मणिपुर के जो हालात है, वे ठीक नहीं है। गंभीर स्थिति यह है कि शेष भारत को इस हालात के दूरगामी परिणामों की चिंता नहीं है। आग अगर वहां लगी है तो उसकी लपटें दूसरे इलाकों तक भी फैल सकती है, इस बात को समझना होगा। देश ने पूर्वोत्तर की आग का कुप्रभाव पहले भी देखा है। इसके अलावा पंजाब की हालत की अनदेखी करने का परिणाम भी हम झेल चुके हैं।
इसलिए पूरे देश को इस बात के लिए चिंतित होना चाहिए कि मणिपुर के हालात गंभीर है। इतने गंभीर हालात को बेहतर बनाने की दिशा में संवाद का महत्वपूर्ण रास्ता आवश्यक है। पहले अलग-अलग विरोधी पक्षों के बीच संवाद को स्थापित किया जाना चाहिए और प्राथमिकता में शांति को बनाए रखना चाहिए।
इसके बाद ही इसकी महत्त्व स्थापित होगी और दीर्घकालिक या स्थायी समाधान का निर्धारण हो सकेगा। इसके लिए अमित शाह का एक दौरा पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि यह स्पष्ट हो चुका है कि वहां की जनता साफ साफ दो धड़ों में बंटी हुई है। केंद्रीय गृह मंत्री की पहल और हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करके राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के साथ बातचीत करने के बाद राज्यपाल की अध्यक्षता में एक शांति समिति की गठन करने के साथ-साथ हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों के लिए मुआवजे के अलावा राहत और पुनर्वास पैकेज की घोषणा की हैं।
इसके साथ ही, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स्तर के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन भी किया गया है। जो जातीय हिंसा की जांच करेगा। इतना कुछ होने के बाद भी भारतीय सेना को हथियारों की तलाशी के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है। यह चिंता का विषय है।
मणिपुर में वर्तमान में गंभीर हालात हैं और उन्हें सुधारने के लिए संवाद की आवश्यकता है। इस परिस्थिति में, विभिन्न विरोधी पक्षों के बीच संवाद स्थापित किया जाना चाहिए और प्राथमिकता को शांति बनाए रखना चाहिए। इसके अलावा, सभी पक्षों को शांति की राह पर बढ़ने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि गृह मंत्री एक ऐसा बयान दें जो उग्र पक्षों को शांत होने और समस्या के समाधान के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करे।
उच्च न्यायालय के द्वारा जल्दबाजी में लिए गए फैसले के बजाय, शांति के लिए सरकारी प्रयासों का मजबूत समर्थन करना चाहिए और अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वर्तमान में हिंसा में शामिल समूहों की गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि छोटी घटनाओं से भी विरोधी पक्षों को भटका दिया जा सकता है। इसलिए, सभी पक्षों को सहजता से संवाद करना चाहिए और एक संविधानिक और कानूनी समाधान के लिए सहमति बनानी चाहिए।
इसके अलावा, केंद्र सरकार को मणिपुर में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए संघर्षरत मैतेई और कुकी समुदायों के बीच न्यूनतम सहमति की जमीन तैयार करने के लिए काम करना चाहिए। मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जे से जुड़ा विवाद का समाधान नहीं हिंसा और अराजकता से हो सकता है, बल्कि इससे नए कानूनी मुद्दों की उत्पत्ति हो सकती है। इसलिए, हमें संवाद का माध्यम चुनना चाहिए और विभिन्न स्थानीय जनजातीय समुदायों के बीच सहमति को प्राथमिकता देनी चाहिए।
संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए। इस प्रकार की स्थिति में, सभी पक्षों को शांति और हल द्वारा आगे बढ़ने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। अन्यथा, हिंसा और उत्पीड़न की वृद्धि होगी, जो सभी को नुकसान पहुंचाएगी। हमें सभी पक्षों के बीच शांति की राह पर आगे बढ़ना चाहिए और उत्पीड़न और हिंसा को नियंत्रित करना चाहिए। वोट या समर्थन के लिए कई बार ऐसे कदम उठाए जाते हैं, जिनके परिणामों का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता।
दुखद यह है कि मैतेई समुदाय के मुद्दे पर हुई हड़बड़ी के बाद मणिपुर में अब तक कई लोगों की जानें चली गई हैं। इस मुद्दे को केंद्रीय गृह मंत्री ने भी बयान करके साधा है। अगर ऐसी ही स्थिति जारी रही तो स्थिति और जटिल हो सकती है। इसलिए सभी पक्षों को आवश्यकता है कि वे संवाद के माध्यम से संतुलित समाधान तक पहुंचें। हालांकि, चुनाव और समर्थन के लिए कदमों को बहुत बार उठाया जाता है, जिसके परिणामों का पहले से पता नहीं चलता।
खेद की बात है कि मणिपुर में मैतेई समुदाय के मुद्दे पर हुई हंगामे के बाद से कई लोगों की जानें चली गई हैं। इसे केंद्रीय गृह मंत्री ने भी मान्यता दी है। यदि ऐसी ही स्थिति जारी रहती है, तो हालात और जटिल हो सकते हैं। इसलिए, सभी पक्षों को आवश्यकता है कि वे संवाद के माध्यम से संतुलित समाधान तक पहुंचें। वरना घटनाक्रम तो यही बताते हैं कि बहुसंख्यत मैतेई समुदाय को भी आदिवासी का दर्जा देने का प्रभाव पूरे इलाके के आदिवासी संतुलन को ही बिगाड़ देने वाला साबित हुआ है। देश के हित में हर बार सिर्फ वोट की राजनीति खतरनाक होती है।