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नये रॉकेट से मंगल तक का सफर मात्र 45 दिनों में

  • रॉकेट की डिजाइन में कई बदलाव होंगे

  • अंदर के यंत्रों को बचाना भी बड़ी बात होगी

  • सफल हुआ तो और दूर तक की यात्रा संभव होगी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः अब अंतरिक्ष अभियानों को और अधिक गति देने की दिशा में दुनिया के कई विकसित देश काम कर रहे हैं। इसका असली मकसद अंतरिक्ष के किसी भी लक्ष्य तक जल्द से जल्द पहुंचना है। दरअसल इसके पीछे की असली मंशा विज्ञान नहीं व्यापारिक है। पृथ्वी से बाहर मंडराते ग्रहों और उपग्रहों के अलावा उल्कापिंडों पर मौजूद खनिज पर इन तमाम विकसित देशों की नजर है।

इसके अलावा वहां अपने अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित कर पृथ्वी पर अपना वर्चस्व बढ़ाने का खेल भी इसमें शामिल है। इसलिए अब तेज गति के वैसे रॉकेटों की जरूरत महसूस की जा रही है जो इस अंतरिक्ष अभियान के समय को और कम कर सके। इस दिशा में नासा ने अपनी नई डिजाइन पर काम करन प्रारंभ किया है।

बाहर आयी जानकारी के मुताबिक अब वह एक परमाणु ऊर्जा से संचालित होने वाले रॉकेट को तैयार करने में जुटा है। वैसे इस दिशा में चीन की तरफ से भी तैयारी चल रही है लेकिन चीन ने औपचारिक तौर पर ऐसे किसी अभियान के डिजाइन पर कोई चर्चा नहीं की है।

नासा जिस नये रॉकेट को तैयार करना चाहता है उसकी गति के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि यह रॉकेट अपनी अत्यंत तेज गति की वजह से मात्र 45 दिनों में मंगल ग्रह तक का सफर तय कर लेगा। ऐसा तब हो रहा है जब कई अन्य देश अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने की तैयारियों में भी जुटे हैं।

नासा ने जिस रॉकेट को तैयार करने की परिकल्पना की है, उसमें इस तेज गति से अंदर के अत्याधुनिक यंत्रों को सकुशल रखने का प्रबंध भी किया जाएगा। बताया गया है कि यह दरअसल न्यूक्लियर थर्मल और न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रॉपल्सन पर आधारित होगा।

इस दिशा में सोवियत संघ के युग में ही काम प्रारंभ हो गया था। सोवियत संघ के विखंडन के बाद अब रूस के खगोल वैज्ञानिक भी चुपचाप इस दिशा में काम कर रहे हैं। अभी नासा ने जिस डिजाइन पर काम करना फिर से प्रारंभ किया है, उसमें मुख्य तौर पर दो हिस्से हैं। खबर है कि इसके मॉडल को विकसित भी किया जा रहा है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के प्रोफसर रियान गोसे ने कहा कि यह वैज्ञानिक परिभाषा में हाईपरसोनिक प्रोग्राम है। यानी यह शब्द से बहुत अधिक गति से चलने की बात है। उन्होंने अपने विश्वविद्यालय के फ्लोरिडा एप्लाइड रिसर्च में इस पर काम किया है।

परमाणु ऊर्जा का प्रयोग होने की वजह से ऐसे अभियानों में इस्तेमाल होने वाले रॉकेटों की संरचना के अलावा उसमें लगने वाले कई अन्य उपकरणों की डिजाइन में भी बदलाव करना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो अंदर के यह सारे संयंत्र परमाणु विकिरण और अत्यंत तेज गति का दबाव नहीं झेल पायेंगे।

इसकी डिजाइन के बारे में बताया गया है कि परमाणु ऊर्जा से खास रियेक्टर के जरिए तरल हाईड्रोजन हासिल किया जाएगा। उसके बाद इस हाईड्रोजन को खास किस्म के गैस में कुछ ऐसे बदला जाएगा कि वह प्लाज्मा की तरह उस हिस्से तक पहुंचे, जहां से वह रॉकेट को तेज गति से आगे बढ़ायेगा। परमाणु ऊर्जा से संचालित होने की वजह से उसकी गति का वेग एक बार तैयार होने के बाद काफी देर तक कायम भी रहेगा।

इसी वजह से यह उम्मीद की जा रही है कि नई तकनीक का यह रॉकेट 45 दिनों में मंगल ग्रह तक का सफर पूरा कर लेगा। पहले ऐसे अभियान को पूरा करने  में वर्षों लग जाते थे। इस समय की बचत की वजह से भविष्य में अंतरिक्ष में और दूर तक का सफर शायद संभव हो पायेगा।

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