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रोमन साम्राज्य के वैभव का नमूना है
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इतने वर्षों बाद भी अधिकांश सकुशल है
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ज्वालामुखी की राख से बना चूना मिश्रण
पेरिसः रोमन इतिहास बड़ा समृद्ध रहा है। इसके साथ ही प्राचीन काल में वहां बनायी गयी विशाल और भव्य इमारतें आज भी वैश्विक पर्यटन के आकर्षण के केंद्र हैं। इनमें से कुछ प्राकृतिक आपदाओं और रखरखाव की कमी की वजह से क्षतिग्रस्त हुई हैं।
इसके बाद भी यह रहस्य ही बना हुआ था कि जब दुनिया के दूसरे इलाके में उस काल की तमाम संरचनाएं ध्वस्त हो गयीं तो प्राचीन रोमन साम्राज्य के इन इमारतों को इतनी मजबूती कैसे मिली। इतने दिनों के शोध के बाद अब जाकर वैज्ञानिकों ने इसके राज का पता लगा लिया है।
इन प्राचीन इमारतों में रोम का विश्व प्रसिद्ध पैंथिओन भी है, जिसके ऊपर का गुंबद शायद ए डी 128 में बना था और आज भी यथावत है। दरअसल इससे साबित हो जाता है कि उस काल में भी रोमन स्थापत्य कला दुनिया के दूसरे इलाकों से काफी उन्नत थी। वहां के नमूनों की जांच से शोध दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि दरअसल वे कंक्रीट के ही बने हुए थे।
आज के दौर में सीमेंट के ढांचे कुछ दशक बाद ही ध्वस्त हो जाते हैं, ऐसे में इनका अब तक टिके रहना एक अचरज की बात थी। साथ ही इस पर भी वैज्ञानिक हैरान थे कि इन तमाम विशाल भवनों और संरचनाओं ने तमाम किस्म की प्राकृतिक चुनौतियों को भी निरंतर झेला है।
अब एमआईटी, हावर्ड यूनिवर्सिटी और इटली तथा स्विटजरलैंड के शोधकर्ताओं ने इसका राज खोला है। वे काफी समय से इस पर निरंतर शोध कर रहे थे। यह पता चला है कि इन तमाम संरचनाओं में खुद की गड़बड़ी को ठीक करने की तकनीक थी। इस बारे में जर्नल साइंस एडवांसेज में एक रिपोर्ट प्रकाशित भी की गयी है।
इसे एमआईटी के प्रोफसर एडमिर मासिक और उनके शोध छात्र लिंडा सेइमोर ने प्रस्तुत किया है। इन विशाल संरचनाओं के निर्माण में एक खास पदार्थ का इस्तेमाल किया गया था। यह पोज्जोलैनिक पदार्थ था। वैसे उस काल के लिहाज से यह शायद ज्वालामुखी के निकला हुआ राख था।
नेपल्स की खाड़ी से इन्हें एकत्रित कर लाया गया था। पूरे रोमन साम्राज्य में जहां कहीं भी बड़ी इमारतों का निर्माण हो रहा था, वहां यह ज्वालामुखी की राख भेजी गयी थी। इनमें चूना का एक हिस्सा था जो कंक्रीट का एक आवश्यक हिस्सा होता है। वर्तमान दौर के सीमेंट के निर्माण में यह गुण नहीं होता है।
इसी वजह से आज के निर्माण ज्यादा टिकाऊ नहीं होते हैं। ज्वालामुखी की इस राख की रासायनिक संरचना की वजह से ही उस दौर में बनी इमारतें हमेशा ही खुद को ठीक करने में सफल रही। इस एक गुण की वजह से वे आज भी खड़ी हैं और पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं।
चूने का वह हिस्सा किसी भी क्षतिग्रस्त हिस्से को भरने का काम खुद ही कर लेता था क्योंकि उसकी संरचना ही कुछ ऐसी थी। वरना उस दौर का निर्माण कार्य का स्तर आज के जितना उन्नत नहीं था। शोध से पता चला है कि सिर्फ चूने को ही वहां की कंक्रीट में नहीं मिलाया गया था।
शोध दल के मुताबिक यह शायद उस काल के निर्माताओं ने सामान्य चूना के बदले क्विक लाइम का इस्तेमाल किया था। अब उनके पास यह तकनीक कहां से आयी, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। अनुमान है कि इसे पहले पानी के साथ मिलाकर एक पेस्ट सा बनाया जाता था।
उसके बाद इसका प्रयोग जोडों में होता था। जिसकी वजह से वे अपने रासायनिक गुण की वजह से जहां कहीं भी जोड़ कमजोर होता था उस जगह को यही ज्वालामुखी के राख से बना चूना भर देता था। इसी वजह से सारी इमारतें आज तक बुलंदी के साथ खड़ी हैं।