पुरानी कहावत है कि गज यानी तीन फीट लंबा कपड़ा बचाने के चक्कर में कपड़े की पूरी थान ही लुटा देना। पहलवानों के धरना पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बेरुखी इसी का संकेत देती है। यह दावा किया गया है कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के पास सात आठ लोकसभा और विधानसभा सीटों की चाभी है।
अगर यह सही भी है तो जिस तरीके से इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस के आचरण पर प्रतिक्रिया हुई है, उससे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भाजपा नेताओं को इसी मुद्दे पर फिर से सवालों का सामना करना पड़ रहा है। यह याद दिला देना प्रासंगिक है कि नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन के वक्त भी यही गलती की थी, जिसका नतीजा था कि भाजपा वाले गांवों में प्रवेश तक नहीं कर पा रहे थे।
अंग्रेजी में एक न्यायिक कहावत है और इसे बार बार अदालतों में दोहराया भी गयी है कि जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड, यानी न्याय में देर का अर्थ किसी को न्याय से वंचित करना है। दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में जानबूझकर देर कर यही गलती की है।
अब इस बात से कोई इंकार भी नहीं कर सकता है यह सारा कुछ अमित शाह के निर्देश पर ही होता है क्योंकि अनेक मामलों में दिल्ली पुलिस का आचरण ही भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला साबित हुआ है। लेकिन सवाल यह है कि महिला पहलवानो के धरना पर किसान और खाप पंचायतों की बैठकों का असर क्या भाजपा नहीं समझ पा रही है अथवा मोदी किसान आंदोलन की तरह इसे भी फिर से कुचल देने की सोच रखते हैं।
लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है। राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल भी रहे हैं। ऐसे में श्री मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी साख को बचाने की है। वरना राहुल गांधी ने अडाणी प्रकरण पर जो हमला किया है, उससे इस साख को बट्टा लगा है, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है। अजीब स्थिति यह है कि भाजपा के दूसरे बड़े नेताओं ने इस पर चुप्पी साध रखी है जबकि आम तौर पर कई नेता हर छोटी बड़ी बात पर अपनी राय अवश्य देते हैं।
इनदिनों भाजपा के सांसदों और विधायकों में ट्विटर पर नरेंद्र मोदी के काम काज के साथ साथ अपनी राजनीतिक दिनचर्या के प्रचार की होड़ मची है। इसके बाद भी वह अच्छी तरह समझ रहे हैं कि जनता का मिजाज बिगड़ चुका है। घटनाक्रम बताते हैं कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंदचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष याचिका की सुनवाई के दौरान, दिल्ली पुलिस ने 28 अप्रैल को दो प्राथमिकी दर्ज कीं।
प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस की ओर से देरी ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य (2013) में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। ललिता कुमारी एक नाबालिग लड़की थी जिसका उत्तर प्रदेश में अपहरण कर लिया गया था। उसके पिता भोला कामत ने संबंधित थाने के प्रभारी अधिकारी को लिखित शिकायत दी लेकिन पुलिस अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। कामत के पुलिस अधीक्षक के दरवाजे पर दस्तक देने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई।
प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने न तो गंभीरता से अपहरण की जांच की और न ही ललिता कुमारी का पता लगाने के लिए कोई ठोस प्रयास किया। इस निष्क्रियता ने कामत को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करके सर्वोच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान करने के लिए मजबूर किया। याचिका पर सुनवाई करते हुए, अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में असमानता है और संहिता की धारा 154 के तहत एक संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी का खुलासा होते ही एक पुलिस अधिकारी प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य है या नहीं, इस पर अलग-अलग निर्णय हैं।
आपराधिक प्रक्रिया (सीआरपीसी) की। एक संज्ञेय अपराध, जैसा कि सीआरपीसी में परिभाषित किया गया है, एक ऐसा अपराध है जिसके लिए एक पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत है। यह हत्या, अपहरण, बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य और गंभीर अपराधों पर लागू होता है।
डब्ल्यूएफआई के पूर्व अध्यक्ष पर आईपीसी की धारा 354 ए (अवांछित शारीरिक संपर्क और पेशों की प्रकृति का यौन उत्पीड़न या यौन एहसान के लिए मांग या अनुरोध) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 (यौन उत्पीड़न के लिए कार्य) के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया है। नाबालिग का)।
ये दोनों संज्ञेय अपराध हैं और इसलिए दिल्ली पुलिस को इन अपराधों के होने की सूचना मिलते ही सीआरपीसी की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता थी। इस बीच हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने प्रदर्शनकारी पहलवानों का समर्थन किया है। इसलिए स्पष्ट है कि भाजपा के लोग भी जमीनी तौर पर उनकी राजनीतिक जमीन खिसक रही है, इसे समझ रहे हैं।