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कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

आज कल पॉलिटिकल अखाड़े में यह प्रचलन बढ़ गया है। निशाने पर दरअसल कोई और होता है लेकिन नजर किसी और पर लगी होती है। अब दिल्ली में मेयर चुनाव को ही ले लीजिए। नगर निगम चुनाव में जनता ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया और नतीजे भी आ गये। अब भाजपा चाहती है कि इसके बाद भी मेयर उसका रहे।

दरअसल अनेक लोगों को इस बात का भय सता रहा है कि पुराने मामलों की फाइल खुल गयी तो जेल जाना पड़ सकता है। मेयर अपना रहेगा तो अधिकारी भी दिल्ली नहीं केंद्र सरकार के कब्जे में रहेंगे और फाइलें दबी रहेंगी। गजब की परेशानी है। पंद्रह साल तक राज करने के बाद अब अपनी गरदन बचाने की परेशानी है।

दूसरी तरफ अब राष्ट्रीय पार्टी बनने की वजह से आम आदमी पार्टी का हौसला भी बढ़ गया है। वे मेयर चुनाव की हाथापायी के जरिए सीधे उप राज्यपाल के माध्यम से अमित शाह को संकेत दे रहे हैं। पंजाब पूर्ण राज्य होने की वजह से  वहां से जो फैसले लिये जा रहे हैं, वे भी भाजपा को नागवार गुजर रहे हैं।

कभी भी पंजाब की पुलिस दिल्ली भाजपा के किसी नेता को गिरफ्तार करने पहुंच जाती है। बहुत परेशानी है। वइसे यह रास्ता भी दूसरों को भाजपा ने ही दिखाया है। गुजरात के जिग्नेश मेवाणी को असम की पुलिस गिरफ्तार कर अपने साथ ले गयी थी। जाहिर है कि अब दूसरे दलों को भी यह रास्ता समझ में आ गया है।

लेकिन असली डिफिकल्टी यह है कि सारे दल मैंगो मैन यानी आम आदमी की सोच को पहले जैसा मानकर चल रहे हैं। अइसा अब नहीं है भाई पब्लिक बहुत चालाक हो चुकी है। वह अपने फायदे के हिसाब से वोट देती है। इसलिए जब जैसा होगा, वह पलटी मार देगी।

अब देखिये बड़े चैनलों ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को दिखाने से परहेज की है। इसके बाद भी इस यात्रा में भीड आ रही है। उत्तरप्रदेश में विरोधी खेमा के बड़े नेताओं को नहीं आने के बाद भी सोशल मीडिया के जरिए यह स्पष्ट हो गया कि दूसरे माध्यमों पर जनता का भरोसा बढ़ा है।

इसी वजह से राहुल की यात्रा में भारी भीड़ उमड़ी। अब इसका क्या करें कि बार बार राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में बड़े मीडिया घरानों को निशाना बना रहे हैं। मुझे तो इस बात का भय हो रहा है कि जिस दिन देश का निजाम बदला उस दिन कई मीडिया घरानों पर भी शामत आ जाएगी और कुछ पत्रकार जेल के अंदर होंगे। दरअसल इनलोगों ने दूसरे दलों के नेताओं को नाराज इतना कर लिया है कि कोई उनकी मदद के लिए नहीं आयेगा।

इसी बात पर एक बहुत पुरानी फिल्म सीआईडी का यह गीत याद दिला रहा हूं। इस गीत को लिखा था ओपी नैय्यर ने और संगीत में ढाला था मजरूह सुलतानपुरी ने। इस गीत को अपने जमाने की ख्यातिप्राप्त गायिका शमशाद बेगम ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं

कही पे निगाहे कही पे निशाना

कही पे निगाहे कही पे निशाना

जीने दो जालिम बनाओ ना दीवाना

कही पे निगाहे कही पे निशाना

कही पे निगाहे कही पे निशाना

कोई ना जाने ईरादे हैं किधर के

कोई ना जाने ईरादे हैं किधर के

मार ना देना तीर  नज़र

का किसी के जिगर में

मार ना देना तीर नज़र

का किसी के जिगर में

नाजुक यह दिल है बचाना ओ बचाना

कही पे निगाहे कही पे निशाना

कही पे निगाहे कही पे निशाना

मोदी जी ने नंबर दो यानी भाजपा के चाणक्य को फिर से खुद को साबित करने का मौका दे दिया है। उनकी दावेदारी को भाजपा के अंदर योगी आदित्यनाथ से चुनौती मिल रही है। बेचारे नड्डा जी रहेंगे या चले जाएंगे, यह नड्डा जी पर निर्भर नहीं है। कांग्रेस ने खडगे जी को खड़ग थमाकर भाजपा का मुंह बंद करने का काम किया है।

इस साल भी कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और उसके आधार पर अगले साल के लोकसभा चुनाव की मोर्चाबंदी होगी। जाहिर है कि इससे भी साबित होता है कि कहीं पर निगाहें भले हो लेकिन निशाना तो दरअसल लोकसभा का चुनाव ही है। हर पक्ष का बहुत कुछ दांव पर लगा है।

अब चलते चलते झारखंड की भी बात कर लें। ईडी ने बड़ी जोरशोर से हेमंत सोरेन पर प्रेशर बनाने का काम तो किया था। अकेले सरयू राय के बयानों ने उस अभियान की पूरी हवा ही निकाल दी और यह साबित कर दिया कि असली गड़बड़ी किसके शासन में हुई थी।

उधर महाराष्ट्र में भी संजय राउत के बाद अनिल देशमुख भी बाहर आ गये। हर तरफ से केंद्रीय एजेंसियों को दुरुपयोग का आरोप भी बताता है कि इन अभियानों में भी कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना ही असली मकसद है।

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