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पेट्रोल की कीमतों में कमी का संकेत

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री को अचानक देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों की याद आ गयी है। इससे पहले भी जब कई राज्यो में विधानसभा के चुनाव थे तो हर दिन बढ़ने वाले पेट्रोल के दाम जहां के तहां ठहर गये थे। चुनाव खत्म होते ही फिर से वह एक सौ के पार चला गया था।

अब समझा जा सकता है कि देश के मिजाज के पूरी तरह बदलने का अंदाजा केंद्र सरकार को भी हो चुका है। इसलिए शायद जनता के जख्मों पर फिर से मरहम लगाने की कोशिश हो सकती है। यानी खुल कर कहें तो विधान सभा चुनावों से पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आ सकती है।

पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने तेल कंपनियों से पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की अपील की है। विधानसभा चुनाव के पहले ही केंद्रीय मंत्री का ऐसा बयान सिर्फ इसी बात की तरफ इशारा करता है कि मोदी सरकार को जनता के बिगड़े मिजाज को ठीक करने की चिंता सता रही है।

दरअसल केंद्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि अभी इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमतें कंट्रोल में हैं। तेल कंपनियां भी अब घाटे से उबर चुकी हैं, ऐसे में मेरी अपील है कि कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम कम करें। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी तेल कंपनियों से पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की अपील की है।

वरना इसके पहले भाजपा का हर मंत्री और नेता वही रटा रटाया उत्तर देता था कि इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार की वजह से देश में ईंधन की कीमतों में इतनी बढ़ोत्तरी हो रही है। इस बीच रूस से काफी सस्ता तेल खरीदने तथा डॉलर खर्च किये बिना ही यह कारोबार करने की वजह से भारत को जो मुनाफा हुआ है अथवा हो रहा है, उस बारे में कोई संतोषजनक उत्तर देने तक के लिए तैयार नहीं है।

यह भी नहीं बताया जाता कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत कम होते ही भारत में दाम क्यों नहीं घटते हैं। अब श्री पुरी ने कुछ राज्यों के वैट नहीं घटाने पर भी निशाना साधा। पुरी ने कहा- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार ने नवंबर 2021 और मई 2022 में एक्साइज ड्यूटी कम की थी, लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने वैट नहीं घटाया।

इस वजह से उन राज्यों में अब भी तेल की कीमतें ज्यादा हैं। लेकिन केंद्रीय मंत्री की इस दलील का कोई व्यापक असर इसलिए नहीं होना है क्योंकि ईंधन की कीमतों में किस तरीके से किस सरकार को कितना पैसा मिलता है, यह अब जगजाहिर तथ्य है।

केंद्र सरकार अपने खाते में घाटा नहीं उठाना चाहती है। उसके लिए विकास कार्यक्रमों की दुहाई भी दी जाती है। वैसे बता दें कि जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया।

इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी, लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया। अब जब फिर से विधानसभा के चुनाव करीब आने लगे हैं तो केंद्र सरकार की जनता की याद आने लगी है। वैसे भी पिछले कुछ अरसे से लगातार एक के बार एक विवादों और अनर्गल बयानों की बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का जो असर देश में दिख रहा है,

उससे भाजपा का भयभीत होना स्वाभाविक है। यह अलग बात है कि राहुल की इस यात्रा के बाद भी विरोधी दल शायद अब भी एकजुट नहीं हो पायेंगे क्योंकि हरेक का अपना अपना राजनीतिक एजेंडा है।

फिर भी भाजपा की चिंता इस बात को लेकर है कि भाजपा के फैसलों से जनता का जो नुकसान हुआ है, उसका खामियजा चुनाव परिणामों पर दिख सकता है। हिमाचल प्रदेश का चुनाव परिणाम इसका एक नमूना भर है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया है कि गुजरात चुनाव को भी भाजपा ने जबर्दस्ती जीता है जबकि असली जनादेश भाजपा के खिलाफ ही था।

अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी जिन मुद्दों का बार बार उल्लेख करते हैं, उनमें चंद पूंजीपतियों को और अमीर बनाने के तमाम सरकारी फैसले भी हैं। पेंट्रोलियम पदार्थों की इतनी अधिक कीमतों के बारे में उनका यह इशारा भी उन घरानों की तरफ जाता है, जो नरेंद्र मोदी के करीबी होने के तौर पर पहचाने गये हैं।

ऐसे में जनता को अपने पाले में किये बिना चुनाव जीतना कठिन है, यह बात भाजपा की समझ में आ चुकी है। एकजुट विपक्ष के नहीं होने के बाद भी सरकार का भय स्वाभाविक है क्योंकि दिल्ली नगर निगम में भाजपा ने क्या कुछ खेल किया है, यह तो सत्ता परिवर्तन से ही दिखने लगा है। ऐसे में जनता को फिर से अपने पक्ष में करना भाजपा की सोच नहीं राजनीतिक मजबूरी है।

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