बीजिंगः चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मनमाने फैसलों ने वहां के औद्योगिक कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस वजह से वहां के अनेक उद्योगपति अब चुपचाप अपने कारोबार को अन्य देशों में पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा चीन के अनेक पैसे वालों ने भी चुपचाप दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि यह सरकार चंद लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है।
कोरोना महामारी के बीच ही चीन में हर किस्म की औद्योगिक गतिविधियों पर सरकारी नियंत्रण बहुत बढ़ गया है। इससे अनेक लोगों का कारोबार प्रभावित होने लगा है। परेशानियों से बचने के लिए ही ऐसे उद्योगपति दूसरे देशों में अपना कारोबार ले जा रहे हैं जहां उनके स्वतंत्र तौर पर अपना कारोबार बढ़ाने का अवसर प्रदान किया जाता है।
खरबपति लोग भी वर्तमान सरकार के तेवर से भयभीत हैं और अन्य देशों की नागरिकता पैसा देकर हासिल कर रहे हैं। दुनिया के अनेक देशों में एक मुश्त बड़ी रकम के भुगतान पर किसी भी नागरिक को वहां की स्थायी नागरिकता प्रदान करने का नियम चालू कर रखा है।
यह अब धीरे धीरे दुनिया में तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। अपने देश की सरकार के प्रकोप से बचने के लिए अनेक देशों के लोग इन देशों में नागरिक बन रहे हैं।
चीन में ऐसा होने की वजह से चीन की पूंजी भी तेजी से बाहर जा रही है। चर्चा है कि तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही शी जिनपिंग का ऐसा आचरण पहले के मुकाबले और अधिक कठोर हो गया है। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था कि रिपोर् के मुताबिक वर्ष 2022 में चीन के अमीर लोगों ने सबसे अधिक देश छोड़ा है।
इनकी संख्या करीब दस हजार आठ सौ है। इनलोगों के चले जाने के साथ साथ उनकी पूंजी भी देश के बाहर चली गयी है। जिनलोगों ने अपना मुख्यालय चीन में रख छोड़ा है, उनकी गतिविधियां भी सिर्फ कंपनी को चालू रखने भर की रह गयी है। इससे रोजगार के अवसर भी कम हो गये हैं।
चीन के प्रसिद्ध खरबपति और प्रसिद्ध कंपनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मे के चीन छोड़ने के बाद इस तरफ दुनिया का ध्यान गया था। इसी तरह अब दूसरे व्यापारियों के भी चीन से चले जाने की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था में ऐसे खबरपतियों का पैसा गायब हो गया है। दूसरी तरफ वहां की बैंकिंग नीति से भी लोग परेशान हैं और उसके लिए भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जिम्मेदार मानते हैं, जो सिर्फ चंद लोगों को फायदा पहुंचाने वाले फैसले ले रहे हैं।