दिल के अरमां क्या क्या थे। ऐसे तो लग रहा था कि जीत का रास्ता फिर से पूरी तरह खुला और सुनसान है। भाई लोगों ने कहना प्रारंभ कर दिया था, क्यों पड़े हो चक्कर में कोई नहीं है टक्कर में। अचानक से यह ट्रैक्टर वाले मैदान में आ गये। भला हो बेचारे अर्जुन मुंडा का जो मामले को अभी तक संभाले हुए हैं वरना पहले वाले कृषि मंत्री को अपने बॉडी लैंग्वेज से ही किसानों को नाराज कर देते थे। अब यह सवाल को बनता है कि जब दो साल पहले वाला दिया था, तो क्या उस वादा को भी बैंक खाता में पंद्रह लाख जैसे भूल जाने की सलाह दे रहे हैं।
चुनाव ऐसा उत्सव है जो जीतने वाले को हारने वाले से ज्यादा टेंशन दे जाता है। चुनाव जीतना कोई आसान काम तो नहीं है। ऊपर से माई लॉर्ड ने अचानक से चुनावी बॉंड को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया। अब अगर अदालत के आदेश का पालन होता है और चंदा देने वालों के नाम सामने आते हैं तो क्या होगा, यह अलग से टेंशन है। जैसा कि कई लोग संदेह जता चुके हैं कि चंदा देने वालों में कई ऐसी शेल कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं, जिनके बारे में जानकारी मिलने से खुद सेबी ने इंकार कर दिया है। एक पुरानी कहावत है कि परेशानी कभी अकेली नहीं आती है।
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था अचानक से इस मौसम में संकट के बादल क्यों मंडराने लगे, पता नहीं। ये किसान भी बड़े खुदगर्ज है। श्रीराम मंदिर का इतना भव्य उदघाटन किया तो उसका नशा उतरने के पहले ही ट्रैक्टर लेकर दिल्ली की तरफ निकल पड़े। अब हर दिन हरियाणा पुलिस का टेंशन बढ़ा रहे हैं क्योंकि ट्रैक्टरों पर राशन पानी लेकर आये हैं और पीछे हटने को तैयार नहीं है। ड्रोन से आंसू गैस छोड़े तो भाई लोग पतंग उड़ाने लगे। ट्रैक्टरों के आगे भी पता नहीं क्या क्या लगा रखा है, जिनके बारे में दावा किया जा रहा है कि वे बैरिकेड भी हटा सकते हैं। यानी एक बार आगे बढ़े तो उन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा। चुनाव करीब आने के दौर में कोई ऐसा करता है क्या।
लेकिन सिर्फ किसानों को कोसने से क्या होगा। बड़ी मुश्किल से नीतीश कुमार को साथ लाये थे पर उनका तेवर भी कुछ ठीक ठाक नहीं लग रहा है। ऊपर से उनके लिए दरवाजा खुला है कहकर लालू प्रसाद अलग से टेंशन बढ़ा रहे हैं। महाराष्ट्र में अशोक चव्हन को पार्टी में शामिल किया तो लोगों को आदर्श सोसयटी का घोटाला याद आने लगा। अरे भाई यह वाशिंग मशीन है, जिसमें जो जाएगा पाक साफ होकर ही निकलेगा।
इसी बात पर एक चर्चित फिल्म निकाह का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था हसन कमाल ने और संगीत में ढाला था रवि ने। इसे फिल्म का नायिका सलमा आगा ने खुद ही गाया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं
दिल के अरमां आँसुओं में बह गए
हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए
दिल के अरमां आँसुओं में बह गए
ज़िंदगी एक प्यास बनकर रह गयी
ज़िंदगी एक प्यास बनकर रह गयी
प्यार के क़िस्से अधूरे रह गए
हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए
दिल के अरमां आँसुओं में बह गए
शायद उनका आख़्हिरी हो यह सितम
शायद उनका आख़्हिरी हो यह सितम
हर सितम यह सोचकर हम सह गए
हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए
दिल के अरमां आँसुओं में बह गए
ख़ुद को भी हमने मिटा डाला मगर
फ़ास्ले जो दरमियाँ थे रह गए
हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए
दिल के अरमां आँसुओं में बह गए
कहीं से कुछ जुगाड़ कर लेने की उम्मीद थी को सुप्रीम कोर्ट ने हथौड़ा चला दिया कि चुनावी बॉंड नहीं चलेंगे। ऊपर से यह भी कह दिया कि अब दान देने वालों के नाम जाहिर करो क्योंकि इससे जानने का हक जनता को है। दिल्ली का टेंशन अलग है कि सबसे नई पार्टी ने अगर सभी सीटें जीत ली तो आगे क्या होगा। कहीं एक मत होकर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव फिर से ला दिया तो समर्थन करेंगे या विरोध। विधानसभा से लेकर नगर निगम तो पहले ही हार चुके हैं। पंजाब का भी वही हाल है।
भगवंत मान केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठकर में बैठकर भी किसानों की बात कर रहे हैं। अब अगर किसानों को सब दे दिया तो मददगार पूंजीपतियों की कर्जमाफी कैसे हो पायेगी। ऊपर से झारखंड में एक नया अल्लू अर्जुन पैदा हो गया है। चारों तरफ पोस्टर दिख रहे है कि झारखंड झूकेगा नहीं। इधर राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश में वही सवाल उठा रहे हैं जिनकी चर्चा से सरकार को डर लगता है। अचानक से सब कुछ गुड़ गोबर हो रहा है।