जूनियर डाक्टरों के धरनास्थल पर खुद ही चलकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आना और अपनी तरफ से कई एलान के साथ साथ आंदोलनकारियों को फिर से बात चीत के लिए आमंत्रित करने के बाद भी अगर आंदोलन चल रहा है तो सवाल उठना वाजिब है।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक टीएमसी नेता द्वारा एक ऑडियो जारी करने के बाद पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इससे साबित हो गया है कि आंदोलन को आगे बढ़ाने के पीछे राजनीतिक चाल भी है। हम इस बात को नहीं भूल सकते कि समर्थन एक दोधारी तलवार जैसी स्थिति हो सकती है।
महिलाओं की दृढ़ता और साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए; समाज की धारणा उन्हें दयनीय, शक्तिहीन प्राणी नहीं बनाना चाहिए। फोरेंसिक ने दिखाया कि आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर ने अपने हमलावर से लड़ाई की। दुखद रूप से, वह हार गई, जैसा कि 2020 में हाथरस की लड़की के साथ हुआ था। लेकिन बाद में वह अपने बलात्कारियों की पहचान करने के लिए पर्याप्त समय तक जीवित रही; कोई भी उससे वह शक्ति नहीं छीन सका।
उन्नाव में 2017 के सामूहिक बलात्कार की पीड़िता तब तक लड़ती रही जब तक कि उसके हमलावरों में से एक को गिरफ्तार नहीं कर लिया गया, उसने धमकियों को नज़रअंदाज़ किया और इस प्रक्रिया में अपने पिता और दो अन्य रिश्तेदारों को खो दिया। सज़ा देने का फ़ैसला उसका था, जैसा कि हाथरस में मरती हुई लड़की का था।
हाल ही में, फ्रांस में एक और सख्त फ़ैसला एक महिला ने लिया, जिसने शादी के 50 साल बाद पाया कि उसके पति ने नियमित रूप से उसे नशीला पदार्थ दिया था और अन्य पुरुषों को बुलाकर उसका बलात्कार किया था, जबकि वह तस्वीरें लेता था और वीडियो बनाता था।
2011 से 2020 के बीच उसके साथ 200 बार बलात्कार हुआ था। हालाँकि वह गुमनाम रह सकती थी, लेकिन महिला ने सार्वजनिक सुनवाई पर जोर दिया ताकि किसी और को उसी तरह से पीड़ा न हो।
हमारे सामने बिलकिस बानों का उदाहरण भी है, जहां बलात्कारियों के जेल से रिहा होने पर फूल माला से उनका स्वागत किया गया और तस्वीरों से साफ नजर आया कि अपने अपराध के लिए वे जरा सा भी शर्मिंदा नहीं हैं।
वर्तमान परिवेश में कई चीजों बदल गयी हैं और इस बदलाव को केंद्र सरकार ने ही बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, वह शर्म को उस जगह रखना चाहती थी जहाँ वह होना चाहिए।
शर्म की संस्कृति वाले देश में, यह सशक्तिकरण के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक होगा, दया या निंदा की जाँच के तहत एक जीवन को पुनः प्राप्त करना। सामूहिक गुस्सा और न्याय की पुकार, जैसा कि आर.जी. कर डॉक्टर के मामले में हुआ, महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अपराध के खिलाफ और कम से कम यहाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ समाज की एकीकृत स्थिति है।
लेकिन महिला की अपनी लड़ाई, भले ही हिंसक रूप से छोटी हो गई हो, समाज के विरोध के भारी प्रभाव में नहीं भूलनी चाहिए। इतनी सारी महिलाएँ अपने परिवारों से लेकर कानून लागू करने वाले अधिकारियों तक, विडंबना यह है कि समाज द्वारा पेश की गई बाधाओं का सामना करते हुए शर्म को वहीं रखने की कोशिश करती रहती हैं जहाँ यह होना चाहिए, यह उनके लचीलेपन का स्थायी निशान है।
अब जूनियर डाक्टरों के आंदोलन के पीछे के राजनीतिक ताकतों को भी समझना होगा। यह एक सच्चाई है कि भाजपा के पास पश्चिम बंगाल में अपना प्रशिक्षित कैडर नहीं के बराबर है। फिर भाजपा के साथ कौन लोग हैं, इसकी गहन जांच से स्पष्ट होता है कि अधिकांश वे लोग हैं जो पहले वामपंथी थे और तृणमूल कांग्रेस के हमलों से बचने के लिए अभी भगवा झंडे के नीचे शरण लिये हुए है। इसलिए एक बलात्कार और उसके साथ चल रहे आंदोलन को भी सत्ता पाने का नया हथियार बनाया ही जा सकता है। इसी तरह संदेशखाली में भी हुआ था लेकिन वहां के मामला अंततः फुस्स हो गया। सिर्फ बयानबाजी से सत्य नहीं बदलता, यह निर्विवाद सत्य है। अलबत्ता बहुत अधिक शोरगुल से मामला कुछ दिनों तक चर्चा में जरूर बना रहता है। मूल प्रसंग से अलग हटकर जब हम दिल्ली के शराब घोटाला को देखते हैं तो यह स्थिति और भी स्पष्ट हो जाती है। इस मामले में करोड़ों की हेराफेरी का आरोप तो लगा पर स्वीकार किये जाने लायक सबूत नहीं जुटाये जा सके। नतीजा है कि बाकी लोगों के बाद अब अरविंद केजरीवाल भी जमानत पर बाहर आ गये। लिहाजा जूनियन डाक्टरों को भी अपने आंदोलन के औचित्य को स्पष्ट करना होगा क्योंकि सरकार की तरफ से उन्हें बार बार समझौता के लिए बुलावा मिल रहा है और अब तक सरकार ने उन्हें जबरन हटाने की कोई कोशिश भी नहीं की है।