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उत्तरी गोलार्ध के ऊपरी इलाके में साफ नजर आया
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दोबारा लौटकर आने तक धरती ही बदल चुकी होगी
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हरा रंग क्यों है, इस पर वैज्ञानिक शोध जारी है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पचास हजार साल में एक बार आने वाला हरे रंग का धूमकेतु धरती के सबसे करीब से गुजरता हुआ आगे बढ़ गया। पहले से जानकारी होने की वजह से अनेक उत्साही लोगों ने इसे देखा। वैसे कई खगोल विज्ञान केंद्र इसे करीब से गुजरता हुआ देखने के साथ साथ उनके बारे में यथासंभव आंकड़े भी एकत्रित करते रहे।
इसी क्रम में यह अनुमान लगाया गया है कि अगली बार जब यह धूमकेतु फिर से इस सौर जगत की तरफ आयेगा तो शायद यह सौर जगत ही बहुत बदल चुका होगा और धरती पर इंसानों की वर्तमान प्रजाति नहीं होगी। इसका मुख्य कारण पर्यावरण असंतुलन तथा अन्य प्राकृतिक कारण है।
इससे पहले भी जब यह धूमकेतु हमारे करीब से गुजरा था तो हमारे पूर्वज इंसानों ने शायद आसमान पर इस हरे रंग के झाड़ू जैसी रोशनी को देखा होगा। उस काल में विज्ञान इतना विकसित नहीं था कि इंसानों को इसके बारे में कोई बेहतर जानकारी हो।
आने वाले पचास हजार साल के बाद भी इंसानों का या तो क्रमिक विकास हो चुका होगा या फिर पर्यावरण संकट की वजह से इस गोला पर से इंसान शायद खत्म हो चुके होंगे। इस धूमकेतु के बारे में नासा की तरफ से यह जानकारी दी गयी है कि यह धरती की तरफ आता हुआ मार्च 2022 में पहली बार देखा गया था।
उसकी धुरी की गणना के बाद ही खगोल वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे थे कि यह पचास हजार साल में एक बार इस इलाके से होकर गुजरता है। जब यह धूमकेतु जूपिटर के आस पास था तभी इसके हरे रंग को देखकर पहली बार चर्चा हुई थी।
आम तौर पर इस रंग के धुमकेतु को इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। कल यानी दो फरवरी को यह धरती के सबसे करीब था। इस दौरान उत्तरी गोलार्ध के ऊपर इसे देखा गया। वैसे भी उत्साही लोग दूरबीन के सहारे इसे कई सप्ताह से देख रहे थे। बुधवार की रात यह सबसे करीब होने की वजह से सबसे ज्यादा चमकीला भी नजर आ रहा था।
सी 2022 ई 3 जेडटीएफ नामक इस खगोलीय पिंड के धरती से करीब 42 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर होने की वजह से खुले आसमान में उसकी चमक लोगों ने साफ साफ देखी।
खुली आंखों से इसे देखने वालों को उत्तरी गोलार्ध के ऊपर हरे रंग की एक चमकीली रोशनी नजर आयी, जो आम धूमकेतु की तरह ही पूंछ लिये हुए आगे बढ़ रही थी। वैसे यह बताया गया है कि उसकी पूंछ के इलाका बढ़ते जाने की वजह से ऐसी संभावना जतायी गयी है कि शायद यह धूमकेतु टूटता चला जा रहा है।
वैसे यह धूमकेतु हरे रंग का क्यों है, यह सवाल खगोल वैज्ञानिकों को ज्यादा परेशान कर रहा है। सूर्य के करीब गत 12 जनवरी को नजर आने के बाद से लगातार उसके आंकड़ों को संकलित किया जा रहा है ताकि यह पता चल सके कि यह अन्य धूमकेतुओं से अलग रंग का क्यों है।
अब अपनी धुरी पर आगे बढ़ जाने के बाद ही वैज्ञानिकों ने इंसानों सहित तमाम प्राणियों के क्रमिक विकास तथा धरती पर मंडराते प्रदूषण के खतरों की वजह से कहा है कि हमारी पीढ़ी शायद इस धूमकेतु को देखने वाली पहली और अंतिम पीढ़ी होगी।