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बच्चों को मोबाइल देकर बहलाना अच्छी बात नहीं

  • कोरोना के पहल से जारी हुआ था परीक्षण

  • मानसिक अवसाद बाद में खतरनाक बनता है

  • रंगों के आधार पर भी स्थिति भांपने की तकनीक

राष्ट्रीय खबर

रांचीः यह आम मध्यमवर्गीय से लेकर उच्च आय वर्ग के घरों की कहानी है। दरअसल जिन घरों में पिता और माता दोनों ही नौकरीपेशा है, वहां यह बात ज्यादा देखने को मिलती है। घर के बच्चे को बहलाने के लिए उसे मोबाइल पर कोई गेम अथवा वीडियो खोलकर दे दिया जाता है। बच्चा उसमें व्यस्त रहता है और घर के दूसरे लोग इस मौके पर दूसरे काम निपटाते हैं।

लेकिन अब वैज्ञानिक शोध में इस तरकीब को गलत माना गया है। शोधकर्ता मानते हैं कि इस अस्थायी उपाय की वजह से बच्चे का दिमाग गलत तरीके से विकसित होता है और बड़ा होकर बच्चे का यही आचरण उसके माता पिता के लिए परेशानी का बड़ा कारण बन जाता है। तीन से पांच साल के बच्चों को बहलाने के लिए ऐसे घरों में अक्सर ही इसे आजमाया जाता है।

इस अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता है और कई ऐसे घरों में बच्चों के बहुत जिद्दी होने अथवा हर छोटी मोटी बात पर चिड़चिड़ा होते जाने के इस कारण को अभिभावक समझ भी नहीं पाते हैं।

मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोध दल ने अपने परीक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। इसमें बताया गया है कि जिस तरीके से घर के बड़े लोग बच्चों को बहलाते हैं, वह उपाय बाद में चलकर बच्चा और उसके अभिभावकों के लिए बहुत बड़ा सरदर्द बन रहा है।

आम तौर पर लड़कों पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता हुआ दिखा है। इस शोध में जेएएमए पेडियाट्रिक्स के चिकित्सक भी शामिल थे। शोध दल का मानना है कि अपना काम निपटाने के लिए बच्चे को मोबाइल देकर बहलाने का उपाय भले ही सामान्य लगता हो लेकिन लंबे समय तक यही उपाय भविष्य के लिए चिंता का कारण है। इस शोध दल के नेता डॉ जेन्नी राडेस्की ने इस बारे में जानकारी दी है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि मोबाइल जैसे डिजिटल उपकरण से बच्चे को उलझाने से उनकी स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास अवरूद्ध होता है। इसकी वजह से वह बड़ा होकर कई सामान्य फैसले भी खुद नहीं ले पाता है। इसकी वजह से उनके मानसिक आचरण का बुरा असर उसे चाल चलन पर भी पड़ने लगता है।

शोध के तहत 422 अभिभावकों और उनके 422 बच्चों को शामिल किया गया था। यह परीक्षण अगस्त 2018 से लेकर जनवरी 2020 तक चला था। उसके बाद उसे कोरोना महामारी की वजह से रोकना पड़ा था। अब जाकर यह काम फिर से पूरा किया गया है। परीक्षण में पाया गया है कि लगातार बच्चे को इस तरीके से बहलाने का कुप्रभाव छह महीने के भीतर ही दिखने लगता है।

ऐसे बच्चों का मूड अचानक बदलने और मानसिक तौर पर उनके निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होते जाने की पुष्टि हुई है। इसके प्रभाव में आने वाले बच्चे सामान्य सी बात पर भी गुस्सा करने लगते हैं। कई बार बच्चों को मानसिक अवसाद की स्थिति में भी जाते हुए देखा गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक शिशु की यह उम्र उसके मानसिक विकास की होती है। उसे मोबाइल जैसी चीजों में उलझा देने की वजह से यह विकास नहीं हो पाया है। इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की पहचान भी आसान है। वे छोटी मोटी बात पर मुंह फूलाने लगते हैं, बड़ों की बात नहीं मानते अथवा बहुत अधिक गुस्सा करने लगते हैं।

शोधदल ने बताया है कि ऐसी पहचान वाले बच्चों के अभिभावकों की यह जिम्मेदारी है कि वे इस खतरे को समझें और बच्चे को मोबाइल से बहलाने के बदले उसके मानसिक विकास में मददगार बने। शोध दल का मानना है कि इसके बदले बच्चों को अधिक मेहनत के साथ खिलौना या दूसरा विकल्प दिया जाना चाहिए।

इसके अलावा बच्चों के साथ खेल कूद कर भी उसे मानसिक समर्थन दिया जा सकता है, जिससे मोबाइल पर से उसका आकर्षण धीरे धीरे समाप्त किया जा सके। शोध दल ने बच्चों को पेंटिंग करने के जरिए भी उसका मूड भांपने की तकनीक बतायी है। इसमें कहा गया है कि नीले रंग का अर्थ बच्चे के बोर होने, हरे रंग का अर्थ शांत होने, पीला रंग का अर्थ चिंतित अथवा मानसिक तौर पर अस्थिर और लाल रंग का अर्थ आक्रामक रवैया है। इस पेंटिंग में बच्चा कौन सा रंग इस्तेमाल कर रहा है, उसके जरिए उनकी मानसिक स्थिति को भांपकर भी अभिभावक उचित उपाय कर सकते हैं।

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