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ईवीएम से जनादेश लूटा जा रहा हैः दिग्विजय सिंह

चुनाव आयुक्त की सफाई के बाद कांग्रेस नेता का नया हमला

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की मौजूदा प्रणाली ने एक मतदाता के रूप में उनके संवैधानिक अधिकार को छीन लिया है। यह बात हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत से कांग्रेस के चौंकने के कुछ दिनों बाद कही गई है।

उन्होंने दावा किया, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की तरह, कांग्रेस ने हरियाणा में भी डाक मतपत्रों के मामले में अधिकांश सीटें जीती हैं।मैं एक मतदाता हूं और यह मेरा संवैधानिक अधिकार है कि मेरा वोट मेरी पसंद के उम्मीदवार को जाए। मुझे अपने हाथ से मतपत्र को मतपेटी में डालना चाहिए और इस तरह, डाले गए मतों की 100 प्रतिशत गिनती होनी चाहिए। यह मेरा संवैधानिक अधिकार है जिसे ईवीएम की मौजूदा प्रणाली ने छीन लिया है। श्री सिंह ने पहले भी कई मौकों पर ईवीएम के माध्यम से डाले गए मतों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं।

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि नवंबर 2023 में एमपी चुनाव में उनकी पार्टी डाक मतपत्रों की गिनती में 230 में से 199 सीटें जीतेगी, लेकिन ईवीएम के जरिए डाले गए मतों की गिनती के बाद उसे केवल 66 सीटें ही मिल सकती हैं। डाक मतपत्र प्रणाली में मतपत्रों का वितरण और चिह्नित मतपत्र की वापसी डाक द्वारा की जाती है।

हरियाणा में कांग्रेस ने डाक मतपत्रों की गिनती में 90 में से 76 सीटें जीतीं। हालांकि, ईवीएम द्वारा दर्ज मतों की गिनती में पार्टी की सीटों की संख्या घटकर 37 रह गई। कांग्रेस नेता ने कहा कि देश की मुस्लिम आबादी को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, आप (पिछले दशकों में) जनसंख्या के आंकड़े देख सकते हैं।

देश में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं की तुलना में अधिक तेजी से घट रही है। उन्होंने देश में जाति आधारित जनगणना और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि इन कदमों से विभिन्न जातियों और उपजातियों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के बारे में सटीक जानकारी मिलेगी।

इस जानकारी के आधार पर उनके विकास की योजना बनाई जा सकेगी। एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा कि वह उद्योगपति और परोपकारी रतन टाटा को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग से सहमत हैं। रतन टाटा का बुधवार को निधन हो गया। सिंह ने यह भी कहा कि भारत की मौजूदा संसदीय राजनीति में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को लागू करना संभव नहीं है।

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