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प्लास्टिक और ग्रीन हाउस गैसों से ईंधन बनाने की तकनीक विकसित की गयी

  • दो अलग अलग खंडों में होता है काम

  • दूसरे बाई प्रोडक्ट भी बनाये जा सकते हैं

  • प्रदूषण कम करने में काफी मददगार सिद्ध होगा

राष्ट्रीय खबर

रांचीः दुनिया में हर तरफ बढ़ते प्रदूषण का एक प्रमुख कारण प्लास्टिक है। जब इसका आविष्कार हुआ था तो लोगों ने इसकी खोज पर प्रसन्नता जाहिर की थी। बाद में यह पता चला कि अपने खास रासायनिक गुणों की वजह से यही प्लास्टिक दुनिया के लिए कई प्रकार की परेशानियां ले आया है। इसका बहुत लंबे समय तक नष्ट नहीं होना ही जमीन और पानी के प्रदूषण की अभी सबसे बड़ी परेशानी है।

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब समुद्री जीव भी इसी प्लास्टिक की वजह से अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। गाय जैसी मवेशियों ने भी प्लास्टिक निगलकर अपने आप को खतरे में डाल लिया है। अब इस प्लास्टिक के निष्पादन के साथ साथ ईंधन पैदा करने की एक विधि विकसित होने की जानकारी दी गयी है। इस विधि से प्लास्टिक के कचड़े के साथ साथ ग्रीन हाउस गैसों से भी काम आने वाला ईंधन बनाया जा सकेगा।

अच्छी बात यह है कि इसके लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग होगा, जो धरती पर मुफ्त में और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के शोध दल ने इसकी विधि विकसित की है।

इसके जरिए दो रासायनिक पदार्थों को एक साथ जोड़कर ईंधन हासिल किया जा सकता है और यह काम भी सौर ऊर्जा रियेक्टर के माध्यम से होगा। इस विधि में कॉर्बन डॉईऑक्साइज और प्लास्टिक को कई अन्य पदार्थों में तब्दील किया जाता है।

इन परिवर्तित उत्पादनों का कई उद्योगों में सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। परीक्षण के दौरान कॉर्बन डॉईऑक्साइड से साइनगैस बनाया गया जो तरल ईंधन तैयार करने का एक प्रमुख यौगिक है। दूसरी तरफ प्लास्टिक के बोतलों से गाइकोलिक एसडि तैयार हुआ, जिसका कॉस्टेमिक उद्योग में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है।

बताया गया है कि इस खास रियेक्टर में इस्तेमाल होने वाले उत्प्रेरकों की मदद से और अन्य यौगिक भी तैयार किये जा सकते हैं। इस शोध के बारे में जर्नल नेचर सिंथेसिस में एक शोध प्रबंध प्रकाशित किया गया है।

शोध से जुड़े प्रोफसर इरविन रेइसनर और युसूफ हामिद ने कहा कि किसी खतरनाक किस्म के अवशेष से कोई सकारात्मक उत्पाद हासिल करना बड़ी बात है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरी प्रक्रिया में सिर्फ सौर ऊर्जा का ही प्रयोग हो रहा है।

दुनिया में प्रदूषण को लेकर जारी बहस के बीच यह निर्विवाद है कि प्लास्टिक और ग्रीन हाउस गैस ही सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं। इस शोध से जुड़े भारतवंशी वैज्ञानिक शुभजीत भट्टाचार्य ने कहा कि इसके जरिए दुनिया की इन दोनों सबसे बड़ी परेशानियों का बेहतर समाधान अब संभव है।

इस विधि में दो अलग अलग हिस्सों वाले रियेक्टर में एक प्लास्टिक के लिए हैं तो दूसरा ग्रीन हाउस गैसों के लिए हैं। इस रियेक्टर में रोशनी सोखने के लिए  पेरोवस्काइट का प्रयोग किया गया है, जो सिलिकन आधारित सौर ऊर्जा सेलों का एक नया विकल्प बन सकता है।

रोशनी को सोखने के लिए शोध दल ने अलग अलग उत्प्रेरकों का प्रयोग कर उनका परिणाम जांचा है। जिसके आधार पर कहा गया है कि इस कैटेलिस्ट को बदलने से उत्पाद भी बदले जा सकते हैं। फिलहाल परीक्षण में प्लास्टिक के बोतल और कॉर्बन डॉईऑक्साइड का ही प्रयोग कर ईंधन हासिल किया गया है।

इसमें खास बात यह भी है कि आम तौर पर कॉर्बन डॉईऑक्साइड को किसी दूसरे स्वरुप में बदलने के लिए बहुत ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। यह तकनीक सामान्य तापमान पर सौर ऊर्जा के जरिए वही काम कर सकती है। शोध दल को उम्मीद है कि इसी तकनीक के आधार पर सौर ऊर्जा संचालित प्लांट के जरिए वह और बड़े पैमाने पर यह काम कर सकेंगे। इससे धरती का प्रदूषण दूर होगा और पर्यावरण में सुधार भी होगा।

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