रही है। यह लोडशेडिंग क्यों और, इस बारे में सरकार ने भी विभाग से पूछने की जहमत नहीं उठायी है।