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कभी लोग इसका पानी पी भी लेते थे
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पानी में तीखा गंध और रंग काला
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अवैज्ञानिक प्रयास से परिणाम नहीं
राष्ट्रीय खबर
रांचीः जमशेदपुर के विधायक और पूर्व भाजपा नेता सरयू राय के प्रयासों से हरमू नदी को मरने से बचाया तो गया पर अब भी इसके आस पास रहने वालों को इस नदी की चिंता नहीं है। दूसरी तरफ पहाड़ी से लेकर हरमू और हिंदपीढ़ी के इलाके में भीषण जलसंकट के बीच जो थोड़ी बहुत राहत है, वह इसी नदी की वजह से है।
कई स्थानों पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगने और उनसे लगातार जल प्रवाह की वजह से इस नदी में अब भी पानी का प्रवाह है। फिर भी प्रदूषण की रोकथाम नहीं हो पायी है। इसका नतीजा है कि कभी इस नदी में छठ पर्व करने वाले चुटिया निवासी अब इस पानी से परहेज करते हैं। लोगों के मुताबिक केतारीबगान में बसे लोगों का कहना है कि नदी का पानी काला हो गया है और तीखी गंध आने लगी है।
आज भी लोग मानसून के महीनों में हरमू के पानी को बढ़ते देखा था। यह नदी वर्ष के अन्य समय में 20 मीटर से अधिक चौड़ी थी। पानी साफ था और स्थानीय लोग घरेलू कामों और पीने के लिए भी इसका इस्तेमाल करते थे। नदी के बेसिन से रेत का खनन किया जाता था और रांची के निवासियों द्वारा घरों और अन्य भवनों के निर्माण के लिए बैलगाड़ियों में ले जाया जाता था। आज, नदी एक नाले में बदल गई है और गंदे जल की निकासी एवं प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से यह हालत है।
नगरी ब्लॉक में उत्पन्न होने वाली, यह 40 किमी वर्षा-सिंचित नदी स्वर्णरेखा में गिरने से पहले शहर और इसके बाहरी इलाकों से होकर गुजरती है। पर्यावरणविदों ने नदी के क्षरण के लिए निवासियों द्वारा प्लास्टिक और घरेलू सीवर के बेरोकटोक डंपिंग के अलावा इसके जलग्रहण क्षेत्र और डाउनस्ट्रीम के बड़े पैमाने पर अतिक्रमण और कंक्रीटकरण को जिम्मेदार ठहराया है।
2015 में तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने नदी के पुनरुद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए 85 करोड़ रुपये दिए थे। झारखंड अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा की गई परियोजना, निवासियों के लिए गेबियन, तूफानी जल नालियों और सीवर नेटवर्क, आठ सीवर उपचार संयंत्रों और इसके किनारों के साथ ऊंचे रास्तों के निर्माण की योजना है। हालांकि, हालांकि परियोजना दो साल के भीतर पूरी हो गई थी, नदी वापस जीवन में नहीं आई।
इस नदी को जिंदा रखने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जमशेदपुर के विधायक सरयू राय का कहना है कि परियोजना को अवैज्ञानिक तरीके से अंजाम दिया गया था और इसमें दीर्घकालिक दृष्टि का अभाव था। इसने नदी के किनारों को मजबूत करने के नाम पर पक्का कर दिया। इसने नदी के पानी को शुद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जलीय पौधों, पेड़ों, झाड़ियों, कीड़ों और जानवरों को मिटाकर नदी की पारिस्थितिकी को नष्ट कर दिया।
इसके अलावा, निवासी अपने कचरे को नदी में फेंक देते हैं और कोई भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहा है। अगर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन इच्छा शक्ति का प्रदर्शन करे तो हरमू को फिर से जीवित किया जा सकता है। प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी कीमत पर अनुपचारित पानी नदी में नहीं डाला जाए।
जानकार कहते हैं कि रघुवर सरकार की कायाकल्प योजना अवैज्ञानिक थी और इसने नदी को नाले में बदल दिया। वर्तमान सरकार ने भी विशेषज्ञों से सलाह नहीं ली है। हरमू के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त किया जाना चाहिए और नदी की सहायक नदियों का कायाकल्प किया जाना चाहिए।
कंक्रीट के ढांचों को हटाया नहीं जा सकता है लेकिन नदी के किनारे, जिन पर अभी तक अतिक्रमण नहीं हुआ है, उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। अपशिष्ट और अनुपचारित सीवर के पानी की डंपिंग को रोका जाना चाहिए। हरमू स्वर्णरेखा नदी की एक सहायक नदी है। हरमू के सूखने से स्वर्णरेखा पर भी संकट मंडरा रहा है। इसके अलावा, हरमू का प्रदूषित पानी स्वर्णरेखा में बह रहा है, जिससे स्थिति गंभीर हो रही है।