ममता के समर्थन में राहुल गांधी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः ममता बनर्जी के विरोधी स्वर के बाद भी राहुल गांधी ने पहले भी उन्हें इंडिया गठबंधन का हिस्सा बताया था। अब भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान ही राहुल गांधी पश्चिम बंगाल को केंद्र की ओर से वंचित किए जाने के खिलाफ रैली की है। उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर 100 दिन के प्रोजेक्ट का बकाया पैसा मांगा।
कांग्रेस सांसदों का दावा है कि 2022 के बाद से केंद्र सरकार ने बंगाल को मनरेगा परियोजना के तहत पैसा नहीं दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बंगाल को केंद्र से वंचित किए जाने के विरोध में उतर आए हैं। उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर 100 दिन के प्रोजेक्ट का बकाया मांगा। इससे पहले कई बार टीएमसी सांसदों ने इस विषय पर दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शन किया है और जब विभागीय मंत्री से मिलने उनका दल गया था तो केंद्रीय मंत्री चुपके से निकल गये थे।
कांग्रेस सांसदों का दावा है कि 2022 के बाद से केंद्र सरकार ने बंगाल को मनरेगा प्रोजेक्ट के लिए पैसा नहीं दिया है। इससे कई लाख जॉब कार्ड धारक परेशानी में हैं। उन्हें प्रवासी श्रमिक बनने के लिए मजबूर किया जाता है। राहुल ने प्रधानमंत्री से जल्द पैसा भेजने का अनुरोध किया। तृणमूल ने बार-बार बंगाल पर अभाव का आरोप लगाया है।
उन्होंने मोदी सरकार पर 100 दिन के काम का पैसा लंबे समय तक रोकने का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को कई पत्र लिखे हैं। फिर भी कोई समाधान नहीं। इस बीच, तृणमूल नेतृत्व ने आरोप लगाया कि कांग्रेस इंडिया अलायंस का हिस्सा होने के बावजूद इस मुद्दे पर लगभग चुप है। इस बार कांग्रेस ने तोड़ी चुप्पी।
पत्र में राहुल ने कहा कि बंगाल में न्याययात्रा के दौरान 100 दिवसीय कार्यकर्ताओं का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला था। वे ही लोग हैं जिन्होंने दुर्दशा को उजागर किया। मनरेगा परियोजना में 2022 से बंगाल को उसका हक नहीं मिल रहा है। परिणामस्वरूप एकुशे में काम करने वाले कई जॉब कार्ड धारकों को उनकी उचित राशि नहीं मिली।
धन की कमी के कारण मनरेगा में श्रमिकों की संख्या भी कम हो गई है। आंकड़ों के साथ राहुल ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्य में 100 दिन के काम के लिए 75 लाख श्रमिक थे। वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह संख्या 8 हजार है। इसके परिणामस्वरूप देश की महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। मजबूर होकर प्रवासी मजदूरों की राह चुननी पड़ रही है।