सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार की आलोचना की बाढ़
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अनेक विशेषज्ञों ने इसकी निंदा की
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मोहनदास पई ने कहा कर आतंकवाद है
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सरकारी विभाग अभी जवाब तैयार कर रहे हैं
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (आईआईटी-डी) को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) खुफिया महानिदेशालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। यह नोटिस आईआईटी-डी से 2017 से 2022 की अवधि के दौरान प्राप्त शोध निधि पर ब्याज और दंड के साथ जीएसटी में 120 करोड़ रुपये की मांग से संबंधित है।
नोटिस में आईआईटी-डी को यह बताने के लिए 30 दिनों की समय सीमा दी गई है कि निर्दिष्ट राशि और किसी भी संबंधित दंड को क्यों लागू नहीं किया जाना चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, साथ ही राज्य के स्वामित्व वाले और निजी विश्वविद्यालयों सहित कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों को भी जीएसटी अधिकारियों से समान अधिसूचनाएँ प्राप्त हुई हैं।
आईआईटी-डी ने अभी तक नोटिस पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, कई विशेषज्ञों ने जीएसटी व्यवस्था के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया है। इंफोसिस के पूर्व सीएफओ और उद्योग जगत की एक प्रमुख आवाज़ मोहनदास पई ने इसे कर आतंकवाद कहा और एक्स (ट्विटर) पर अपने पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग किया। क्या कर आतंकवाद की कोई सीमा नहीं है? दुखद स्थिति है।
इधऱ मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अधिसूचना का औपचारिक जवाब अभी तैयार किया जा रहा है। यह स्थिति की संभावित गलत व्याख्या की ओर इशारा करता है, क्योंकि आधिकारिक राय यह है कि सरकार द्वारा वित्तपोषित शोध प्रयासों पर वस्तु एवं सेवा कर लागू नहीं होना चाहिए, जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।
हमारा मानना है कि यह गलत व्याख्या है। हमारे विचार में, सरकार द्वारा वित्तपोषित शोध पर जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए। अफसोस की बात है कि इस तरह के नोटिस जारी किए जाते हैं। हमें शोध को प्रोत्साहित और समर्थन करना चाहिए, न कि इसे कर योग्य इकाई के रूप में देखना चाहिए।
एक निजी डीम्ड विश्वविद्यालय के प्रमुख ने कहा, विश्वविद्यालयों को दिए जाने वाले शोध कोष पर जीएसटी लागू करना भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के विकास के लिए एक ‘बड़ा झटका’ है। वित्त मंत्रालय यह देखने में विफल रहा है कि इस धन का एक बड़ा हिस्सा उपभोग्य सामग्रियों और परिसंपत्तियों को खरीदने में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पहले से ही जीएसटी के दायरे में हैं।
सोशल मीडिया में यह सवाल भी उठ गया है कि देश के सबसे धनी क्रिकेट संघ को पूरी तरह करमुक्त रखने के बाद शिक्षा संस्थानों पर ऐसा कार्रवाई दरअसल पूरी तरह गलत है।