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अदालत ने कहा जनता के साथ अन्याय नहीं
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राज्य का नीतिगत निर्णय है यह सवेक्षण
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इससे निजता का कोई हनन भी नहीं
राष्ट्रीय खबर
पटना: बिहार सरकार को आज पटना उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिल गई और अब नीतीश सरकार जातीय गणना का काम पूरा करा सकेगी । पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की खण्डपीठ ने मंगलवार को जातीय गणना पर रोक लगाने के आग्रह से संबंधित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया ।
इस मामले पर 17 अप्रैल को पहली बार सुनवाई हुई थी। उच्च न्यायालय ने चार मई को जाति आधारित गणना पर रोक लगाते हुए उस समय तक हुए सर्वे में प्राप्त आंकड़ों को नष्ट नहीं करने का आदेश दिया था और सुनवाई की अगली तिथि तीन जुलाई तय की थी । इस मामले में लगातार दोनों पक्षों को सुनने के बाद 7 जुलाई को सुनवाई पूरी हो गई और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था ।
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दिया गया था कि राज्य सरकार सर्वेक्षण के नाम पर जनगणना करा रही है जो इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। सरकार ने इस गणना का उद्देश्य नहीं बताया है, जिससे इन संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग किया जा सकता है । यह जनता के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा ।
राज्य सरकार ने आकस्मिक निधि से 500 करोड़ इस सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किया है, जो जनता के धन का दुरुपयोग है। संविधान राज्य सरकार को इस तरह का सर्वेक्षण करने की अनुमति नहीं देता है। वहीं, राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय है और इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है।
ऐसी कोई जानकारी सरकार नहीं मांग रही है जिससे निजता के अधिकार का हनन होगा। राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर कल्याणकारी योजनाओं का लाभ विभिन्न वर्गों तक पहुंचा सके। सरकार ने यह भी कहा था कि जातीय गणना का पहला चरण समाप्त हो चुका है और दूसरे चरण का 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है, ऐसे में इसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है। इस बीच याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है । वह इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे ।
उच्च न्यायालय का इंकार स्वागत योग्य : माले
पटना: भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) के राज्य सचिव कुणाल ने पटना उच्च न्यायालय के जाति आधारित गणना को जारी रखने के फैसले का स्वागत किया और कहा कि इससे सामाजिक न्याय की घोर विरोधी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को झटका लगा है।
श्री कुणाल ने कहा की वह तो चाहते हैं कि बिहार सहित पूरे देश में ही जाति आधारित गणना हो। उन्होंने कहा कि हर कोई जानता है कि भाजपा शुरू से ही जाति आधारित गणना की विरोधी रही है। उसके लोग इसे रूकवाने के लिए उच्च न्यायालय गए थे, लेकिन आज उच्च न्यायालय ने जाति गणना पर रोक से साफ इंकार कर दिया।
भाकपा-माले के राज्य सचिव ने कहा कि यह और जरूरी इसलिए हो जाता है कि आज भी हमारे पास 1931 का ही डाटा है, जब देश में जाति गणना हुई थी। उसी आंकड़े के आधार पर सरकारी योजनाएं बनती हैं। दलित-पिछड़ी जातियों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं को अद्यतन करने, आरक्षण को तर्कसंगत बनाने तथा सामाजिक स्तर में सुधार के लिए जाति गणना बेहद जरूरी है ताकि हमारे पास सही-सही आंकड़े हो। उन्होंने कहा कि, हम यह भी उम्मीद करते हैं कि अब तक की हुई गणना में जो भी विसंगतियां उभरकर सामने आई हैं, उसे ठीक करने पर सरकार गंभीरता पूर्वक काम करेगी।