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दुनिया में अन्न की कमी को दूर करने की दिशा में कारगर जेनेटिक विज्ञान

  • समुद्री जल के खारापन से नुकसान नहीं

  • प्रतिकूल परिस्थिति में भी फसल ठीक रहेगी

  • दुनिया के अनाज की बड़ी कमी दूर हो जाएगी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः अब एक नये किस्म की चावल की खेती उन इलाकों में प्रारंभ होगी, जहां का मौसम धान की खेती के अनुकूल नहीं रहता है। इस नई प्रजाति को जेनेटिक बदलाव के तहत तैयार किया गया है। इसे अन्न संकट दूर करने को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है।

जहां पर आम तौर पर धान की खेती के लायक माहौल नहीं है, उन इलाकों में भी यह नई प्रजाति बेहतर फसल देने में कामयाब होगी, ऐसा दावा किया गया है। इसके लिए उन इलाकों को भी अभी के मुकाबले अधिक अनाज मिल पायेगा, जहां के लोग अभी चावल के लिए पूरी तरह दूसरे इलाकों पर आश्रित हो चुके हैं।

खास तौर पर अफ्रीका के कई इलाको में यह बदलाव बहुत तेजी से हुआ है। इसके मूल में मौसम का बदलाव ही है, जिसके लिए अफ्रीकी देश जिम्मेदार भी नहीं हैं। बताया गया है कि जेनेटिक तौर पर परिवर्तित इस चावल में स्टेमाटा की संख्या कम कर दी गयी है। इस वजह से वे खारे पानी के करीब भी बेहतर फसल दे सकते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ शेफिल्ड ने यह काम किया है। दरअसल जेनेटिक वैज्ञानिकों ने इस बात पर गौर किया था कि कई इलाको में खेती की जमीन पर समुद्री जल प्रवेश कर जाता है।

इस खारा पानी में सामान्य किस्म के धान की फसल नहीं हो पाती है। मौसम के बदलाव की वजह से समुद्री जलस्तर का ऊपर आना अब धीरे धीरे आम होता जा रहा है। इसलिए जेनेटिक तौर पर चावल में यह बदलाव किया गया है।

विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जब चापल में स्टोमाटा की संख्या कम कर दी जाती है तो वह सूखे से बेहतर तरीके से निपटता है। इस प्रजाति के चावल की खेती को पूर्व के मुकाबले साठ प्रतिशत कम पानी की भी जरूरत पड़ती है।

जमीन पर अगर खारापन मौजूद हो तब भी यह चावल उपजता है। इससे फसल की उपज को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता। इसका शोधकर्ताओं ने खेतों में परीक्षण भी किया है तथा परिणामों के आधार पर इसकी सफलता के दावे किये हैं।

बता दें कि दुनिया में करीब साढ़े तीन खरब लोगों के दैनिक भोजन का हिस्सा चावल ही है। दुनिया के मीठे जल का तीस प्रतिशत इस्तेमाल इसी धान की उपज के लिए होता है। इसलिए पानी की कमी वाले इलाके में अथवा समुद्री पानी के प्रभाव वाले खेतों में यह नई प्रजाति उपजायी जा सकेगी।

यह पाया गया है कि धान की खेती करने वाले देश वियतनाम में धान की खेती पर समुद्री जलस्तर के बढ़ने का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पानी में खारापन बढ़ जाने के बाद वहां धान की फसल नष्ट हो जाती है। अब कम स्टोमाटा वाले ऐसे धान अपने अंदर फोटो संश्लेषण के लिए कॉर्बन डॉईऑक्साइड की मदद लेते हैं।

इससे जो भाप पैदा होता है, वह भी फसल को बढ़ने के काम आने लगता है। इसलिए माना जा रहा है कि नई प्रजाति के धान की खेती से उन इलाको में भी अनाज की कमी दूर होगी जो वर्तमान में मौसम के बदलाव की मार लगातार झेल रहे हैं।

इस शोध दल के नेता तथा यूनिवर्सिटी के बॉयो साइंस के डॉ रॉबर्ट कैइन ने कहा कि पूरी दुनिया के भोजन में चावल एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अगर चावल की सही खेती हो पायी तो यह दुनिया में अनाज संकट को काफी हद तक दूर कर सकेगा।

इस काम को करने के लिए शोध दल ने चावल की 72 प्रजातियों पर काम किया था। इनमें से कुछ को ही जेनेटिक तौर पर बदला गया था। अब वे इस दिशा में सबसे अधिक फसल देने वाले चावल की खेती पर शोध कर रहे हैं जो धान के पौधे के तौर पर अत्यधिक गर्मी भी झेल सके।

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