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ना चाहूं सोना चांदी बस वोट देदे बाबा

फिलहाल चुनाव का मौसम चल रहा है। इस मौसम में वोट मांगते कटोरा लिये घूमते नेता बहुतायत में नजर आते हैं। इस बार सीजन चला गया तो ऐसे वोट के भिखारी भी नजर आना बंद हो जाएंगे। लेकिन इसमें नेताओं की अकेली गलती नहीं है।

यह इंडिया सॉरी भारत का मैंगो मैन यानी आम आदमी की गलती है कि वह अच्छे खासे नेताओं को हर पांच साल बाद ऐसा वोट भिखारी बनने पर मजबूर कर देती है। दो राज्यों में तो इसका सीजन कल यानी शुक्रवार को ही निपट गया।

अब तमाम भिखारी इस बात की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कटोरा खुले तो पता चले कि किसे कितनी भीख मिली है। इसी भीख पर तो सरकार का बनना बिगड़ना तय होना है। वैसे यह है तो विधानसभा के चुनाव लेकिन साजिश करने वाले बार बार यह कहकर मोदी जी को डरा रहे हैं कि यह दरअसल सेमीफाइनल मैच है और इसमें गड़बड़ी हुई तो फाइनल मैच भी गड़बड़ हो जाएगा।

दरअसल जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें  से तीन हिंदी पट्टी के राज्य हैं। दक्षिण भारत में वैसे भी भाजपा की मौजूदगी बहुत कम है। इसलिए हिंदी पट्टी में बेहतर परिणाम नहीं आने का दूसरा मतलब निकलेगा, यह सोच कुछ हद तक सही है। फिर भी इस बात को तो मानना होगा कि पिछले रिकार्ड बताते हैं कि ऐसे मौकों पर मोदी है तो मुमकिन है का नारा बार बार सार्थक साबित होता आया है। हां इस बार अडाणी जी की वजह से वह थोड़ी परेशानी में हैं। लेकिन फिर भी देश में उनके राजनीतिक कद का दूसरा नेता अब तक नहीं आया है।

इस रणक्षेत्र के दूसरे किनारे पर खड़े राहुल गांधी भी कमाल करते हैं। इस बात से इंकार नहीं कि उन्हें पप्पू बताने की पूरी चाल ही ध्वस्त हो चुकी है। अब तो जनता के सवालों की वजह से अंधभक्त भी सोशल मीडिया पर संभलकर बात कह रहे हैं।

दूसरी तरफ वैकल्पिक मीडिया के दबाव में मेनस्ट्रीम मीडिया को भी अपनी बात रखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है क्योंकि उनका टीआरपी तेजी से नीचे गिर रहा है। मैं यह सोचकर परेशान हूं कि अगर परिस्थितियां बदली तो इन चंद लोगों और चैनलों का क्या भविष्य होगा। कहीं ये लोग भी तो कटोरा लेकर भीख मांगने पर मजबूर नहीं हो जाएंगे। इनमें से कुछ के जेल जाने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

तीसरे कोने पर अडाणी जी भी है। रॉकेट से भी तेज गति से तरक्की के आसमान पर जाने वाले माहौल बदलने पर कहां होंगे और कैसे होंगे, यह बड़ा सवाल पूरे देश का है। ऊपर से अचानक से वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एजेंसी डीआरआई ने भी उनके खिलाफ कोयला आयात मामले की जांच की अनुमति मांग ली है।

इसलिए मौका और मकां देख इसी बात पर अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म बॉबी का यह गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने और संगीत में ढाला था आनंद बक्षी ने। इसे शैलेंद्र सिंह और मन्ना डे ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

ना चाहूं सोना चाँदी ना चाहूं हीरा मोती
यह मेरे किस काम के
ना मांगू बंगला बाड़ी ना मांगू घोड़ा गाड़ी
यह तो हैं बस नाम के
देती है दिल दे, बदले में दिल के
देती है दिल दे, बदले में दिल के
दे दे दे देदे देदे साहिबा प्यार में सौदा नही
दे दे दे देदे देदे साहिबा प्यार में सौदा नही

ना जानू मुल्ला काज़ी ना जानू काबा काशी
मैं तो हूँ प्रेम प्यासा रे
मेरे सपनों की रानी होगी तुमको हैरानी
मैं तो तेरा दीवाना रे
देती है दिल दे, बदले में दिल के
देती है दिल दे, बदले में दिल के
दे दे दे देदे देदे साहिबा प्यार में सौदा नही
दे दे दे देदे देदे साहिबा प्यार में सौदा नही
प्यार में सौदा नही

प्यार में वोट मिल जाए तो आगे क्या कहने। लेकिन जो गारंटियां जनता को दी गयी हैं, वे किसकी जेब से कटेगी, यह सवाल तब भी खड़ा रहेगा। इंडिया गठबंधन से भाजपा असहज है, यह स्पष्ट है और महाराष्ट्र में इसके साफ संकेत मिल रहे हैं क्योंकि अजीत पवार मंत्रालय नहीं जा रहे हैं। भाजपा की दूसरी बड़ी परेशानी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र के वीडियो हैं। जिनपर सफाई भी देने का मौका नहीं मिल रहा है।

वैसे इसके बीच अपने हेमंत भइया कमाल का खेल कर गये हैं। इंडिया गठबंधन के सहयोगी हैं और नरेंद्र मोदी के स्वागत से लेकर कार्यक्रम में मौजूद रहकर भाजपा को अकेले श्रेय लेने का मौका नहीं दिया। थोड़ी अजीब लगता है कि अचानक से ईडी ने उन्हें समन भेजना भी बंद कर दिया है। पर्दे के पीछे कोई और खेल चल तो नहीं रहा।

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