बांग्लादेश के साथ साथ अब भारत के खिलाफ भी आरोप
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जुंटा सेना के खिलाफ बढ़त बनायी
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कई प्रमुख इलाकों पर कब्जा कर लिया
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बिना मदद के ऐसा कतई संभव नहीं
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः पड़ोसी देश म्यांमार में जब से आंग सान सू की की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका गया है, तब से देश में सामाजिक-राजनीतिक स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इस देश में अंदरूनी कलह में लगे कई अन्य जातीय समूहों के साथ रखाइन समुदाय द्वारा गठित एक समूह अराकान आर्मी ने 2023 में सैन्य सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है।
अभी तक, अराकान आर्मी ने म्यांमार में प्रमुखता हासिल कर ली है और रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि इसने बांग्लादेश सीमा के पास म्यांमार के एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अराकान आर्मी कथित तौर पर अपनी सैन्य सरकार के खिलाफ आगे बढ़ रही है और निकट भविष्य में तख्तापलट की योजना बना सकती है।
एक हालिया रिपोर्ट में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डाला है। इसने पाया है कि भारत और बांग्लादेश से महत्वपूर्ण संसाधन तस्करी के माध्यम से गुप्त रूप से अराकान क्षेत्र में पहुँच रहे हैं, जो स्थानीय लोगों और अराकान सेना के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा बन गया है।
म्यांमार की विद्रोही अराकान सेना ने 19 दिसंबर को फुटेज जारी की, जिसमें सत्तारूढ़ जुंटा बलों के सदस्यों को रखाइन राज्य के ऐन शहर में आत्मसमर्पण करते हुए दिखाया गया है। कई लोगों को, जो सफेद कपड़े के टुकड़े पकड़े और लहराते हुए देखे गए, एक इमारत से भागते हुए देखा गया, जबकि हवा में गोलियाँ और विस्फोट हो रहे थे। फुटेज में कई घायल लड़ाके ज़मीन पर पड़े हुए भी दिखाई दिए।
अराकान सेना के टेलीग्राम चैनल पर वीडियो के साथ दिए गए कैप्शन में कहा गया है कि लड़ाके पश्चिमी क्षेत्रीय कमान मुख्यालय से म्यांमार जुंटा सैनिक थे, जो सत्तारूढ़ जुंटा द्वारा सैनिकों को दलबदल करने से रोकने के लिए उनके बेस पर बमबारी करने के बाद भाग गए।
पश्चिमी राज्य राखाइन में पिछले साल अराकान आर्मी नामक शक्तिशाली विद्रोही समूह और सेना के बीच संघर्ष विराम टूटने के बाद हिंसा में वृद्धि देखी गई है। सहायता कार्यकर्ताओं के अनुसार, सताए गए रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के घर राखाइन में, हाल के महीनों में सेना ने हैजा से ग्रसित क्षेत्र में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को भोजन और दवा पहुँचाने से रोका है। इसके बाद भी इस विद्रोही गुट के निरंतर शक्तिशाली होते जाने पर यह बताया गया है कि पड़ोसी देशों से मिल रही मदद से ही वह अपनी सैन्य सरकार के खिलाफ युद्ध कर रही है।