टिकट के दावेदारों को अनुशासन की चिंता नहीं
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कई चले गये तो कई चले जाएंगे
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रविंद्र राय तक की नाराजगी दिखी
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पैराशूट से उतरे प्रत्याशियों से खफा
राष्ट्रीय खबर
रांचीः झारखंड के विधानसभा चुनाव में अब भाजपा का अनुशासन तार तार हो चुका है। दरअसल यह स्थिति भी भाजपा के भीतर चल रहे सत्ता हस्तांतरण का एक संकेत है, जिसके तहत हर राज्य के चुनाव से अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह दूरी बनाकर चल रहे हैं। इसके बदले झारखंड चुनाव की जिम्मेदारी अब शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा पर डाली गयी है।
इन दो नेताओं का अनुशासन स्थानीय नेताओं पर है, ऐसा नजर नहीं आ रहा है। टिकट के प्रत्याशियों ने नाराजगी में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
इनमें से कुछ तो झामुमो के खेमा में शामिल होकर भाजपा की परेशानी बढ़ा चुके हैं। भाजपा के कद्दावर नेता रविंद्र राय को मनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा को जाना पड़ा।
श्री राय झारखंड भाजपा के एक कद्दावर नेता हैं। दूसरी तरफ राज्यसभा सांसद आदित्य साहू ने मेनका सरकार को इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी किया।
इन घटनाक्रमों से साफ है कि भाजपा भी अब गुटबाजी का मार झेल रही है और बार बार कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने का मुद्दा भी खो चुकी है क्योंकि समर्थ नेताओं ने अपने करीबी लोगों को टिकट दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने पूरे राज्य में जिस तरीके से झामुमो के प्रचार की गाड़ी को आगे बढ़ाया है, उसके मुकाबले में आने के पहले ही भाजपा अपनी गुटबाजी की वजह से दूसरी उलझनों में है। इस किस्म की गुटबाजी का असर चुनाव परिणामों पर पड़ता है, यह सभी जानते हैं।
इसके बाद भी अगर भाजपा से दशकों से जुड़े नेता अगर नहीं मान रहे हैं तो यह माना जा सकता है कि पार्टी पर अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पकड़ कमजोर हो रही है। कुछ समीकरण ऐसे भी बन रहे हैं कि अब भाजपा का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन होने के बाद पार्टी के अंदर भी ऊपर से नीचे तक के सारे पुराने समीकरण बदल सकते हैं।
इसलिए भी नेता और कार्यकर्ता भी पहले से अपने नाम की चर्चा को बनाये रखने के लिए दम लगा रहे हैं ताकि नये राजनीतिक समीकरणों में उनका प्रभाव बना रहे। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में स्थानीय स्तर की सिफारिशों पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया गया है।
इस चुनाव में टिकट पाने वाले अनेक ऐसे प्रत्याशी हैं जो सीधे पैराशूट से नीचे उतरे हैं। इस वजह से भी यह सवाल अधिक प्रासंगिक हो गया है कि पार्टी अनुशान और तमाम बातें सिर्फ कार्यकर्ताओं के लिए ही है अथवा इन पर पार्टी के बड़े नेता भी अमल करते हैं।