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काफी समय से तेजस्वी कर रहे हैं मांग
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सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मोदी से मिला था
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लोकसभा चुनाव से पहले गोलबंदी की मजबूती
राष्ट्रीय खबर
पटना: बिहार में जाति और आर्थिक गणना का काम शनिवार से शुरू हो गया । आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि जाति और आर्थिक गणना का काम दो चरणों में कराया जाएगा । पहले चरण में मकानों की गिनती होगी । उसके बाद जाति आधारित गणना और आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण का काम होगा ।
पहला चरण 07 जनवरी से 21 जनवरी तक होगा और उसके बाद दूसरा चरण 01 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा । इस काम पर करीब 500 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह राशि बिहार आकस्मिकता निधि से दिया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर इस राशि में वृद्धि भी की जा सकती है । जाति आधारित गणना कराने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है और इसके लिए कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है।
नीतीश कुमार जब भाजपा के साथ एनडीए की सरकार में थे तो आरजेडी के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह मांग नीतीश कुमार से की थी। नीतीश कुमार ने उसके बाद एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी के पास भेजा था।
भाजपा के नेता भले ही जातीय जनगणना की प्रासंगिता पर अब सवाल खड़ा कर रहे हैं, लेकिन उस वक्त दिल्ली पीएम से मिलने गये सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के सदस्य भी शामिल थे। बाद में तेजस्वी यादव ने कोरोना काल की सामप्ति पर नीतीश कुमार से मुलाकात की और जातीय जनगणना की मांग की।
इसे इस रूप में भी देख सकते हैं कि नीतीश कुमार अगर भाजपा का साथ छोड़ आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ आये तो उसमें जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की सीएम से अकेले-अकेले में हुई मुलाकात ही सबसे बड़ा आधार बनी।
इस बीच मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार सिर्फ जातिगत गणना होगी और उसमें उपजातियों को अलग से वर्गीकृत नहीं किया जाएगा। इससे साफ है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी अपने खेमे की जातिगत गोलबंदी को और मजबूत करने में जुट गयी है। पिछड़ों की राजनीति में इन दोनों का मिलना फिलवक्त भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि पिछड़ों में भाजपा की वह पैठ नहीं है, जो इन दो नेताओं की रही है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दूसरे चरण में जाति की गिनती समेत लोगों से 26 प्रकार की जानकारी ली जाएगी। राज्य के बाहर रहने वाले लोगों के नाम भी दर्ज किये जाएंगे। सामान्य प्रशासन विभाग ने इस संंबंध में सभी जिलाधिकारियों को निर्देश भेज दिया है। अगले पंद्रह दिनों तक मकानों पर संख्या अंकित करने का काम किया जाएगा।
संख्या अंकित करने के बाद गणना कार्य में लगाए गए कर्मी वार्ड के आधार पर परिवारों की गिनती करेंगे। निचले स्तर पर टोला सेवक, तालिमी मरकज, ममता, आशा कार्यकर्ता, जीविका दीदियां, शिक्षक, कृषि समन्वयक, मनरेगा कर्मी, रोजगार सेवक और विकास मित्र की सेवा इस कार्य में ली जाएगी।
इस कार्य के दौरान सभी मकानों के एक विशिष्ट नंबर दिया जाएगा। यदि एक मकान में दो अलग-अलग परिवार रहते होंगे तो उनका नंबर भी अलग-अलग होगा। एक अपार्टमेंट के सभी फ्लैट के अलग-अलग नंबर दिये जाएंगे। जाति गणना में उपजाति की गिनती नहीं की जाएगी।
समाधान यात्रा पर निकले नीतीश कुमार ने कहा कि इसी वजह से इस काम में लगाये गये लोगों को पूर्व प्रशिक्षण दिया गया है। इस दौरान अगर कोई अपनी उपजाति का उल्लेख करता है तो उसे भी दर्ज किया जाएगा लेकिन उसकी क्रॉसचेकिंग की जाएगी।
बिहार में जातीय जनगणना को लेकर पिछले दो साल राजनीति काफी गर्म रही थी। श्री तेजस्वी प्रसाद यादव जब नेता प्रतिपक्ष थे तब उन्होंने जातीय जनगणना नहीं कराए जाने पर दिल्ली मार्च करने की बाद कही थी। वहीं, इसको लेकर 23 अगस्त 2021 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर देश में जातीय जनगणना कराने की मांग की थी, जिसे केंद्र ने नहीं माना।
बिहार से प्रधानमंत्री से मिलने गए प्रतिनिधिमंडल में 10 अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता शामिल रहे। इसमें मुख्यमंत्री श्री कुमार के अलावा तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के विजय कुमार चौधरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जनक राम, कांग्रेस के अजीत शर्मा, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के जीतनराम मांझी, भाकपा-माले के महबूब आलम, एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपाद्ध के सूर्यकांत पासवान और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अजय कुमार शामिल रहे।
इसके बाद 02 जून 2022 को बिहार में जातीय जनगणना करवाने के मुद्दे पर निर्णायक कदम उठाया गया। राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने सर्वदलीय बैठक में आम सहमति से तय किया है कि मंत्रिमंडल की अगली बैठक में निश्चित समय सीमा के भीतर जाति के आधार पर जनगणना कराने को मंजूरी दे दी जाएगी। इसके बाद मंत्रिपरिषद की बैठक में इस आशय को प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इससे पहले बिहार में जातीय जनगणना कराने के लिए बिहार विधानसभा में वर्ष 2019 और 2020 में दो बार प्रस्ताव पारित भी किये गये थे।