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बाल के रेशे के जैसा काले रंग के बर्फ
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हवा के झोंकों से यह स्थान बदलता है
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गर्मी में मौजूद गैस विस्फोट करते हैं
राष्ट्रीय खबर
रांचीः मार्स में सर्दी के मौसम का हाल देखकर खगोल वैज्ञानिक चकित हैं। वहां बर्फ है, इस बात की पुष्टि तो काफी पहले ही हो चुकी थी। अब पहली बार वहां कड़ाके की ठंड के वक्त कैसा हाल होता है, उसे देखने का अवसर वैज्ञानिकों को मिला है। दो साल से इस मौसम में वहां की हालत क्या होती है, इसकी जांच की तैयारियां चल रही थी।
अब पहली बार आधुनिक संचार उपकरणों की मदद से वहां का हाल देख पाना संभव हुआ है। नासा के मार्स रिकॉंसिनेंस ऑर्बिटर में लगे खास किस्म के कैमरे ने ग्रह की यह तस्वीरें उपलब्ध करायी हैं। धरती के कई इलाकों में अभी इसी बर्फवारी का कहर जारी है। खास कर अमेरिका, कनाडा और जापान में इसका असर बहुत ज्यादा है।
फिर भी अंतरिक्ष वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल ग्रह के मुकाबले धरती पर ठंड का प्रभाव बहुत कम है। आसमान की ऊंचाई से इस ग्रह के सतह को देखने पर यह सुंदर पर्यटन स्थल के जैसा नजर आता है। वैसे वैज्ञानिक आंकड़े वहां का असली हाल बयां करते हैं जो इंसानी जीवन के लिए टिके रहने लायक तो कतई नहीं हैं।
वहां के करीब से गुजरते हुए अंतरिक्ष यान के कैमरे ने जो दृश्य कैद किया है, उससे पता चलता है कि वहां बर्फ अजीब आकार के बने हुए हैं। लेकिन अध्ययन से साफ हो गया है कि यह सारे बर्फ खंड घनाकार में बने हैं। नासा के वैज्ञानिकों ने इस बारे मे विस्तार से जानकारी दी है। इसमें बताया गया है कि देखने में एक सुंदर पर्यटन स्थल जैसा नजर आने के बाद भी वहां का मौसम अभी इंसानी जीवन के लिए जानलेवा है।
साथ ही यह भी पता चला है कि वहां दो किस्म के बर्फ मौजूद हैं। इनमें से एक बर्फ तो पानी से बना हुआ है, जो कॉर्बन मोनोऑक्साइड के साथ मिलकर तैयार ह आ है। इसे वैज्ञानिक परिभाषा में ड्राई आइस कहा जाता है। दूसरे किस्म का बर्फ धरती की बर्फवारी के जैसा है लेकिन वे आकार में बहुत ही पतले होते हैं।
उनके आकार के बारे में अनुमान लगाया गया है कि वे इंसानी बाल से पतले हैं। यह पता चला है कि वहां का वातावरण इतना पतला है कि पानी का बर्फ पिघलने के बाद गैस बन जाता है और फिर कॉर्बन डाईऑक्साइड के संपर्क में आकर काले रंग का बर्फ बनकर सतह पर जमता चला जाता है।
वहां से मिले चित्रों का यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोआना के शोध दल ने विश्लेषण कर इन तस्वीरों को जारी किया है, जो इंसानी समझ के लायक बनाये गये हैं। इसमें वहा सतह पर अजीब अजीब आकार के बर्फखंड बने हुए दिखाई दे रहे हैं जो दरअसल बाल से भी पतले बर्फ से बने हुए हैं। यानी ऐसे करोड़ों बर्फ के टुकड़ों को मिलाकर एक पत्थऱ जैसा आकार बना है। बहुत हल्के होने की वजह से हवा के झोंके से बर्फ का ढेर आकार बदलता रहता है और उसका स्थान परिवर्तन भी होता है।
मंगल ग्रह के दोनों ध्रुवों पर यह बर्फवारी अधिक होती है। वहां के आसमान पर अभी मौजूद बादल और गैसों की वजह से इन इलाकों को अंतरिक्ष यान का कैमरा सही तरीके से नहीं देख पाया है। वैसे इस घटना से फिर से इस बात की पुष्टि हुई है कि इस ग्रह पर मौजूद पानी भी आज से करीब दो से ढाई बिलियन वर्ष पहले ही भाप बन गया था।
उसके बाद से यह वीरान ग्रह तापमान कम होने के दौरान एकत्रित होने वाले बर्फ को अपने अंदर समेटता रहता है। इस क्रम में वैज्ञानिकों ने यह भी बताया है कि मौसम बदलने के बाद वहां का नजारा कुछ और ही होता है। सूर्य की तेज रोशनी से बर्फ में मौजूद गैस विस्फोट कर जाते हैं। इससे वहां धूलकणों की आंधी बन जाती है। वहां मौजूद पानी रिसता हुआ अंदर चला जाता है। लेकिन वहां के वातावरण की वजह से यह पानी भी अंततः भाप बनकर आसमान में बादल बन जाता है।