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पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जंगली हाथी

  • अधिक कार्बन सोखने वाले पेड़ों को फायदा

  • शिकार और शहरीकरण ने आबादी कम की

  • जैव विविधता का प्राकृतिक माली है हाथी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः दुनिया में पर्यावरण संकट एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। दरअसल यह एक ऐसा खतरा है जो मानव जाति के साथ साथ दुनिया के अन्य प्राणियों के जीवन पर भी संकट बन गया है।

पहली बार यह पता चला है कि दुनिया में वनों के विकास और विस्तार में जंगली हाथियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सेंट लुइस विश्वविद्यालय के शोध दल ने इस पर काम किया है और अपनी शोध रिपोर्ट से दुनिया को अवगत कराया है।

दरअसल यह पाया गया है कि हाथियों का झूंड लगातार इधर उधर मंडराते हुए नये इलाकों में जंगल पैदा करने में सबसे प्रमुख भूमिका निभाता है। इसकी वजह से जैव विविधता का भी प्रसार होता है।

नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंस की पत्रिका में इस शोध के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि हाथियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है और इस वजह से जंगल भी कम हो रहे हैं। यह स्थिति पूरी दुनिया को खतरे की तरफ धकेल रही है।

शोध में खास तौर पर अफ्रीका के जंगल और वहां की जैव विविधता के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इसमें बताया गया है कि जंगलों का भौगोलिक क्षेत्र बढ़ने से ही हवा में मौजूद कार्बन को सोखने की गति बनी रहती है। अगर अफ्रीका के मध्य और पश्चिमी इलाकों के घने जंगल समाप्त हो गये तो पूरी दुनिया का परिस्थितितंत्र ही बिगड़ जाएगा।

वर्तमान में यहां के जंगल पूरी दुनिया के छह से नौ प्रतिशत तक कार्बन सोखते हैं। अभी वहां इन जंगलों को विस्तार देने वाले हाथियों का जीवन ही संकट में पड़ा हुआ है। जंगल कम होने की वजह से दुनिया में गर्मी बढ़ी है, इस पर बहुत शोध पहले ही हो चुके हैं। उसके खतरा दुनिया देख रही है क्योंकि एक के बाद एक ग्लेशियर भी इसी गर्मी की वजह से पिघलते जा रहे हैं। इस शोध दल का नेतृत्व वहां के असिस्टेंट प्रोफसर स्टीफन ब्लैक ने किया है।

जिसमें कहा गया है कि हाथियों और हाथियों की संख्या कम होने की वजह से जंगलों पर जो खतरा बढ़ गया है, उसके मूल में इंसान ही है। हाथियों के शिकार और शहरीकरण के अलावा औद्योगिक गतिविधियों ने जंगल के इस सबसे विशाल प्राणी का जीवन खतरे में डाल दिया है।

यह बताया गया है कि जंगल में कार्बन सोखने वाले दो किस्म के पेड़ होते हैं। कुछ पेड़ ऐसे होते हैं जो जल्दी बढ़ते हैं और कम कार्बन सोखते हैं। दूसरी तरफ वैसे बड़े पेड़ भी होते हैं जो धीरे बढ़ते हैं और अधिक कार्बन सोखते हैं। हाथियों का जीवन चक्र इसी को व्यवस्थित करता है।

हाथियों का झूंड कम कार्बन सोखने वाले पेड़ों को अपना भोजन बनाते हैं और उनमें मौजूद पौष्टिकता से वह अधिक कार्बन सोखने वाले पेड़ों को फायदा पहुंचाते हैं। इसके जंगल में एक संतुलन बना रहता है और जंगल के बढ़ने से कार्बन सोखने की गति भी बढ़ती जाती है।

हाथियों के मल से भी अधिक कार्बन सोखने वाले पेड़ों को पौष्टिकता मिलती है। वहां की जमीन इस कारण और उपजाऊ होकर जंगलों का विस्तार करती जाती है। भोजन करने के क्रम में हाथियों का दल कम कार्बन सोखने तथा अधिक पौष्टिकता वाले पेड़ों के पत्ते खाते हैं अथवा फल चबाते हैं।

इसी क्रम में वे ऐसे पेड़ों की छालों, डालों और कई बार पूरे पेड़ को ही उखाड़ देते हैं। इससे धीरे धीरे बढ़ने वाले पेड़ों को कम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और जंगल का विस्तार होता चला जाता है। बड़े पेड़ों पर लगने वाले फलों को खाने वाले हाथी उनके बीज दूर तक पहुंचाने का काम भी करते हैं।

इससे जमीन पर मौजूद ऐसे बीज अनुकूल माहौल पाकर पनपते लगते हैं। प्रोफसर ब्लैक के मुताबिक इस आचरण की वजह से हाथियों को जंगल का प्राकृतिक माली कहा जा सकता है जो अधिक कार्बन सोखने वाले पेड़ों को रोपता है और वहां से खर पतवार की सफाई करता चला जाता है।

कभी अफ्रीका में एक करोड़ से अधिक हाथी रहा करते थे। अब उनकी संख्या पांच लाख से भी कम हो गयी है। जंगल नष्ट होने की वजह से उनके निवास भी सीमित हो चुके हैं और वहां भी इंसान हमला कर रहा है। पिछले तीस वर्षों में हाथियों की आबादी 80 प्रतिशत कम हुई है।

इनमें शिकार की प्रमुख भूमिका है। दूसरी तरफ औद्योगिक और आबादी के बसने की वजह से भी हाथियों के चलने फिरने के इलाका कम होता चला जाता है। इंसानों के साथ हाथियों के संघर्ष की मूल वजह भी यही है। इंसान ही दरअसल हाथियों के इलाके में जबरन घुसपैठ कर चुके हैं।

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