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नशेड़ियों की सड़कों से हटाने का अभियान प्रारंभ हुआ अफगानिस्तान में

काबुलः अफगानिस्तान में अफीम की खेती भी यहां के आतंकवाद का एक प्रमुख कारण बनी है। दूसरी तरफ इस खेती की वजह से अफगानिस्तान की पारंपरिक खेती नष्ट हो चुकी है। कई दशकों के युद्ध ने इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही तोड़कर रख दी है। अब वहां सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान ने नशेड़ियों को सड़कों पर से हटाने का अभियान प्रारंभ किया है।

काबुल शहर के पश्चिमी छोर पर पुल-ए-सुख्ता नामक पुल के नीचे नशेड़ियों का घोषित अड्डा था। वहां अचानक ही तालिबान के सैनिक आ गए। वैसे यह जगह नशे के लिए पूर्व से ही परिचित इलाका है। इस पुल क्षेत्र के अलावा, वे काबुल में पार्कों या पहाड़ी चोटियों से भी नशा करने वालों को उठा रहे हैं।

उनमें से अधिकांश को पहले एक पूर्व अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ले जाया गया था, जिसे अब नशीली दवाओं के व्यसनी के लिए एक अस्थायी पुनर्वास केंद्र में बदल दिया गया है। अफगानिस्तान को दुनिया का ड्रग एडिक्शन कैपिटल कहा जाता है। इस देश की आबादी करीब 4 करोड़ है और इनमें से 35 लाख लोग नशे के आदी हैं.

यह जानकारी ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल नारकोटिक्स एंड लॉ एनफोर्समेंट (बीआईएनईएलई) ने दी। काबुल का पुल-ए-सुख्ता ब्रिज अक्सर सैकड़ों लोगों को इकट्ठा देखता है। यह सभी लोग नशा करने ही यहां आते हैं। वहां देखा जा सकता है कि वे चारों ओर बिखरे कचरे, सीरिंज, मानव मल आदि में उलझे बैठे हैं।

कभी-कभी एक-दो लाशें दिख जाती हैं- जिन लोगों ने बहुत ज्यादा नशा किया हुआ है। उनकी पसंद की दवा हेरोइन या मेथामफेटामाइन है। हालांकि पिछली सरकार की नीति इन नशेड़ियों को सड़कों से उठाकर नशामुक्ति उपचार केंद्रों में भेजने की थी। लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के बाद, उन्होंने नशे के आदी लोगों को सड़कों से हटाने की पहल को सख्ती से लागू करना शुरू कर दिया।

वहां से नशा मुक्ति केंद्र लाये गये लोगों के मुताबिक तालिबान ने उन्हें पीटने के लिए पाइप का इस्तेमाल किया। वहां से अनेक लोगों को एक साथ गिरफ्तार किया गया और एक बस में ले जाया गया। तालिबान सरकार ने इस घटना का वीडियो जारी किया। यह तालिबान सैनिकों को पुल के नीचे से ड्रग ओवरडोज़ पीड़ितों के शवों को हटाते हुए दिखाता है। शवों को ग्रे कपड़े में लपेटकर ले जाया जा रहा है। अन्य जीवित थे लेकिन बेहोश थे – उन्हें स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था।

जिस उपचार केंद्र में उमर को ले जाया गया, उसमें 1,000 बिस्तर हैं, लेकिन 3,000 मरीज हैं। वहां का वातावरण बहुत ही जर्जर है। मरीजों को वहां लगभग 40 दिनों तक रखा जाता है। इस दौरान वे एक गहन कार्यक्रम से गुजरते हैं। जिसके बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है। उपचार केंद्र ले जाने वालों में कुछ महिलाएं और बच्चे भी थे।

ऐसे ही नशा मुक्ति केंद्र में उमर भी मिला। उसने बताया कि वह कैम एयर में फ्लाइट अटेंडेंट था। फिर दुबई आज, तुर्की कल, ईरान परसों कहीं और यही उसकी जिंदगी थी। विमान में कभी-कभी कोई पूर्व राष्ट्रपति या कोई ऐसा वीआईपी यात्री होता था। काबुल के पतन के बाद उमर ने अपनी नौकरी खो दी। वित्तीय कठिनाइयाँ और अनिश्चित भविष्य उसे ड्रग्स की ओर खींच लाया है।

1990 के दशक में जब तालिबान सत्ता में थे, तो वे अफगानिस्तान से अफीम की खेती को लगभग पूरी तरह से खत्म करने में कामयाब रहे। लेकिन उनकी 20 साल की विद्रोही गतिविधि के दौरान, नशीली दवाओं का व्यापार उनकी आय का एक मुख्य स्रोत बन गया। अब तालिबान का कहना है कि उन्होंने अफीम की खेती को खत्म करने का आदेश दे दिया है और उस नीति को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 की तुलना में 2022 में अफगानिस्तान में अफीम की खेती में 32% की वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय सहायता वापस लेने, सुरक्षा चुनौतियों, जलवायु संबंधी मुद्दों और बढ़ती वैश्विक खाद्य कीमतों के कारण अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था अब पतन के कगार पर है।

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