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वहां की हालत अब भारत के लिए चिंता की बात
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यूएनएलएफ हिंसा छोड़कर मुख्य धारा में शामिल
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समझौते के पीछे गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति
भूपेन गोस्वामी
गुवाहाटी : म्यांमार में एक बार फिर हालात बिगड़ रहे हैं। वहां बीते तीन हफ्ते से सेना और जुंटा-विरोधी बलों के बीच लड़ाई चल रही है।जुंटा माने सैन्य शासन, तानाशाही या निरंकुशता। म्यांमार की मौजूदा सरकार को ‘जुंटा शासन’ ही कहते हैं। वहां 2021 में सैन्य तख्तापलट हो गया था. और सेना नेवहां की नेता आंग सान सू की को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।
अब वहां फिर से लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस और सेना के बीच जंग छिड़ गई है। लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस ने इसे ‘ऑपरेशन 1027’ नाम दिया है।ब्रदरहुड अलायंस का दावा है कि उसने म्यांमार सेना की सवा सौ से ज्यादा चौकियों पर कब्जा कर लिया है। साथ ही बड़ी मात्रा में हथियार भी जब्त कर लिए हैं। छह टैंक और कई बख्तरबंद गाड़ियों पर भी अलायंस ने कब्जा कर लिया है।
म्यांमार सेना ने कबूल किया है कि चिन श्वे हॉ, पंसाई और हाउंग साई टाउन में उसने अपना नियंत्रण खो दिया है ।म्यांमार में चल रहे इस संघर्ष ने चिंता बढ़ा दी है। चीन ने भी संघर्षविराम की बात कही है। म्यांमार के चिन राज्य में सेना के शिविरों पर लोकतंत्र समर्थक बलों के कब्जे के बाद मिजोरम भाग गए म्यांमार सेना के 30 और जवानों को आज सुबह मणिपुर में मोरेह सीमा के माध्यम से वापस भेज दिया गया।
अधिकारियों ने बताया कि म्यांमार सेना के एक अधिकारी सहित 30 सैनिक बुधवार को मिजोरम के सियाहा जिले के तुइपांग गांव भाग गए और उनका इरादा कुछ दिनों तक वहां रहने का था क्योंकि चिन राज्य के मोटूपी में उनके शिविरों पर लोकतंत्र समर्थक सशस्त्र बलों ने कब्जा कर लिया था। वहीं, भारत के लिए ये और बड़ी चिंता की बात है।
उन्होंने कहा कि बायोमेट्रिक प्रक्रिया सहित आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भारतीय अधिकारियों ने 30 सैनिकों को पड़ोसी देश म्यांमार के तमू (मोरेह सीमा के सामने) में सेना के अधिकारियों को सौंप दिया। इंफाल से 110 किमी दक्षिण में सीमावर्ती शहर मोरेह, भारत-म्यांमार सीमा पर सबसे बड़ा सीमा व्यापार केंद्र है।
दरअसल, संघर्ष की वजह से म्यांमार से हजारों शरणार्थी पहले ही मणिपुर और मिजोरम में आकर बस चुके हैं। फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक 55 हजार शरणार्थी आ चुके हैं। शरणार्थियों के आने से पूर्वोत्तर भारत में तनाव फैलने की आशंका है। म्यांमार के चिन जातीय समूह का मणिपुर के कुकी के साथ अच्छे संबंध हैं। वहीं, मणिपुर के मैतेई उग्रवादी संगठनों की म्यांमार में भी मौजूदगी है। ऐसे में मणिपुर की स्थिति बिगड़ने का भी डर है।
इस समय में मोदी सरकार को मणिपुर में बड़ी कामयाबी मिली है। मणिपुर के सबसे पुराने उग्रवादी समूह ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मणिपुर के सबसे पुराने विद्रोही आर्म्ड ग्रुप यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट यूएनएलएफ हिंसा छोड़कर मुख्य धारा में शामिल होने पर सहमत हो गया।
यूएनएलएफ ने बुधवार को सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और हिंसा त्यागने पर सहमति जताई। इस समझौते से मणिपुर की घाटी में सक्रिय सबसे पुराना सशस्त्र समूह हिंसा त्याग कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमत हो गया। यह समझौता पूरे पूर्वोत्तर खासकर मणिपुर में शांति के एक नए युग की शुरुआत को बढ़ावा देने वाला है।
यूएनएलएफ ने यह फैसला केंद्र सरकार की ओर से ग्रुप पर कई साल पहले लगे बैन को 5 साल बढ़ाने के बाद लिया। इस समझौते के पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति काम आई। यह समझौता न केवल मणिपुर बल्कि पूर्वोत्तर के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ सालों में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से एक खास रणनीति बनाई गई है और उसे सफलता मिलती दिख रही है।
पूर्वोत्तर में शांति स्थापित हो इसके लिए उन इलाकों की पहचान की गई जहां ये संगठन सक्रिय था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों और पूर्वोत्तर के राज्यों से आने वाले मुख्यमंत्रियों के साथ कई बार मीटिंग की। यूएनएलएफ के गठन और शुरुआत में इसके विस्तार में संगठन को चीन का समर्थन मिला।
पिछले कुछ सालों में एक खास रणनीति के तहत गृह मंत्रालय ने इस ग्रुप के साथ समझौते की योजना बनाई।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस समझौते की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मणिपुर की घाटी में सक्रिय सबसे पुराना ग्रुप यूएनएलएफ हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमत हो गया है। उन्होंने कहा कि मैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनका स्वागत करता हूं और शांति और प्रगति के पथ पर उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं। पिछले कुछ वर्षों में कई उग्रवादी गुटों ने हथियार डाले हैं।