सबसे पहले ट्विटर ने इसकी शुरुआत की थी। उस वक्त समझा गया था कि ट्विटर के नये मालिक एलन मस्क ने पुराने कर्मचारियों को सबक सीखाने के लिए ऐसा फैसला लिया है। उसके बाद जोमैटो सहित कई भारतीय कंपनियों में भी इसका असर दिखा।
इन कंपनियों का मुख्य कारोबार ही सूचना तकनीक पर आधारित था। इसके बाद अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग से इस उद्योग में रोजगार के अवसर और कम होंगे, यह तय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस खुद ही लगातारएक निर्धारित प्रक्रिया के तहत काम कर सकता है।
इस वजह से सामान्य कंप्यूटर आधारित काम काज में वह इंसानों के मुकाबले अधिक कारगर सिद्ध होगा। इसलिए यह समझा जाना चाहिए कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कर्मचारियों की नियुक्ति में आ रहा सुस्ती एक चेतावनी है। साफ शब्दों में कहें तो अब यह उद्योग मंदी की आहट दे चुका है।
वैसे ही वैश्विक महामारी और यूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में मंदी आने की आशंका पहले ही व्यक्त कर दी गयी थी। इस बात के पर्याप्त प्रमाण और आंकड़े मौजूद हैं कि इस क्षेत्र में मंदी की दस्तक है। कम से कम अगली कुछ तिमाहियों तक तो ऐसा ही परिदृश्य बने रहने की संभावना है।
कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस बार इन्फोसिस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियों ने इस वर्ष कैंपस में आकर नए युवाओं की भर्ती नहीं की।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस अकादमिक वर्ष में कम युवाओं को पहली नौकरी मिलेगी और चूंकि इन युवाओं को कई महीनों तक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है इसलिए यह माना जा सकता है कि बड़ी आईटी सेवा कंपनियां ऐसी मंदी का अनुमान पेश कर रही हैं जो कुछ समय तक जारी रहेगी।
वरना अपने कारोबारी विस्तार के तहत वह नियमित तौर पर कैंपस सिलेक्शन का काम पहले करती आयी हैं। निश्चित तौर पर टीसीएस ने तीसरी तिमाही में अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती की है और पिछली कई तिमाहियों में पहली बार ऐसा हुआ है।
इसी तिमाही में इन्फोसिस ने केवल 1,600 कर्मचारियों को काम पर रखा है। उसने यह भी कहा है कि रोजगार नहीं देने की अनिच्छा केवल शुरुआती स्तर की नौकरियों तक सीमित नहीं है। बल्कि मझोले और वरिष्ठ स्तर के अनुभवी कर्मचारियों के साथ भी यही स्थिति है।
ऐसे प्रमाण भी हैं जिनसे पता चलता है कि नौकरी बदलने की चाह रखने वाले आईटी कर्मियों की तादाद उपलब्ध नौकरियों से अधिक हो सकती है। ऐसी अन्य वजह भी हैं जो इस दिशा में संकेत करती हैं। अब बहुत कम नई स्टार्टअप शुरू हो रही हैं।
इसकी वजह से आईटी क्षेत्र में रोजगार का एक अहम जरिया कम हो रहा है। फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसी प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है। इसके चलते हजारों की तादाद में अनुभवी कर्मचारी बाजार में हैं जिनके पास वैकल्पिक रोजगार नहीं हैं।
अब वेबसाइटों पर भी ऐसी सूचनाएं कम ही आती हैं जहां आईटी क्षेत्र के फ्रीलांस काम करने वालों को अनुबंधित रोजगार मिल सके। बड़ी कंपनियों को भी अब उन कर्मचारियों को लेकर शिकायत नहीं हैं जो नियमित काम के अलावा बाकी के घंटों में कुछ और काम कर रहे हैं।
हालिया नतीजों के बाद दिग्गज आईटी कंपनियों ने भी मंदी का संकेत दिया है। अधिकांश बड़ी कंपनियों ने इस पर खर्च में कटौती कर दी है। इसका अर्थ यह है कि केवल उन्हीं प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है जिनसे आय पर तत्काल सकारात्मक असर पड़ने वाला हो या फिर जिनसे व्यय को नियंत्रित करने में मदद मिले।
उदाहरण के लिए डिजिटलीकरण के प्रयास तथा क्लाउड और साइबर सुरक्षा की मांग मजबूत बनी हुई है। आईटी उद्योग आर्थिक गतिवधियों से मजबूती से जुड़ा होता है, यह भी संभावित मंदी की एक बड़ी वजह है।
भारतीय आईटी उद्योग का अधिकांश राजस्व उत्तरी अमेरिका से आता है और क्षेत्र के मुताबिक यूरोप दूसरा बड़ा योगदानकर्ता है। फिलहाल सभी आर्थिक क्षेत्र प्रभावित हैं। वृहद रुझान बताते हैं कि पश्चिमी यूरोप अभी भी यूक्रेन युद्ध के असर से जूझ रहा है जबकि ब्रिटेन ब्रेक्सिट के असर से ही नहीं निकल पाया है।
जापान और अमेरिका मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं। चीन लंबे लॉकडाउन से उबर रहा है। रुझान बताते हैं कि आईटी क्षेत्र में रोजगार संकट बढ़ सकता है। वृहद आर्थिक प्रभाव की बात करें तो सेवा निर्यात से होने वाली आय में कमी के कारण देश के बाह्य खाते पर दबाव बन सकता है।
इसलिए पूरे देश में आईटी उद्योग पर पड़ने वाले मंदी के इस प्रभाव का असर हर काम काज पर पड़ेगा, इसे अभी से ही स्वीकार किया जाना चाहिए। दरअसल कई सरकारी फैसलों ने भी छोटे और मझले कारोबार को विस्तार देने से रोक दिया है। दूसरी तरफ कोरोना महामारी के बाद भी आर्थिक परिदृश्य में स्थिति अब तक पहले जैसी नहीं हो पायी है। ऐसे में बाकी क्षेत्रों पर भी इसका असर पड़ेगा।