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धरती के गर्भ में हीरा आखिर बनता कैसे है

खदान के नमूनों के कंप्यूटर विश्लेषण से पहली बार पता लगाया

  • काफी गहराई से निकले नमूनों पर अध्ययन

  • पृथ्वी की प्रारंभिक संरचना काफी गर्म रही होगी

  • अत्यधिक तापमान के इलाकों तक जाना संभव नहीं

राष्ट्रीय खबर

रांचीः हीरा इस दुनिया के बेशकीमती पत्थर है। यह बेशकीमती होने के साथ साथ सबसे कठोर भी है। इसी वजह से वैज्ञानिक विश्लेषण में इसे प्राकृतिक तौर पर पाया जाने वाला सबसे कठोर पदार्थ माना गया है। आम इंसान के लिए हीरा एक आभूषण है और इसी वजह से उसकी कीमत बहुत अधिक होती है।

दूसरी तरफ हीरा की संरचना वैज्ञानिकों को धरती के गर्म में होने वाली गतिविधियों को समझने में मदद करते हैं। ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि हमारा विज्ञान अब तक उतना उन्नत नहीं हुआ है कि धरती की उस गहराई तक पहुंचकर व्यवहारिक परीक्षण कर सकें।

इस बार क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ताओं ने एक मानक लैपटॉप कंप्यूटर और एक हीरे की खदान के कचरे के ढेर से लिये गये चट्टान के एक टुकड़े का उपयोग किया है। इस बारे में एक शोध प्रबंध डीप, अल्ट्रा-हॉट-मेल्टिंग रेसिड्यूज ऐज क्रैडल्स ऑफ मेंटल डायमंड प्रकाशित किया गया है।

इसके प्रमुख लेखक क्यूयूटी पीएचडी के छात्र कार्ल वॉल्श द्वारा इसे शैक्षणिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित किया गया है। इस दल में ट्रिनिटी कॉलेज, आयरलैंड के क्यूयूटी प्रोफेसर बाल्ज़ काम्बर और एम्मा टॉमलिंसन भी हैं। श्री वॉल्श ने कहा कि अफ्रीकी महाद्वीप से एक चट्टान पर कंप्यूटर मॉडलिंग शामिल है और सतह के नीचे लगभग तीस से ढाई सौ किलोमीटर की गहराई के बीच पृथ्वी के बाहरी हिस्से, लिथोस्फीयर के नमूना प्राप्त किया गया है।

यह वह इलाका है, जिसे हम कभी नहीं देख पाते हैं। प्रोफेसर काम्बर ने कहा कि इस शोध का उद्देश्य कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके यह देखना था कि ये गहरी जड़ें कैसे बनी होंगी। मॉडल यह बताता है कि जब आप मेंटल के तापमान को बदलते हैं तो कौन से खनिज और पिघल मौजूद होंगे। इसलिए, यह एक भविष्यवाणी उपकरण है जिसकी तुलना आप वास्तविक खनिजों और चट्टानों की संरचना से कर सकते हैं।

जिन नमूनों से यह काम किया गया है, उन्हें प्राचीन किंबरली हीरे की खदान के कचड़े के ढेर से प्राप्त किया गया था। यह इलाका दक्षिण अफ्रीका में उत्तरी केप के किम्बरली में। प्रोफेसर काम्बर ने कहा, यह बेहद पुराना है करीब 3.3 अरब साल पुराना। श्री वॉल्श ने कहा कि अध्ययन ने हीरे की गुत्थी को सुलझा दिया है और जिस तापमान में वे बनते हैं, अगर हीरे को बहुत अधिक गर्म किया जाए तो वह ग्रेफाइट में बदल जाएगा।

लेकिन फिर भी, जब हम उन चट्टानों को देखते हैं जिनमें हीरे होते हैं, तो उन्हें भारी तापमान का प्रभाव झेलना पड़ा होगा। इसी उच्च तापमान की वजह से वहां मौजूद कॉर्बन के स्वरुप अंततः हीरा में तब्दील हो गये। उनका शोध मौजूदा दो-चरण के उथल पुथल और पिघलने को चुनौती देता है।

पहले, यह माना जाता था कि महाद्वीपों की अधिकांश प्राचीन गहरी जड़ें हीरों की मेज़बानी रही होंगी। ये हीरे समय के साथ नष्ट हो गए, क्योंकि महाद्वीप के आधार पर अस्थिर समृद्ध पिघलने और तरल पदार्थों द्वारा लगातार आक्रमण और क्षरण होता है। हमारे काम से पता चलता है कि वास्तव में यह मामला नहीं हो सकता है, कि हीरे आज दुर्लभ हैं, सच तो यह है कि हीरा हमेशा से ही दुर्लभ थे।

प्रोफेसर काम्बर ने कहा कि वर्तमान पृथ्वी पर मेंटल में गर्मी और तापमान का वितरण एक समान नहीं है। हमारे पास अपेक्षाकृत समान मेंटल तापमान के क्षेत्र हैं, और ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ मेंटल बहुत गर्म है। इन्हें मेंटल प्लम्स के रूप में जाना जाता है। जो अध्ययन किया गया है वह प्राचीन प्लमों का प्रभाव है। ऐसा तब हुआ होगा जब अभी की तुलना में बहुत अधिक गर्म प्लम एक बढ़ते महाद्वीप के आधार से टकराए होंगे। इससे दरअसल प्राकृतिक तौर पर बनने वाले हीरों की संरचना के बारे में नई जानकारी मिली है।

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